दिल्ली दंगों के दो साल के बाद कैसी हैं पीड़ितों की ज़िन्दगी, जानिये

Update: 2022-02-23 12:25 GMT

उत्तर-पूर्वी दिल्ली के गांवडी इलाके में रहने वाले राजू सलमानी के चार मंजिला मकान में 25 फरवरी 2020 को दंगाइयों ने पहले लूटपाट की फिर आग लगा दी। आग की लपटों के बीच बाकी परिवार तो बच निकला लेकिन राजू की 85 वर्षीय मां अकबरी देवी वहां फंस गईं और दम घुटने से उनकी मौत हो गई। इस दरिंदगी से राजू का बसा-बसाया परिवार बेघर हो गया। उन्हें खजूरी में किराये के मकान में शरण लेनी पड़ी। इसके बाद शुरू हुए कोरोना के दौर में हालात इस कदर खराब हो गए राजू सलमानी के लिए अपने तीन बच्चों का पेट पालना मुश्किल हो गया। जिस चार मंजिला इमारत में आग लगाई गई थी, उसके दो मंजिल पर उसका रेडिमेड कपड़ों का कारखाना था, जो जलकर खाकर हो गया। गुजर-बसर के लिए उनके पास कुछ नहीं बचा। कारखाने में जले माल का पैसा मांगने वालों की कतार लग गई। इसका नतीजा यह हुआ कि सबकुछ गंवाने वाले इस परिवार पर उधारी वसूली के चार मुकदमे दायर हो गए। दूसरी तरफ जमानत पर बाहर आए आरोपियों से उन्हें लगातार धमकी भी मिल रही है।

शिव विहार में दो साल पहले दंगाइयों ने अशोक कुमार की डेयरी में आग लगा दी थी। परिवारों के सदस्यों ने किसी तरह पीछे के रास्ते से भागकर जान बचाई थीं। सामने के मकान में इनके भाई की दुकान थीं, जिसमें दंगाईयों ने 22 वर्षीय कर्मचारी दिलबर नेगी के हाथ-पैर काटकर उन्हें जला दिया था। अशोक कुमार ने बताया उस पल को याद कर रूह अब भी कांप जाती है। वर्ष 1987 से चल रही उनकी दुकान दंगाइयों ने पलभर में खाक कर दी। सरकार की तरफ से ढाई लाख रुपये मुआवजा मिला, जिससे कारोबार को दोबारा खड़ा करना संभव नहीं था। उन्होंने शिव विहार में ही अपने एक प्लॉट को बेच दिया। दुकान और मकान की मरम्मत कराई, जिसमें करीब 25 लाख रुपये खर्च हुए। उनका कहना है कि अभी भी यहां दंगों के निशान मिटे नहीं है, जगह-जगह मकानों में दिख जाते हैं।

शिव विहार में पाल डेयरी के पीछे गली में एक तीन मंजिला मकान है। आसपास के लोगों का कहना है कि दंगे के बाद से परिवार इस मकान में नहीं लौटा। तभी से यहां ताला लटका है। उनके परिवार का भी कोई सदस्य यहां दिखाई नहीं देता है। लोगों को उनका नाम भी अब याद नहीं है, कुछ लोगों का कहना है कि शायद उनका नाम ओम प्रकाश पांडेय है। उनका परिवार कहां रहता है, क्या करता है, इस बारे में किसी को कुछ नहीं पता। हालांकि दंगाइयों ने इनके घर को निशाना नहीं बताया था, घर के बगल में राजधानी पब्लिक स्कूल है, जहां से दंगाइयों ने जमकर उत्पात मचाया था। स्कूल की छत पर बड़ा गुलेल बांध कर उससे पत्थर फेंके गए थे।


शिव विहार में गुलशन कुमार स्टेशनरी की दुकान चलाते हैं। उन्होंने बताया कि उस दौरान जब दंगाई पहुंचे तो उन्होंने दुकान का शटर बंद कर दिया। वह कुछ देर तक दुकान में रहे, जैसे ही दंगाइयों ने आग लगाई, वह गली की तरफ छोटे दरवाजे से निकलकर पीछे की तरफ भाग गए। दुकान में करीब 12 लाख रुपये का सामान जलकर खाक हो गया। आग से इमारत भी खराब हो गई। सरकार की तरफ से करीब दो लाख रुपये का मुआवजे मिला, जिससे दोबारा कारोबार खड़ा करना संभव नहीं था। दुकान फिर से शुरू करने के लिए उन्होंने कई रिश्तेदारों से रुपये उधार लिए, इसके बाद निर्माण कराकर उसमें दुकान को शुरू किया।

