देश में ग्लोबल वार्मिग से निपटने के लिए कमाई से भी करना पड़ सकता है समझौता

ग्लोबल वार्मिग के संकट से निपटने के लिए विभिन्न देश जीवाश्म ईधनों के प्रयोग में कटौती कर रहे हैं।

Update: 2022-07-07 18:52 GMT

नई दिल्ली, ग्लोबल वार्मिग के संकट से निपटने के लिए विभिन्न देश जीवाश्म ईधनों के प्रयोग में कटौती कर रहे हैं। इस संबंध में इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फार सस्टेनेबल डेवलपमेंट (आइआइएसडी) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि ग्लोबल वार्मिग से निपटने के प्रयास विभिन्न देशों की कमाई पर भी बड़ा असर डालेंगे। समाचार एजेंसी पीटीआइ की रिपोर्ट के मुताबिक 2015 में पेरिस समझौते में सहमति बनी थी कि ग्लोबल वार्मिग को 2.0 डिग्री सेल्सियस तक रोका जाएगा।

जीवाश्म ईधनों पर लगानी होगी लगाम
इसका अर्थ है कि पृथ्वी के औसत तापमान को औद्योगिक काल से पूर्व की तुलना में अधिकतम 2.0 डिग्री ज्यादा पर रोका जाएगा। साथ ही प्रयास रहेगा कि इसे 1.5 डिग्री सेल्सियस पर ही रोक लिया जाए। निश्चित तौर पर इसके लिए ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में सबसे बड़ा योगदान देने वाले जीवाश्म ईधनों पर लगाम लगानी होगी।
बड़ी कटौती के लिए रहना होगा तैयार
रिपोर्ट में कहा गया कि 1.5 डिग्री सेल्सियस के लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भारत को जीवाश्म ईधनों से होने वाली कमाई में बड़ी कटौती के लिए तैयार रहना पड़ेगा। 2019 में भारत सरकार को इससे 92.9 अरब डालर का राजस्व मिला था, जो कुल राजस्व का 18 प्रतिशत था। 2050 तक इसमें 65 प्रतिशत तक की कमी आएगी।
पर्यावरण के अनुकूल बनाना होगा
हालांकि व्यवस्थित तरीके से कदम बढ़ाए जाएं तो नुकसान को कुछ कम किया जा सकता है। इसके लिए अपनी आर्थिक नीति को पर्यावरण के अनुकूल बनाना होगा। ऊर्जा एवं परिवहन क्षेत्र में टैक्स की व्यवस्था ऐसी करनी होगी, जिससे जीवाश्म ईधनों पर निर्भरता कम हो। साथ ही वैकल्पिक ईधन की तरफ तेजी से कदम बढ़ाने होंगे।
छह प्रमुख देशों पर किया गया अध्ययन
रिपोर्ट में ब्राजील, रूस, भारत, इंडोनेशिया, चीन और दक्षिण अफ्रीका को शामिल किया गया है। यहां दुनिया की 45 प्रतिशत आबादी रहती है। कार्बन उत्सर्जन में इनकी करीब आधी और वैश्विक जीडीपी में 25 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। दुनिया की बड़ी गरीब आबादी भी इन्हीं देशों में है। जीवाश्म ईधनों में कटौती से 2050 तक इन देशों को 570 अरब डालर का नुकसान उठाना पड़ेगा।

सोर्स -jagran

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