11 साल बाद दिल्ली एम्स निजी सेवाओं को महंगा करने की राह पर, प्रबंधन ने तैयार किया प्रस्ताव
11 साल बाद दिल्ली एम्स निजी सेवाओं को महंगा करने की राह पर है। एम्स प्रबंधन ने प्राइवेट वार्ड से जुड़े सेवा शुल्क को दोगुना तक बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसे आगामी दिनों में होने वाली वित्तीय समिति की बैठक में रखा जाएगा।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। 11 साल बाद दिल्ली एम्स निजी सेवाओं को महंगा करने की राह पर है। एम्स प्रबंधन ने प्राइवेट वार्ड से जुड़े सेवा शुल्क को दोगुना तक बढ़ाने का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसे आगामी दिनों में होने वाली वित्तीय समिति की बैठक में रखा जाएगा। बैठक में सभी सदस्यों की आपसी रजामंदी के बाद एम्स प्रबंधन प्राइवेट वार्ड में भर्ती के लिए मरीजों से दोगुना तक शुल्क हासिल कर सकता है।
एम्स के चिकित्सीय अधीक्षक डॉ. डीके शर्मा ने इस संबंध में एक पत्र भी लिखा है, जिसमें प्राइवेट वार्ड का प्रतिदिन का शुल्क बढ़ाने के साथ-साथ आहार इत्यादि को लेकर भी फीस की जा सकती है। प्रस्ताव है कि एम्स के प्राइवेट वार्ड में भर्ती होने के लिए एक मरीज को प्रतिदिन तीन से छह हजार रुपये तक का शुल्क देना पड़ सकता है।
इसके अलावा बी कैटेगरी के वार्ड का शुल्क एक से बढ़ाकर दो हजार रुपये करने और एक वक्त के आहार का शुल्क 200 से बढ़ाकर 300 रुपये तक करने की योजना है। एम्स प्रबंधन का मानना है कि प्राइवेट वार्ड में दाखिला लेने वाले अधिकांश रोगी इतना शुल्क वहन कर सकते हैं।
इसलिए प्रबंधन ने अन्य सेवाओं में बदलाव न करते हुए प्राइवेट सेवाओं पर जोर दिया है। इससे पहले साल 2011 में प्राइवेट वार्ड के शुल्क में बढ़ोतरी की गई थी। कोरोना महामारी से पहले एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया ने स्वास्थ्य मंत्रालय को अस्पताल में 500 रुपये तक की जांच निशुल्क करने का प्रस्ताव भेजा था लेकिन अभी तक पास नहीं हुआ। वर्तमान में एम्स के प्राइवेट वार्ड में एक दिन का शुल्क 2000-2200 रुपये तक है।
गरीब मरीजों का मुफ्त इलाज नहीं करने के खिलाफ याचिका
राजीव गांधी कैंसर संस्थान में आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) के मरीजों को निशुल्क इलाज नहीं दिए जाने पर एक बार फिर हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है। याचिका पर पांच मई को सुनवाई होगी।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी और न्यायमूर्ति नवीन चावला के समक्ष याचिका पर सुनवाई तय थी। न्यायमूर्ति चावला ने व्यक्तिगत कारणों से मामले की सुनवाई से खुद को अलग कर लिया। यह याचिका गैर सरकारी संगठन सोशल ज्यूरिस्ट की ओर से दायर की गई है।
याची की और से पेश अधिवक्ता अशोक अग्रवाल ने आरोप लगाया है कि राजीव गांधी कैंसर संस्थान एवं शोध केंद्र में ईडब्ल्यूएस को निशुल्क इलाज मुहैया नहीं कराया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि इस अस्पताल को इसी शर्त पर भूमि का आवंटन किया गया था कि वह 10 फीसदी भर्ती मरीज और 25 फीसदी ओपीडी में ईडब्ल्यूएस मरीजों का निशुल्क इलाज करेंगे।