करावल नगर रोड पर चांदबाग पुलिया के पास आगजनी का शिकार दोपहिया शोरूम गिरि ऑटोमोबाइल बंद पड़ा था। संचालक दिलीप सिंह उर्फ बाबू ने बताया कि शोरूम बंद कर दिया है। पुराना कर्मचारी होने के चलते मालिक ने रखरखाव के लिए उन्हें अब भी रखा हुआ है। बाबू ने बताया वह खतरनाक मंजर उनके जहन में अब भी ताजा है। वो बताते हैं मुंह पर कपड़ा बांधकर भीड़ आई और लोग टूट पड़े। वह जान बचाकर शोरूम के पीछे स्थित कमरों की तरफ दौड़े। भीड़ ने उनका पीछा किया और उन्हें दबोचकर पीटा। इसके बाद लूटपाट कर शोरूम में आग लगा दी। शोरूम में सब जलकर राख हो चुका था। बाबू ने बताया कि सर्विस स्टेशन में एक दर्जन बाइक सर्विस के लिए खड़ी थी, सब जल गई। उनका कहना था कि अब मालिक शोरूम बेचकर कुछ और काम करने के बारे में सोच रहे हैं।

करावल नगर रोड पर दुकानें खुली हुई थीं। सब सामान्य सा दिख रहा था, लेकिन बात करने पर दुकानदारों का दर्द बाहर आ गया। दुकानदारों ने बताया कि करीब एक माह दुकानें नहीं खुली थीं। दुकानदार चाहते हैं कि कभी दंगा न हो। करावल नगर मार्केट एसोसिएशन के अध्यक्ष शिव कुमार राघव के मुताबिक दंगाइयों ने मार्केट में जमकर लूटपाट की। वह उस दिन अपने कार्यालय में बैठे थे, तभी बड़ी संख्या में मुंह पर कपड़ा लपेटे युवक हाथ में लाठी-डंडे और पेट्रोल लेकर आए। ऑफिस में तोड़कर की। उनकी जेब से मोबाइल और 15 हजार छीन लिए। फिर ऑफिस में रखे ढाई लाख रुपये लेकर फरार हो गए और ऑफिस में आग लगा दी।

दिहाड़ी मजदूरी करने वाला एक युवक 24 फरवरी 2020 को दूर खड़े होकर दंगाइयों की उग्रता को देख रहा था। उसे तीन घरों को लूटने और जलाने का आरोपी बनाया गया। उसके खिलाफ दो साल तक मुकदमा चला फिर अदालत के समक्ष ऐसे साक्ष्य आए, जिनसे साफ हुआ कि वह दंगाइयों से 30 फीट दूर खड़ाकर होकर उन्हें देख रहा था। अदालत ने माना कि यह दूर खड़े दर्शक बने व्यक्ति पर जबरन बनाया गया मामला है। घटना का दुखद पहलू यह रहा कि युवक का परिवार पहले ही तंगहाल में जीवन गुजार रहा था, लेकिन उसे बेकसूर साबित करने के लिए रिश्तेदारों से उधार लेकर वकील किया। जेल में समय गुजारने के साथ ही अब दिहाड़ी की रकम से उसे उधार चुकाना होगा, जिसमें न जाने कितने साल लग जाएंगे।


दंगों के अधिकांश मामलों में पड़ोसी ही एक-दूसरे पर हमले के आरोपी हैं। वहीं हत्या और हत्या के प्रयास व अन्य गंभीर मामलों के आरोपियों को छोड़कर बड़ी संख्या में आरोपियों को जमानत मिल गई है। इसके बाद एक नई मुश्किल यह आ खड़ी हुई है कि अदालतों में आरोपियों द्वारा धमकी देने की शिकायतें दायर की जा रही हैं। क्योंकि अधिकांश मामलों में पड़ोसियों को संलिप्तता है। इसलिए अदालतें स्थानीय पुलिस को पीड़ित परिवार को सुरक्षा दिए जाने के निर्देश दिए जा रहे हैं।

दंगा प्रभावित क्षेत्रों में बहुत से ऐसे लोगों से भी मुलाकात हुई, जिनको बेकसूर होने के बावजूद कई दिन तक दंगों की जांच के लिए अपराध शाखा के कार्यालय में बैठना पड़ा। हालांकि पूछताछ के बाद कोई साक्ष्य न मिलने पर उन्हें रिहा कर दिया गया। मौजपुर, मोहनपुरी निवासी देवेश ने बताया कि इटावा में शादी में शामिल होकर वह 27 फरवरी 2020 को वापस लौटे। उन्हें अपराध शाखा से नोटिस प्राप्त हुआ, जिसमें उनपर दूसरे समुदाय की हत्या का आरोप लगाया गया था। दो दिन तक उनसे बहुत सारे सवाल पूछे गए, लेकिन उनके पास इटावा में होने के कई साक्ष्य थे। उनके माबाइल की लोकेशन भी पांच दिन तक इटावा में पाए जाने पर उन्हें छोड़ दिया गया। देवेश ने बताया कि उनके साथ बहुत से ऐसे लोग थे, जिन्हें जांच में शामिल होने के लिए कई दिन तक अपना नंबर आने का इंतजार करना पड़ा।

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