दिल्ली: ग्रेजुएशन के छात्र अब पर्यावरण शिक्षा जैसा विषय भी पढ़ेगें। अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में दाखिला लेने वाले देशभर के छात्रों के सिलेबस में पर्यावरण शिक्षा को शामिल करने के लिए दिशा निर्देश दिए गए हैं। इसके अंतर्गत पढ़ाई जाने वाली पर्यावरण शिक्षा में जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, स्वच्छता, अपशिष्ट प्रबंधन, जैविक विविधता संरक्षण, सतत विकास वन और वन्यजीव संरक्षण, जैविक संसाधन और जैव विविधता प्रबंधन जैसे विषय पढ़ाए जांएगे।
इन दिशा निर्देशों का पालन होने पर ग्रेजुएशन स्तर की पढ़ाई कर रहे छात्र पर्यावरण से जुड़े पाठ्यक्रम का हिस्सा भी बनेंगे। यूजीसी ने यह दिशानिर्देश केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की पहल पर जारी किए हैं।
यूजीसी का कहना है कि उन्होंने इस संबंध में देश के सभी विश्वविद्यालयों को एक सूचना के माध्यम से आधिकारिक दिशा निर्देश भेजे हैं। इन दिशा निर्देशों में कहा गया है कि सभी कॉलेजों में पढ़ाए जाने वाले सभी अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में पर्यावरण संबंधी इस पाठ्यक्रम को शामिल किया जाए।
यूजीसी का कहना है कि शिक्षा मंत्रालय का ऑनलाइन प्लेटफॉर्म ‘स्वयं’ इस विषय के लिए वीडियो और ई-सामग्री की पेशकश भी कर रहा है। शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मौजूद शिक्षण सामग्री का उपयोग देशभर के विभिन्न उच्च शिक्षण संस्थान कर सकते हैं। शिक्षा मंत्रालय का कहना है कि देश भर में स्कूल जाने वाले बच्चों और अन्य लोगों को भी इसके बारे में जागरूक होना चाहिए।
केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय के मुताबिक, पर्यावरण शिक्षा का पाठ्यक्रम बहु-विषयक प्रकृति वाला है। यही कारण है कि देश भर के उच्च शिक्षण संस्थान इस पाठ्यक्रम को लागू करने के लिए अपनी पसंद की पद्धति व प्रक्रिया चुन सकते हैं। शिक्षा मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य पर्यावरण के प्रति छात्रों में जागरूकता उत्पन्न करना है, ऐसे में बहु विषयक प्रकृति होने पर विश्वविद्यालयों को इसमें अनुकूलता के हिसाब से चयन करने की स्वतंत्रता मिलेगी।
वहीं इस नई पहल पर यूजीसी का कहना है पर्यावरण संबंधी यह पाठ्यक्रम सीखने के परिणाम पर आधारित है। साथ ही इस संबंध में जारी किए गए दिशा निर्देश राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 के अनुसार हैं। यूजीसी का मानना है कि उनके यह दिशानिर्देश अंडर ग्रेजुएट स्तर पर पर्यावरण शिक्षा को डिग्री प्रोग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने पर जोर देते हैं। पाठ्यक्रम पर्यावरण जागरूकता और इसके संरक्षण और सतत विकास के प्रति संवेदनशीलता को भी प्रोत्साहित करता है।
इसके अलावा उच्च शिक्षा के क्षेत्र में एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। इसके अंतर्गत छात्र यदि तय समय से पहले ही अपनी डिग्री कार्यक्रम के लिए आवश्यक क्रेडिट हासिल कर लेते हैं तो उन्हें डिग्री प्रदान की जा सकती है। यूजीसी के मुताबिक सर्टिफिकेट, डिप्लोमा या डिग्री की न्यूनतम अवधि पूरी न होने के बावजूद आवश्यक क्रेडिट संख्या पूरी कर ली जाती है तो ऐसे छात्रों को डिग्री दे दी जाएगी।
यूसीसी की विशेषज्ञ समिति के मुताबिक यदि किसी छात्र ने साढ़े तीन वर्ष में चार साल के कार्यक्रम के लिए सभी आवश्यक क्रेडिट अर्जित कर लिए हैं तो ऐसी स्थिति में वह छात्र वह डिग्री प्राप्त करने के योग्य माना जाना चाहिए।
दरअसल यूजीसी की एक्सपर्ट कमेटी ने इस नए बदलाव की सिफारिश की है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत यूजीसी ने डिग्री नामकरण की समीक्षा के लिए समिति गठित की थी। अब इस समिति ने अपनी सिफारिश दी है। यूजीसी के मुताबिक नए चार वर्षीय स्नातक डिग्री कार्यक्रम को बैचलर ऑफ साइंस (बीएस) की डिग्री के रूप में पेश किया जा सकता है।
यूजीसी के मुताबिक लागू किए जा रहे 4 वर्षीय चार अंडरग्रेजुएट डिग्री प्रोग्राम को बीए ऑनर्स, बीकॉम ऑनर्स, या बीएस ऑनर्स कहा जाएगा। यानी इन पाठ्यक्रमों के नामों में ‘ऑनर्स’ जुड़ा होगा। वहीं चार वर्ष के रिसर्च कार्यक्रमों के नाम में भी ऑनर्स जुड़ा होगा। बीए के ऐसे कार्यक्रमों को बीए ऑनर्स विद रिसर्च और बीकॉम के कार्यक्रमों को बीकॉम ऑनर्स विद रिसर्च के नाम से जाना जाएगा। इसके अलावा विशेषज्ञ समिति ने एमफिल कार्यक्रम को समाप्त करने की सिफारिश की है।
इन नए नामों व बदलावों के बावजूद यूजीसी की विशेषज्ञ समिति ने कहा है कि डिग्री के नए नाम केवल संभावित रूप से लागू होंगे। विभिन्न डिग्रियों के लिए नई शब्दावली का उपयोग किए जाने के बाद भी पुराने डिग्री का नाम फिलहाल चलता रहेगा। यानी कि तीन साल का मौजूदा अंडर ग्रेजुएट ऑनर्स डिग्री प्रोग्राम, नए लागू होने वाले 4 वर्षीय ऑनर्स डिग्री प्रोग्राम के साथ जारी रहेगा।