New Delhiनई दिल्ली : दिल्ली उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को सर गंगा राम अस्पताल को निर्देश दिया कि वह एक मृत व्यक्ति के जमे हुए शुक्राणु को बच्चे के प्रजनन के लिए उसके माता-पिता को दे। उच्च न्यायालय ने कहा कि भारतीय कानून में मरणोपरांत प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है । न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने मृतक के पिता द्वारा गंगा राम अस्पताल से संरक्षित शुक्राणु जारी करने की मांग करने वाली याचिका का निपटारा करते हुए यह निर्देश जारी किया। उच्च न्यायालय ने कहा, "चूंकि भारतीय कानून में मरणोपरांत प्रजनन पर कोई प्रतिबंध नहीं है , इसलिए शुक्राणु का उपयोग प्रजनन के लिए किया जा सकता है ।" न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह ने अस्पताल को उसके बेटे के जमे हुए शुक्राणु को उसके माता-पिता को देने का निर्देश दिया। उन्होंने कहा कि दादा-दादी द्वारा अपने पोते-पोतियों का पालन-पोषण करना बहुत आम बात है।
हालांकि, हाईकोर्ट ने कहा कि स्पर्म का व्यावसायिक इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। नवंबर 2022 में हाईकोर्ट ने स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी कर एक अस्पताल से मृत व्यक्ति के स्पर्म को रिलीज करने की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा था। यह याचिका मृतक व्यक्ति के माता-पिता ने दायर की थी।
याचिकाकर्ता ने दिल्ली के गंगा राम अस्पताल में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) लैब में रखे अपने बेटे के जमे हुए स्पर्म को रिलीज करने का निर्देश मांगा था। उनके बेटे की सितंबर 2020 में कैंसर से मौत हो गई थी। उन्होंने अस्पताल से संपर्क किया था, लेकिन उसने यह कहते हुए इसे रिलीज करने से इनकार कर दिया था कि सरकार की ओर से कोई निर्देश नहीं हैं। वह कोर्ट के निर्देश पर इसे रिलीज कर सकता है । इससे पहले कोर्ट ने दिल्ली सरकार और गंगा राम अस्पताल को नोटिस जारी किया था। अस्पताल ने एक रिपोर्ट दाखिल कर कहा था कि उसके परिवार को जमे हुए वीर्य के नमूने जारी करने से संबंधित कोई सहायक प्रजनन तकनीक (एटीआर) कानून नहीं है। यह भी प्रस्तुत किया गया कि संबंधित आईसीएमआर दिशानिर्देश और सरोगेसी अधिनियम भी इस मुद्दे पर चुप हैं। केंद्र को नोटिस जारी करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि इस मामले में सरकार का दृष्टिकोण महत्वपूर्ण है क्योंकि अदालत के फैसले का एआरटी (विनियमन) अधिनियम पर प्रभाव पड़ेगा। (एएनआई)