संविधान बनाने में बेस्ट टैलेंट इस्तेमाल,कांग्रेस ने निकाला था रास्ता सबकी भागीदारी के लिए
नई दिल्ली: देश का संविधान रचने वाली संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को हुई थी। आजाद भारत और उसके आने वाले कल की तस्वीर इसी सभा के जरिए लिखनी शुरू हुई थी। सभा के पहले सत्र में कुल 207 सदस्य मौजूद थे। मुस्लिम लीग के सभी सदस्यों ने इससे दूरी बनाई हालांकि कांग्रेस के चार मुस्लिम सदस्यों ने सभा की कार्यवाही में हिस्सा लिया था। बिपिन चंद्र पाल, मृदुला मुखर्जी और आदित्य मुखर्जी की किताब के मुताबिक, संविधान सभा की क्षमता 389 सदस्यों की होनी थी, इनमें से 296 सदस्य को ब्रिटिश इंडिया से चुना जाना था और 93 सदस्यों को प्रिंसली स्टेट्स यानी प्रांतों से। हालांकि शुरुआत में संविधान सभा में सिर्फ ब्रिटिश इंडिया का प्रतिनिधित्व करने वाले ही सदस्य थे। सभा के सदस्यों का चुनाव 1946 के जुलाई और अगस्त महीने में हुआ। इन चुनावों में जनरल कैटिगरी की 201 सीटों में से 199 सीट कांग्रेस ने जीतीं थी।
संविधान सभा का चुनाव व्यस्क मताधिकार के जरिए नहीं हुआ था। लिहाजा इसके चुनाव में समाज के सभी तबकों और वर्गों का प्रतिनिधित्व कैसे हो ये एक चुनौती थी। क्योंकि चुनाव में सिर्फ सिख और मुसलमानों को ही अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया गया था। कांग्रेस जानती थी कि इस चुनाव के जरिए समाज के सभी लोगों को प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाएगा। इस समस्या को दूर करने के लिए पार्टी कोई ऐसा रास्ता निकालना चाहती थी कि संविधान सभा में देश की विविधता इस सभा में भी झलके और सारे तबकों को प्रतिनिधित्व मिले। इसके लिए कांग्रेस वर्किंग कमिटी ने 1946 के जुलाई में प्रोविंशियल कांग्रेस कमिटियों को निर्देश दिए कि वो अनुसूचित जाति, पारसी, भारतीय ईसाई, एंग्लो इंडियंस, दलित और आदिवासियों को कांग्रेस की ओर से रखी जाने वाली जनरल कैटिगरी की लिस्ट में प्रतिनिधित्व दें।
इसके अलावा इस बात पर विचार और सहमति बनी कि देश का संविधान बनाने के लिए देश के बेस्ट टैलेंट का इस्तेमाल होना चाहिए। इसमें महात्मा गांधी ने अहम भूमिका निभाई और खुद 16 ऐसी हस्तियों के नाम सामने रखे जिन्हें संविधान सभा के लिए कांग्रेस की लिस्ट में सामने रखा जा सकता था। इस तरह से 30 ऐसे लोग, जो कांग्रेस पार्टी के सदस्य नहीं थे, उन्हें कांग्रेस की चुनावी लिस्ट में रखा गया और वो कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीते।