इलेक्ट्रिक वाहनों पर स्विच से बढ़ सकता है मुश्किल, पेट्रोल-डीजल से ज्यादा होता है प्रदूषण
इन दिनों पेट्रोल-डीजल के दाम काफी ज्यादा बढ़ गए हैं. आने वाले समय में कीमतें और भी बढ़ने के आसार हैं
इन दिनों पेट्रोल-डीजल के दाम काफी ज्यादा बढ़ गए हैं. आने वाले समय में कीमतें और भी बढ़ने के आसार हैं. ऐसे में विकल्प के तौर पर इलेक्ट्रिक वाहनों (Electrick Vehicles) को देखा जा रहा है. हालांकि इलेक्ट्रिक व्हीकल नॉर्मल मिलने वाली पेट्रोल-डीजल वाहनों से महंगे होते हैं लेकिन लॉन्ग टर्म में इन्हें किफायती माना गया है.
इसके अलावा पॉल्यूशन के हिसाब से इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बेहतर बताया गया है. सड़क एंव परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इलेक्ट्रिक वाहनों के इस्तेमाल पर जोर दिया है. वहीं सरकार ने राष्ट्रीय इलेक्ट्रिक मोबिलिटी मिशन योजना 2020 अधिसूचित की है. इसमें राष्ट्रीय ऊर्जा सुरक्षा बढ़ाने, सड़क पर चलने वाले वाहनों से प्रतिकूल पर्यावरण प्रभाव को कम करने और ईवी के लिये घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाने पर जोर दिया गया है. लेकिन अब बात आती है कि क्या इलेक्ट्रिक वाहन का इस्तेमाल हमारे लिए एक बेहतर विकल्प है?
जाहिर है कि इलेक्ट्रिक व्हीकल में रिचार्जेबल बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है. इन्हें चार्ज करने में कोयले से चल रहे पावरस्टेशन से सप्लाई हो रही बिजली का इस्तेमाल होता है. भारत में ज्यादातर पावरस्टेशन्स में कोयले से बिजली पैदा की जाती है. ऐसे में इलेक्ट्रिक कारों के इस्तेमाल से निकली कार्बन-डाईऑक्साइड की मात्रा लगभग दोगुनी हो जाती है. नतीजन जब तक बैटरी डेवलपमेंट टेक्नोलॉजी में तेजी नहीं आती, इस तरह की रिन्यूबल एनर्जी के लिए व्हीकल्स को स्विच करना जरा भी फायदेमंद नहीं होगा.
पेट्रोल-डीजल से कहीं ज्यादा होता है प्रदूषण
थोड़ा और बेहतर तरीके से समझें तो इलेक्ट्रिक कारों से भले ही आपको वातावरण को दूषित करने वाला धुआं निकलता नजर ना आए मगर इसे पावर देने वाले कारखानों में इसे बहुतायत में देखा जा सकता है. इन कारखानों में बैटरी बनाने के लिए लीथियम, ग्रेफाइट, मैंगनीज और कोबाल्ट जैसे खनिजों की खुदाई और सफाई होती है. कार के कल-पुर्जे भी इन्हें कारखानों में बनते हैं. कोयले से चल रहे पावरस्टेशन से काफी ज्यादा प्रदूषण फैलता है जबकि इनकी बिजली से चलने वाले बैटरी वाहन सड़कों पर बगैर धुएं के चलते नजर आते हैं और हम मान लेते हैं कि इसने पॉल्यूशन नहीं होता.
फिजिक्स के प्रोफ़ेसर बुख़ाल का कहना है कि पावरस्टेशन को शामिल किया जाए तो टेस्ला-3 जैसी इलेक्ट्रिक कार प्रति-किलोमीटर चलने पर 156 से 181 ग्राम CO2 उत्सर्जित करेगी जोकि डीजल से चलने वाली मर्सिडीज कार के मुकाबले कहीं ज्यादा है.
EV से पहले पावरस्टेशन होना चाहिए अपडेट
हमें लगता है इलेक्ट्रिक वाहन पर स्विच होना एक बड़ी अच्छी पहल है लेकिन किसी भी देश को इलेक्ट्रिक व्हीकल पर स्विच करने से पहले पावरस्टेशन के ईंधन को स्विच करना चाहिए. प्रदूषण को रोकने के लिए पावरस्टेशन्स को रिन्यूबल एनर्जी सोर्स से चलाने की जरूरत है. इस पर जब तक अमल नहीं किया जाएगा, इलेक्ट्रिक व्हीकल के इस्तेमाल से आपकी जेब पर बोझ बढ़ने के सिवा कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है.
इलेक्ट्रिक वाहनों में इस्तेमाल हो रही बैटरी के भंडार सीमित
फिलहाल की बात करें तो सभी इलेक्ट्रिक डिवाइस में लीथियम-आयन बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है. दुनियाभर में लीथियम के सीमित भंडार हैं. इसमें दो तिहाई लीथियम चिली, अर्जेंटीना और बोलीविया में पाया जाता है. वहीं इसे निकालना भी काफी मुश्किल है. एक टन लीथियम निकालने के लिए 20 लाख लीटर पानी और ढेर सारी बिजली खर्च होती है. अब आप समझ सकते हैं कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों में यूज हो रही लीथियम बैटरी के लिए खर्च और पर्यावरण का संतुलन दोनों किस हद तक बिगड़ सकते हैं.