विज्ञान तकनीक से खेती कर इस किसान की कमाई में हुआ है बड़ा इजाफा, पानी की भी हो रही बचत
राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के सलेरा गावं में रहने वाले एक किसान पारंपरिक खेती में बदलाव कर अब मोटी कमाई कर रहे हैं
राजस्थान में भीलवाड़ा जिले के सलेरा गावं में रहने वाले एक किसान पारंपरिक खेती में बदलाव कर अब मोटी कमाई कर रहे हैं. इनका नाम शंकर जाट है और ये करीब 1.25 एकड़ ज़मीन में टमाटर, बीन्स और गेहूं की खेती करते हैं. 45 वर्षीय शंकर जाट पहले इस सवा एकड़ ज़मीन से हर साल करीब 60,000 रुपये ही कमा पाते थे. दरअसल, राजस्थान में खराब मौसम, गर्म हवाओं की वजह से खेती करना मुश्किल होता है. कई बार यहां पानी की कम उपलब्धता की वजह से फसलें रोटेट करना भी मुश्किल होता है. यहां के किसानों को अच्छे मॉनसून पर ही निर्भर रहना होता है.
हालांकि, शंकर जाट ने पिछले कुछ सालों में वैज्ञानिक तकनीकों के बारे में पता किया, जिससे उनकी कमाई अब बढ़कर सालाना 4 लाख रुपये तक हो गई है. वे अब भी उसी ज़मीन पर उन्हीं फसलों से यह कमाई कर रहे हैं. एक रिपोर्ट में उनके हवाले से कहा गया कि शंकर ने 2016 में टमाटर की खेती करनी शुरू की थी. लेकिन उस दौरान उत्पादन कम होता था. फसलों को रोटेट करने के बावजूद भी उन्हें 6 लोगों के परिवार के लिए पर्याप्त कमाई करना मुश्किल होता था.
बाद में उन्होंने भारतीय एग्रो इंडस्ट्रीज फाउडेंशन (BAIF) की मदद से वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने की ट्रेनिंग ली. इस रिसर्च फाउडेंशन से ट्रेनिंग करने के बाद उनकी कमाई बढ़ी है.
70 फीसदी कम पानी में भी कर रहे खेती
एक्सपर्ट्स की मदद से शंकर ने '1057 वेराइटी' के टमाटर की खेती करनी शुरू की. मल्चिंग और ड्रीप इरीगेशन की मदद से एक बीघे ज़मीन पर टमाटर उगा रहे हैं. केवल टमाटर ही नहीं, बल्कि अन्य तरह के फल भी उगा रहे हैं. इसके लिए शंकर गाय के गोबर, मूत्र, पानी, सत्तू और गुड़ की मदद से 'जीवामृत' तैयार करते हैं.
अपनी ज़मीनों को ढंग से इस्तेमाल करने के लिए शंकर सिस्टेमैटिक प्लान्टेशन की भी मदद ले रहे हैं. इसके अलावा मल्चिंग के जरिए खेत से पानी भी कम लगता है. इन दोनों तकनीक की मदद से उन्हें पानी की जरूरत में 60 से 70 फीसदी तक की कमी आई है.
पारंपरिक खेती के दौरान वे हर तीन दिन में एक बार खेत की सिंचाई करते थे. लेकिन, अब हर रोज 20 मिनट तक पौधों को पानी देते हैं. इससे उन्हें तुरंत फायदा हुआ है. उन्हें एक बीघे की अतिरिक्त ज़मीन पर इसी काम को किया. इन प्रयासों से उन्हें अपनी कमाई बढ़ाने में मदद मिली है. बाकी के बचे ज़मीन पर वो गेहूं की खेती कर रहे हैं.
शुरुआत में मल्चिंग के लिए जूझना पड़ा
शंकर बताते हैं कि शुरुआत में उन्हें मल्चिंग के लिए परेशान होना पड़ा, लेकिन BAIF ने उन्हें 0.6 एकड़ ज़मीन पर मल्चिंग करने में मदद की है. हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि शुरुआत में इस तरह के निवेश उनके लिए चुनौती भरा है. इसके लिए उन्हें कुछ रिश्तेदारों से पैसों की मदद लेनी पड़ी.
इस नये तरीके से खेती के बाद आसपास के कई किसान भी शंकर से मदद ले रहे हैं. शंकर से कई किसान सलाह ले रहे हैं. कई किसानों ने तो उन्हीं की राह पर चलकर वैज्ञानिक तरीके से खेती करने का भी फैसला लिया है. खेती से होने वाली इस अतिरिक्त कमाई से ये किसान अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दे पा रहे हैं. साथ ही उन्हें पहले से बेहतर जीवन व्यतीत करने में भी मदद मिल रहा है.