कोरोनावायरस के आने के बाद से इसके कई तरह के ट्रीटमेंट के दावे किए गए. वैज्ञानिक कई नए कारगर इलाज के तरीके भी निकाल रहे हैं. अल्कोहल से बने सैनिटाइजर से बचाव मिल रहा है. लेकिन कोई ये कहे कि अल्कोहल को सूंघकर कोरोना वायरस के संक्रमण से बचाव मिलेगा, या उससे निजात मिलेगी...तो आप हैरान होंगे. होना भी चाहिए. अमेरिका में एक ऐसा प्रयोग किया जा रहा है जिसमें अल्कोहल को सूंघकर कोविड-19 से राहत मिलेगी.
अमेरिका में अल्कोहल की भाप (Alcohol Vapour) यानी अल्कोहल को सूंघकर कोरोना का कारगर इलाज करने पर वैज्ञानिक प्रयोग चल रहा है. अब तक प्रयोग के तीन चरणों के नतीजे सामने आए हैं, जिससे वैज्ञानिक काफी उत्साहित हैं. क्योंकि अब तक के परीक्षण में कुछ ही मिनटों में मरीज को सांस लेने में काफी आराम मिला है.
यूं तो अल्कोहल की भाप लेने की तकनीक वायरस को खत्म करने के क्षेत्र में काफी पुरानी है, लेकिन फेफड़ों में इन्फेक्शन के मामले में अल्कोहल की भाप सूंघने का प्रयोग और इसमें सफलता पहली बार सामने आई है. इसके नतीजों को देखते हुए वैज्ञानिक कहते हैं कि अगर इस तकनीक के सार्वजनिक इस्तेमाल की मंजूरी मिले तो यह सचमुच में मेडिकल क्रांति होगी.
अमेरिका में फूड एंड ड्र्ग्स एडमिनिस्ट्रेशन (FDA) के सेंटर फॉर ड्रग इवैल्युएशन एंड रिसर्च में ये शोध आगे बढ़ चुका है. दिल्ली में इस मामले में कई प्रयोग कर कामयाबी से उत्साहित वैज्ञानिक शक्ति शर्मा ने अमेरिकी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन को इस बाबत पत्र लिखा है. इसके बाद उनको वापस जो पत्र मिला, वो इस बात की तस्दीक देने के लिए काफी है कि इस तकनीक का असर कोरोना वायरस पर हुआ है. यानी अल्कोहल सूंघकर भी कोविड को चित्त किया जा सकता है.
कई अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में रिसर्च प्रकाशित हो चुके हैं. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ बेसिक एंड क्लिनिकल फार्मैकोलॉजी में छपे डॉ. सैफुल इस्लाम के रिसर्च के मुताबिक इथाइल अल्कोहल यानी एथेनॉल (Ethanol) सूंघने का असर नाक के जरिए फेफड़ों तक होता है. चूंकि कोविड वायरस नाक के जरिए ही गले और फेफड़ों तक पहुंचता है. अल्कोहल की 65 फीसदी मात्रा वाले सॉल्यूशन को एस्पिरिन (Aspirin) के साथ सीधे या ऑक्सीजन के जरिए या फिर ऑक्सीजन एआरडीएस तकनीक से नाक के जरिए सांस के साथ फेफड़े तक पहुंचाया जाता है.
अमेरिका के एडवेंटिस्ट हॉस्पिटल के विशेषज्ञों की टीम ने ब्रिटेन के रसायन वैज्ञानिक डॉ. इस्लाम ने नेतृत्व में अल्कोहल वेपर पर प्रयोग किए गए हैं. अंतरराष्ट्रीय जर्नल फार्मास्यूटीज में भी प्रकाशित एक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक सामान्य तापमान पर सूरज की रोशनी से दूर रखे गए 65 फीसदी अल्कोहल की मात्रा वाले रसायन को ऑक्सीजन के जरिए 3.6 मिलीग्राम प्रतिमिनट की मात्रा से सांसों में भेजा गया. रोजाना 45 मिनट तक यह इलाज कोरोना से गंभीर रूप से संक्रमित मरीजों को दिया गया.
कोविड संक्रमण के मामले में टीम ने पाया कि अधिकतर लोगों को पहले ऊपरी सांस लेने के नली पर असर पड़ता है. इस पर शीघ्र नियंत्रण नहीं किया गया तो फिर वह निचली नली पर असर करता है. कोविड वायरस के तीन तरह के वैरिएंट शोधकर्ताओं को मिले जो सीधे निचली सांस की नली पर ही सीधे असर करते हैं. इससे संक्रमित व्यक्ति की जान पर बन आती है.
गंभीर निमोनिया के चलते पूरे फेफड़े में धब्बे बनने लगते हैं. फेफड़ों में सूजन आने लगती है. फेफड़े पूरी क्षमता और शिद्दत के साथ काम नहीं कर पाते. सांसों में वो दम नहीं रह जाता. मरीज लगातार एक-एक सांस के लिए गंभीर प्रयास करता है. सांस की नली और फेफड़ों में लगातार बढ़ती सूजन से उसकी सांसों की डोर टूट जाती है.
शोधकर्ताओं के रिसर्च के दौरान देखा कि अल्कोहल की भाप तकनीक का सीधा असर कोरोना वायरस की बाहरी कंटीली प्रोटीन परत पड़ा. इसी प्रोटीन परत के जरिए वह इंसानों की कोशिकाओं पर हमला करता है. ऑक्सीजन के साथ अल्कोहल की भाप नाक से सांस नली और फिर फेफड़ों तक गई.
इससे मरीजों के सांस नली, फेफड़े और नाक के भीतर कोविड वायरस की वजह से झिल्लियों में जो सूजन थी, वो जल्दी ही गलने और सिमटने लगी. सांस लेना आसान हो गया. फेफड़ों का सेल्फ इम्युनिटी सिस्टम ज्यादा बेहतर काम करने लगा. उसे भी राहत मिली. इस प्रयोग से फाइबोलाइट, न्यूट्रोफिल्स के साथ-साथ ल्यूकोसाइट्स पर भी सकारात्मक असर हुआ.