इंडिगो-एयरबस एविएशन इतिहास की सबसे बड़ी डील बन गई है। इस आदेश के बाद कई सवाल भी सामने तैरने लगे हैं. पहला, इंडिगो के लिए यह डील क्यों जरूरी हो गई? यह सौदा भारत और भारतीय विमानन उद्योग के लिए कैसे मायने रखता है? क्या इंडियन एयर इस सौदे को यात्रियों के लिए अच्छा बना पाएगी? ऐसे में आज इस डील के पीछे के कई पन्ने खोलने और उन्हें समझने की जरूरत है क्योंकि जब से गो फर्स्ट धराशायी हुआ है, तब से सबसे ज्यादा नुकसान आम लोगों को हुआ है.
इंडिगो के लिए क्यों जरूरी थी ये डील?
सबसे पहले बात करते हैं कंपनी की, इंडिगो के लिए यह डील क्यों जरूरी हो गई? वास्तव में इंडिगो बहुत आगे की सोच रहा है। उसके बाद फिलहाल 300 विमान हैं। जिसमें से 100 विमान साल 2030 में रिटायर होने वाले हैं। ऐसे में आने वाले समय में उन्हें और विमानों की जरूरत होती। दूसरी तरफ एयरलाइन चाहती है कि साल 2030 तक उसके पास 700 से ज्यादा ऐसे विमान हों, जिससे वह लगातार उड़ान भर सके। मौजूदा समय में भारत में इसकी बाजार हिस्सेदारी न सिर्फ बरकरार रहनी चाहिए बल्कि इसमें बढ़ोतरी भी होनी चाहिए। ऐसे में वित्त वर्ष 2024 तक कंपनी 50 विमानों को अपने बेड़े में शामिल करने जा रही है।
दूसरी ओर, कंपनी आपूर्ति श्रृंखला में किसी प्रकार की बाधा नहीं चाहती थी और समय-समय पर उसके बेड़े में नए विमान जोड़े गए। इस वजह से उन्होंने अपने पहले के ऑर्डर के अलावा 500 और एयरक्राफ्ट ऑर्डर किए ताकि एयरक्राफ्ट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी पर भी कुछ दबाव बनाया जाए कि कंपनी के ऑर्डर को जल्द से जल्द पूरा किया जाए। इसके साथ ही बड़े ऑर्डर के बड़े फायदे भी ऐसे हैं कि कंपनी को आर्थिक रूप से भी फायदा होता है।