होली पर होने वाली दुर्घटनाओं के मद्देनजर दिल्ली के अस्पतालों में अलर्ट जारी, शनिवार को भी कई जगह चलेगी ओपीडी
राजधानी के डॉक्टरों का कहना है कि इस बार होली को हादसों का त्योहार न बनने दें। हर साल होली पर इन घटनाओं की संख्या दोगुना से भी अधिक हो जाती है।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राजधानी के डॉक्टरों का कहना है कि इस बार होली को हादसों का त्योहार न बनने दें। हर साल होली पर इन घटनाओं की संख्या दोगुना से भी अधिक हो जाती है। बीते दो वर्ष कोरोना महामारी में भी होली पर ऐसे हालात देखने को मिल रहे हैं। दिल्ली सरकार ने इन्हीं घटनाओं के चलते दो दिन पहले सभी अस्पतालों के लिए अलर्ट जारी किया था, जिसके बाद अस्पताल और ट्रामा सेंटर में व्यवस्थाएं पूरी कर दी गईं। बृहस्पतिवार को एम्स ट्रामा सेंटर के प्रमुख डॉ. राजेश मल्होत्रा ने बताया कि होली को देखते हुए सभी ट्रामा चिकित्सीय सेवाएं 24 घंटे सक्रिय रहेगीं। अवकाश के चलते स्टाफ को दो शिफ्ट में कार्य करने के निर्देश जारी किए हैं।
दरअसल आम दिनों के मुकाबले त्योहरों पर अस्पताल आने वाले मरीजों की संख्या दोगुनी बढ़ जाती है लेकिन यह मरीज ओपीडी के नहीं बल्कि इमरजेंसी केस के होते हैं। खासकर बात अगर होली की करें तो इस दिन अस्पतालों में लड़ाई-झगड़े और एक्सीडेंट के केस ज्यादा आते हैं। इसलिए होली पर स्वास्थ्य सेवाओं को सक्रिय रखने के लिए सरकार ने सभी अस्पतालों को निर्देश भी दिए हैं।
राजधानी के लोकनायक अस्पताल से लेकर डीडीयू, सफदरजंग, आरएमएल, एम्स सहित तमाम बड़े अस्पतालों को अलर्ट पर रखा गया है। साथ ही ट्रामा सेंटर सेवाओं को भी सक्रिय रहने की सलाह दी गई है। पूर्वी दिल्ली में चाचा नेहरु अस्पताल और जीटीबी अस्पताल में होली को देखते हुए आपातकालीन वार्ड में बच्चों के लिए भी अलग से व्यवस्था की गई है।
नई दिल्ली स्थित डॉ. राम मनोहर लोहिया अस्पताल के इमरजेंसी विभाग में कार्यरत डॉक्टर सुनील बताते हैं कि आम दिनों में इमरजेंसी केसों की संख्या जहां 500 रहती हैं, वहीं होली के समय इनकी संख्या बढ़कर 800-900 तक पहुंच जाती है। होली पर संख्या बढ़ जाती है। बत्रा अस्पताल के वरिष्ठ डॉक्टर डीएन झा कहते हैं कि होली के दिनों में हम खास तैयारियों के साथ रहते हैं क्योंकि सभी जानते हैं कि इस दिन ज्यादा केस आते हैं।
इमरजेंसी में काम करने वाले डॉक्टरों की संख्या और उनके काम करने का समय बढ़ा दिया जाता है ताकि यहां आने वाले मरीज को किसी तरह की कोई परेशानी न हो। यह लोग नशे में धूत होते हैं और अस्तपाल में आकर भी खूब हुड़दंग मचाते हैं। ठीक ढंग से इलाज तक नहीं करने देते। ऐसे में इनका इलाज करना बेहद मुश्किल हो जाता है। इमरजेंसी में डॉक्टरों की छह-छह घंटो की शिफ्ट होती है और एक शिफ्ट में 300-400 केस आ जाते हैं।
जानकारी के अनुसार होली पर और होली से एक रात पहले अस्पतालों में आने वाले एक्सीडेंट के केसों में 75 फीसदी तक ऐसे मरीज पाए जाते हैं जिन्होंने शराब पी रखी है या फिर कोई दूसरा नशा किया हुआ है। इन केसों में वह लोग होते हैं जिन्होंने नशे में अपनी गाड़ी कहीं ठोक दी है। इनका इलाज करना भी बड़ी चुनौति होती है क्योंकि एक्सीडेंट के केस में इनकी स्थिति काफी खराब होती है और चूंकि यह नशे में होते हैं इसलिए इनको दवाई या इंजेक्शन भी सोच-समझकर लगाना पड़ता है।
सुश्रुत ट्रामा सेंटर के डॉ. सौरभ अवस्थी ने बताया कि होली के दौरान दुर्घटना के ज्यादा मामले सामने आते हैं। इसमें रोड एक्सीडेंट, पानी के गुब्बारे मारने के कारण होने वाली दुर्घटना, शराब पीकर गाड़ी चलाने के दौरान होने वाली दुर्घटना शामिल है। इन घटनाओं में मरीज कई बार काफी गंभीर रूप से आता है जिसे बचाना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में सभी अस्पताल लाइफ स्पोर्ट की व्यवस्था पहले से ही करके रखते हैं।