हाईकोर्ट : क्या केंद्र सरकार वैवाहिक दुष्कर्म पर 2017 में दाखिल हलफनामे को वापस लेना चाहता है? स्थिति स्पष्ट करे
हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा है कि ‘क्या वह अपने 2017 के उस हलफनामे को वापस लेना चाहता है जिसमें उसने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग का विरोध किया था।’
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। हाईकोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार से यह बताने के लिए कहा है कि 'क्या वह अपने 2017 के उस हलफनामे को वापस लेना चाहता है जिसमें उसने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग का विरोध किया था।' न्यायालय में दाखिल हलफनामे में केंद्र ने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध की श्रेणी में नहीं लाया जा सकता है क्योंकि यह विवाह की संस्था को अस्थिर कर सकती है। जस्टिस राजीव शकधर और सी हरि शंकर की पीठ ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई के दोरान केंद्र सरकार से इस बारे में अपना रूख स्पष्ट करने को कहा।
पीठ ने केंद्र की ओ से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल चेतन शर्मा को इस पहलू पर सक्षम अधिकारियों से दिशा-निर्देश लेने और 31 जनवरी होने वाली सुनवाई पर अवगत कराने को कहा है। पीठ ने यह निर्देश तब दिया, जब याचिकाकर्ता गैर सरकारी संगठन आरआईटी फाउंडेशन और ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन्स एसोसिएशन की ओर से अधिवक्ता करुणा नंदी ने यह स्पष्ट करने का आग्रह किया कि 'क्या वह केंद्र सरकार द्वारा अब तक दाखिल लिखित दलील और हलफनामों के हिसाब से अपना रूख अपनाएं या वे (केंद्र) इसे वापस ले रहे हैं।
इस पर जस्टिस शकधर ने एएसजी शर्मा से सक्षम अधिकारी से निर्देश लेने और सोमवार को होने वाले सुनवाई पर यह बताने के लिए कहा कि आखिर आप क्या चाहते हैं? पीठ ने कहा कि यह काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि केंद्र ने अगस्त 2017 में पेश अपने हलफनामे में कहा था कि सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने पहले ही धारा 498ए (एक विवाहित महिला को उसके पति और ससुराल वालों द्वारा उत्पीड़न) के बढ़ते दुरुपयोग को देखा है।
इस हलफनामे में सरकार ने कहा था कि वैवाहिक दुष्कर्म को वैधानिक या कानूनी परिभाषित नहीं किया गया है, जबकि दुष्कर्म अपराध को आईपीसी की धारा-375 तहत परिभाषित किया गया है, वैवाहिक दुष्कर्म को परिभाषित करने के लिए समाज की व्यापक सहमति की आवश्यकता होगी। हालांकि, हाल में इस मामले की सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया था कि सरकार इस मुद्दे पर रचनात्मक दृष्टिकोण अपनाने का विचार कर रहा था। मेहता ने कहा था कि सरकार आपराधिक कानून में व्यापक संशोधन पर कई हितधारकों, सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीशों, सांसदों और अधिकारियों से सुझाव मांगा है। साथ ही जवाब देने के लिए वक्त मांगा था। पीठ ने 24 जनवरी को सरकार को इस बारे में अपना स्थिति स्पष्ट करने के लिए 10 दिन का वक्त दिया था।
न्यायालय 10 जनवरी से दैनिक आधार पर इस मामले की सुनवाई कर रही है। मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र की ओर से एएसजी शर्मा ने कहा कि केंद्र द्वारा दलीलें रखे जाने के बाद याचिकाकर्ताओं के दलीलों को सुना जाना चाहिए। इस पर न्यायालय ने कहा कि या तो केंद्र सरकार 31 जनवरी से अपनी दलीलें शुरू करें या फिर याचिकाकर्ताओं की दलीलों को सुना जाएगा। पीठ ने सरकार से कहा कि आप अपना बहस शुरू नहीं कर रहे हैं, इसलिए हम उन्हें सुनेंगे। मामले की सुनवाई के दौरान एक अन्य गैर सरकारी संगठन मेन वेलफेयर ट्रस्ट ने वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध घोषित करने की मांग का विरोध किया। संगठन ने कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम विशेष रूप से पति या पत्नी की यौन हिंसा को पहचानने के लिए प्रावधान किया गया है। ट्रस्ट की ओर से अधिवक्ता जे. साई दीपक ने दलीलें पेश की।