नई दिल्ली: कैटालिन कारिको और ड्रू वीसमैन को कोविड-19 के खिलाफ एमआरएनए वैक्सीन की खोज में उनके योगदान के लिए संयुक्त रूप से फिजियोलॉजी या चिकित्सा क्षेत्र के लिए 2023 के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। करोलिंस्का इंस्टीट्यूट में नोबेल असेंबली ने एक बयान में कहा, "उन्हें न्यूक्लियोसाइड बेस संशोधनों से संबंधित उनकी खोजों के लिए सम्मान मिला, जिससे कोविड -19 के खिलाफ प्रभावी एमआरएनए टीकों का विकास संभव हो सका।''
नोबेल समिति ने कहा कि उनके अभूतपूर्व निष्कर्षों ने इस समझ को मौलिक रूप से बदल दिया है कि एमआरएनए हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली के साथ कैसे संपर्क करता है। एमआरएनए प्रौद्योगिकी में रुचि बढ़ने लगी और 2010 में, कई कंपनियां इस पद्धति को विकसित करने पर काम कर रही थीं।
जीका वायरस और एमईआरएस-सीओवी के खिलाफ टीके लगाए गए। एमईआरएस-सीओवी का सार्स-कोव-2 के साथ निकट संबंध है। कोविड-19 महामारी के 2020 की शुरुआत में फैलने के बाद सार्स-कोव-2 सर्फेस प्रोटीन को एन्कोड करने वाले दो बेस-मॉडिफाइड एमआरएनएस टीके रिकॉर्ड गति से विकसित किए गए थे।
ये टीके लगभग 95 प्रतिशत प्रभावी थे। दोनों टीकों को दिसंबर 2020 की शुरुआत में मंजूरी दे दी गई। समिति ने कहा, "आधुनिक समय में मानव स्वास्थ्य के लिए सबसे बड़े खतरों में से एक के दौरान पुरस्कार विजेताओं ने वैक्सीन विकास की अभूतपूर्व दर में योगदान दिया।"
कारिको का जन्म 1955 में हंगरी के स्ज़ोलनोक में हुआ था। उन्होंने 1982 में सेज्ड विश्वविद्यालय से पीएचडी प्राप्त की और 1985 तक सेज्ड में हंगेरियन एकेडमी ऑफ साइंसेज में पोस्टडॉक्टरल शोध किया। उन्हें 1989 में पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर नियुक्त किया गया, जहां वह 2013 तक रहीं। उसके बाद, वह बायोएनटेक आरएनए फार्मास्यूटिकल्स में उपाध्यक्ष और बाद में वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनीं।
वह 2021 से सेज्ड विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में सहायक प्रोफेसर रही हैं। वीज़मैन का जन्म 1959 में लेक्सिंगटन, मैसाचुसेट्स में हुआ था। उन्होंने 1987 में बोस्टन विश्वविद्यालय से एमडी, पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
उन्होंने हार्वर्ड मेडिकल स्कूल के बेथ इज़राइल डेकोनेस मेडिकल सेंटर में अपना नैदानिक प्रशिक्षण और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ में पोस्टडॉक्टरल शोध किया। वीजमैन ने 1997 में पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय के पेरेलमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन में अपना शोध समूह स्थापित किया।