आपके साथ Online Fraud होते ही बैंक करेगा इसकी भरपाई, जान ले RBI के नियम
पिछले कुछ समय से ऑनलाइन बैंकिंग में काफी तेजी आई है.
जनता से रिश्ता बेवङेस्क| पिछले कुछ समय से ऑनलाइन बैंकिंग में काफी तेजी आई है. नेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, यूपीआई और थर्ड पार्टी पेमेंट एप्लिकेशन के जरिए ऑनलाइन ट्रांजैक्शन बढ़े हैं. जैसे-जैसे इसमे तेजी आ रही है, ऑनलाइन फ्रॉड के मामलों में भी उछाल आ रहा है. ऐसे में अकाउंट की सुरक्षा बड़ी जिम्मेदारी है. डिजिटल फ्रॉड के मामलों में बड़ा सवाल ये उठता है कि अगर कस्टमर्स की गलती नहीं है और उसके अकाउंट से पैसे निकाल लिए जाते हैं तो यह जिम्मेदारी किसकी है.
नेशनल कंज्यूमर डिस्प्यूट रेड्रेसल कमिशन ने हाल ही में कहा है कि फ्रॉड ट्रांजैक्शन मामलों में अगर बैंक यह साबित नहीं कर पाता है कि अकाउंट होल्डर्स की गलती है, तो इसकी जिम्मेदारी बैंकों की होगी और उसे इसकी भरपाई भी करनी होगी. के सदस्य सी विश्वनाथ ने कहा कि डिजिटल एज में यह संभव है कि आपके डेबिट और क्रेडिट कार्ड की जानकारी चोरी कर ली जाए और फिर आपके अकाउंट से पैसे निकाले जाएं.
बैंक को करना होगा नुकसान की भरपाई
अगर कोई कस्टमर डेबिट या क्रेडिट कार्ड खो देता है तो यह अकाउंट होल्डर की गलती मानी जाएगी. उसे खोए बिना अगर उसके अकाउंट को हैक कर ट्रांजैक्शन किए जाते हैं तो यह गलती बैंक की होगी, कस्टमर्स की नहीं. इन मामलों में नुकसान की भरपाई बैंक करेगा. ऐसे में मामलों में बैंक को इसलिए दोषी ठहराया गया है क्योंकि उसने इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग में सुरक्षा को लेकर पर्याप्त कदम नहीं उठाए हैं.
क्या है RBI का नोटिफिकेशन
इसको लेकर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 14 दिसंबर 2017 को एक नोटिफिकेशन भी जारी किया था जिसमें फ्रॉड के मामलों में क्या-क्या विकल्प हैं उसकी पूरी जानकारी दी गई है. अगर बैंक की गलती है या थर्ड पार्टी की मदद से किसी फ्रॉड को अंजाम दिया जाता है ( ऐसे मामलों में कस्टमर और बैंक दोनों जिम्मेदार नहीं माना जाते हैं), दोनों तरह के मामलों में कस्टमर की लाएबिलिटी जीरो है. नुकसान की पूरी भरपाई बैंक करेगा, लेकिन इसमें शर्त है कि कस्टमर को फ्रॉड के तीन वर्किंग दिनों के भीतर बैंक को इसकी जानकारी देनी होगी.
क्रेडेंशियल जैसी जानकारी नहीं शेयर करें
अगर कस्टमर अपने अकाउंट संबंधी जानकारी किसी को शेयर करता है (जैसे ओटीपी और क्रेडेंशियल) और उसके साथ फ्रॉड होता है तो इसके लिए वह पूरी तरह जिम्मेदार होगा. बैंक को इसकी सूचना देने के बाद भी अगर उसके अकाउंट से फ्रॉड ट्रांजैक्शन किए जाते हैं तो उसके लिए बैंक जिम्मेदार माना जाएगा.
7 दिनों तक रिपोर्ट करने का मौका
अगर बैंक और कस्टमर दोनों में किसी की गलती नहीं है और इसके बावजूद ऑनलाइन ट्रांजैक्शन किए जाते हैं तो 4-7 वर्किंग दिनों के भीतर रिपोर्ट करने पर कस्टमर्स को भी नुकसान में आंशिक जिम्मेदार होना होगा. यह अलग-अलग अकाउंट के लिए अलग अलग है. हालांकि किसी भी फ्रॉड में कस्टमर का मैक्सिमम नुकसान 25000 रुपए होगा. अगर वह तीन वर्किंग दिनों के भीतर इसकी जानकारी देता है तो उसकी लाएबिलिटी जीरो है. अगर सात दिन के बाद फ्रॉड की जानकारी दी जाती है तो अलग-अलग बैंक के बोर्ड की अपनी-अपनी पॉलिसी है जिसके आधार पर सेटलमेंट किया जाएगा.