प्रकृति ने अपने आँचल में असीमित खजाने छिपा रखे हैं। पहाड़ों की हरी-भरी ढलानों से लेकर ऊँचे-ऊँचे देवदार के पेड़ों तक, हर कोना पोषण और औषधीय गुणों से भरा हुआ है। उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र को इन्हीं प्राकृतिक उपहारों का केंद्र माना जाता है, जहाँ जैविक और पारंपरिक खेती के माध्यम से कई बहुमूल्य उत्पाद तैयार किए जाते हैं। ये न सिर्फ सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं, बल्कि स्थानीय पारंपरिक खेती को भी जीवित रखते हैं। इन्हीं पहाड़ी उपहारों को दुनिया तक पहुँचाने का सार्थक प्रयास कर रहा है अद्रिभु। इसके प्रोडक्ट्स कई औषधीय गुणों से भरपूर हैं, जिनमें देशी हिमालयी भांग के बीज का तेल, नैसर्गिक हिमालयी हल्दी, देशी हिमालयी भांग के बीज का आटा, देशी हिमालयी जख्या (जंगली सरसों के बीज) और देशी हिमालयी बिच्छू घास (कण्डली) की पत्तियाँ शामिल हैं।
पहाड़ी खेती आसान नहीं होती। यहाँ की जमीन ऊबड़-खाबड़ और खड़ी होती है, जिससे आधुनिक कृषि उपकरणों का उपयोग संभव नहीं होता। हल जोतने से लेकर बुवाई, कटाई और भंडारण तक हर प्रक्रिया पारंपरिक तरीके से की जाती है। गोबर और बकरी की खाद को सिर और कंधों पर उठाकर खेतों तक पहुँचाया जाता है। खरपतवार निकालने से लेकर फसल की सुरक्षा तक हर कदम मेहनत से भरा होता है।
शहरों की ओर बढ़ता पलायन भी एक बड़ी चुनौती है। युवा वर्ग बेहतर जीवनशैली की तलाश में गाँव छोड़कर जा रहे हैं, जिससे खेती करने वाले लोगों की संख्या घटती जा रही है। इसके अलावा, जंगली सूअर जैसे जानवर भी फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं। जलवायु परिवर्तन और पहाड़ों में बढ़ते निर्माण कार्यों ने जल चक्र को भी प्रभावित किया है, जिससे खेती पर गहरा असर पड़ा है।
इन तमाम चुनौतियों के बावजूद, पहाड़ों ने हमें कुछ अनमोल उत्पाद दिए हैं, जो न सिर्फ सेहत के लिए लाभकारी हैं, बल्कि पारंपरिक खेती को भी संरक्षित करते हैं।
भांग / हिमालयन हेम्प / कैनाबिस
भांग एक दिव्य औषधि मानी जाती है, जिसका उल्लेख प्राचीन ग्रंथों में भी मिलता है। यह एक बहुउपयोगी पौधा है, जिसके हर हिस्से को उपयोग में लिया जा सकता है। भांग के बीजों में प्रोटीन, ओमेगा 3, 6, 9 फैटी एसिड और आवश्यक अमीनो एसिड होते हैं। ये हज़ारों सालों से पहाड़ों में मसाले और स्नैक के रूप में इस्तेमाल किए जाते रहे हैं।
फाइबर: इसका फाइबर काफी मजबूत होता है, जिसका उपयोग कपड़े, रस्सियाँ और टिकाऊ निर्माण सामग्री बनाने के लिए किया जाता है।