क्या भूल से हो सकता है ब्याज घटाने जैसा बड़ा फैसला, जानिए कहानी

आज सुबह केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट कर जानकारी दी वह आदेश 'भूलवश' (Issued by Oversight) जारी हो गया था।

Update: 2021-04-01 13:25 GMT

छोटी बचत (Small Savings) का महत्व खाये-पीये-अघाये लोग नहीं समझ सकते। इसका महत्व तो वे ही समझ सकते हैं जो बड़ी मेहनत से महीने में महज कुछ सौ या हजार रुपये बचा पाते हैं। उसे डाकघर (Post Office) या पास के बैंक (Bank) में छोटी बचत की योजना (Small Savings Scheme) में जमा करते हैं। ऐसे लोगों की जेब पर डाका डालता हुआ केंद्रीय वित्त मंत्रालय का फरमान कल आया था। उसमें छोटी बचत की योजनाओं पर ब्याज दर में 1.1 फीसदी तक की कटौती का उल्लेखा था। हालांकि, आज सुबह केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने ट्वीट कर जानकारी दी वह आदेश 'भूलवश' (Issued by Oversight) जारी हो गया था। उसे वापस लिया जा रहा है।

वित्त मंत्रालय से भूलवश जारी हो जाते हैं ऐसे आदेश?
वित्त मंत्रालय (Finance Ministry) में काम करने वाले अधिकारिक सूत्रों का कहना है कि ऐसे आदेश भूलवश जारी नहीं होते। इसके लिए कई दिनों तक फाइल चलती है। इस पर संबंधित विभाग के डाइरेक्टर, ज्वाइंट सेक्रेटरी से लेकर अडिशनल सेक्रेटरी और सेक्रेटरी तक की सहमति ली जाती है। मामला संवेदनशील हो तो मंत्री की भी अनुमति अनिवार्य है। जब सभी की अनुमति मिल जाती है, जब नोटिफिकेशन जारी होता है।
छोटी बचत की ब्याज दर घटाने की फाइल जाती है दूर तक
छोटी बचत की ब्याज दर पर तो विशेष सावधानी रखी जाती है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वर्ष 2016 में इसी तरह के एक नोटिफिकेशन पर हंगामा मच गया था। उस समय पीपीएफ और वरिष्ठ नागरिक बचत योजना पर ब्याज दर में कटौती पर जो हंगामा मचा था कि तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली (Arun Jaitley) ने इस आर्डर को निकालने वाले सभी अधिकारियों की भरपूर क्लास ली थी। उसके बाद रिवाज्ड आर्डर निकला था। उसके बाद से ही छोटी बचत की योजना में ब्याज दर घटाने की फाइल दूर तक जाने लगी।
श्यामला गोपीनाथ कमेटी की रिपोर्ट के हिसाब से तय होती हैं ब्याज दरें
जब मरहूम प्रणब मुखर्जी वित्त मंत्री हुआ करते थे, तब उन्होंने छोटी बचत की योजनाओं पर ब्याज दर तय करने के लिए एक फार्मूला बनवाया था। यह फार्मूला रिजर्व बैंक की तत्कालीन डिप्टी गवर्नर श्यामला गोपीनाथ (Shyamala Gopinath) की अध्यक्षता वाली कमिटी ने तय किया था। अभी शक्तिकांत दास, जो रिजर्व बैंक के गवर्नर हैं, वह उस समय केंद्रीय वित्त मंत्रालय के बजट विभाग में अडिशनल सेक्रेटरी थे। वह भी इस कमेटी के सदस्य थे। इनके अलावा राजीव कुमार, जो अभी नीति आयोग के उपाध्यक्ष हैं, वह उस समय फिक्की के महासचिव हुआ करते थे और वह भी इस कमेटी के सदस्य थे। इसी कमेटी ने जो फार्मूला तय किया था, उसी से छोटी बचत की योजनाओं का ब्याज दर तय किया जाता है।
जिनका कोई है ठिकाना, वह रखते हैं डाकघर में पैसा
पढ़े लिखे और जानकार लोग तो म्यूचुअल फंड और शेयर बाजार में पैसा लगा कर कुछ ही दिनों में 100 फीसदी तक का रिटर्न ले लेते हैं। लेकिन गांव—कस्बे में रहने वाले लोग, कम आमदनी वाले लोग का ठिकाना तो डाकघर और छोटी बचत की योजनाएं ही हैं। उन्हें जब जिंदगी भर की कमाई पर इतना कम ब्याज मिलेगा तो फिर उनका गुस्सा तो कहीं फूटना ही है। आमतौर पर इसी गुस्से से राजनीतिज्ञ डरते हैं।


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