अमीरों को कर रियायत देने से राजकोषीय घाटा बढ़ेगा: सीपीआई

Update: 2023-02-03 10:16 GMT

दिल्ली: सीपीआई (एम) ने बजट के लेकर केंद्र पर हमला बोलते हुए कहा है कि यह अमीरों को और कर रियायत देते हुए राजकोषीय घाटे को और बढ़ा रहा है। सीपीआई (एम) महासचिव सीता राम येचूरी ने आम बजट पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह अमीरों को और कर रियायत देते हुए राजकोषीय घाटे को बढ़ाता है जिसे कम करने के लिए सरकार अपने खचरें को कम करने पर जोर देगी। उन्होंने कहा कि अब जब बेरोजगारी दर ऐतिहासिक उच्च स्तर पर है तो बजट में मनरेगा के आवंटन में 33 प्रतिशत की कमी कर दी गई है। खाद्य सब्सिडी में 90,000 करोड़ रुपये की कटौती की गई है। वहीं उर्वरक सब्सिडी में 50,000 करोड़ रुपये और पेट्रोलियम सब्सिडी में 6,900 करोड़ रुपये की कटौती की गई है।

सीपीआई (एम) ने दावा किया कि महामारी से हुई तबाही के बावजूद स्वास्थ्य के लिए पिछले वर्ष के आवंटन में से 9255 करोड़ अव्ययित रहे। इसी तरह शिक्षा बजट में 4297 करोड़ खर्च नहीं हो पाए। आईसीडीएस योजना के कर्मचारियों के लिए पारिश्रमिक में कोई वृद्धि नहीं दिख रही है। जेंडर बजट कुल व्यय का केवल 5 प्रतिशत है। अनुसूचित जाति का बजट 16 प्रतिशत की आबादी के मुकाबले केवल 3.5 प्रतिशत है और एसटी का बजट 8.6 प्रतिशत की आबादी के मुकाबले केवल 2.7 प्रतिशत है। किसानों की आय दोगुनी करने के दावों के बाबजूद केंद्र ने पीएम किसान फंड आवंटन को घटाकर 500 रुपये से कम कर दिया। अब ये 68,000 करोड़ की बजाए 60,000 करोड़ रूपए कर दिया गया है।

पूंजीगत व्यय में पर्याप्त वृद्धि कर सरकार ने दावा किया था कि इससे रोजगार सृजन होगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। साल 2022-2023 के संशोधित अनुमानों से पता चलता है कि सार्वजनिक उद्यम के संसाधनों सहित कुल पूंजीगत व्यय में मात्र 9.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जो नाममात्र जीडीपी में 15.4 प्रतिशत की वृद्धि से काफी कम है। कर छूट की सीमा बढ़ा दी गई है। वेतनभोगी वर्गों को कुछ राहत प्रदान करते हुए 5 से 7 लाख रूपए कर दिया है। हालांकि, यह मुद्रास्फीति और सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती से ऑफसेट से अधिक होगा, जिससे लोग शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक खर्च कर पाते। यह बजट राज्य सरकारों को संसाधन हस्तांतरण को कम कर राजकोषीय संघवाद पर हमले करने जैसा है। साल 2022-23 के संशोधित अनुमानों से पता चलता है कि 2022-23 में 8.4 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर के बावजूद ऋण प्राप्त करने के लिए राज्य सरकारों पर और शर्तें लगाई गई थी।

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