डॉ राजेंद्र प्रसाद सेंट्रल एग्रीकल्चरल यूनिवर्सिटी,पूसा-, समस्तीपुर,बिहार के अखिल भारतीय फल अनुसंधान परियोजना के प्रधान अन्वेषक, प्रोफेसर (प्लांट पैथोलॉजी), सह निदेशक अनुसंधान डॉ एस के सिंह ने पपीते की खेती से जुड़ी जरूरी जानकारी दी है.
पपीते की खेती से कमाई का मौका
पपीता आम के बाद विटामिन ए का सबसे अच्छा स्रोत है. यह कोलेस्ट्रोल, सुगर और वजन(Cholesterol, Sugar and Weight) घटाने में भी मदद करता है, यही कारण है कि डॉक्टर भी इसे खाने की सलाह देते हैं. यह आंखों की रोशनी बढ़ाता है और महिलाओं के पीरियड्स के दौरान दर्द कम करता है.
पपीते में पाया जाने वाला एन्जाइम 'पपेन'Enzyme 'Papain' औषधीय गुणों (medicinal properties)से युक्त होता है. यही कारण है कि पपीते की मांग लगातार बढ़ रही है. बढ़ते बाज़ार की मांग को देखते हुए लोगों ने इसकी खेती की तरफ ध्यान दिया है और सिर्फ एक दशक में पपीते की खेती तीन गुना बढ़ गई है. भारत पपीता उत्पादन में विश्व में पहले नंबर पर (प्रति वर्ष 56.39 लाख टन) है. इसका विदेशों में निर्यात भी किया जाता है.
पपीते की फसल साल भर के अंदर ही फल देने लगती है, इसलिए इसे नकदी फसल समझा जा सकता है. इसको बेचने के लिए (कच्चे से लेकर पक्के होने तक) किसान भाइयों के पास लंबा समय होता है. इसलिए फसलों के उचित दाम मिलते हैं.
इसे 1.8X1.8 मीटर की दूरी पर पौधे लगाने के तरीके से खेती करने पर प्रति हेक्टेयर तकरीबन एक लाख रुपये तक की लागत आती है, जबकि 1.25X1.25 मीटर की दूरी पर पेड़ लगाकर सघन तरीके से खेती करने पर दो लाख रुपये तक की लागत आती है. लेकिन इससे न्यूनतम तीन से चार लाख रुपये प्रति हेक्टेयर तक की शुद्ध कमाई की जा सकती है.
प्रजातियों के पहचान कर ही खेती करें
पपीता उष्ण कटिबंधीय फल (tropical fruit) है. इसकी अलग-अलग किस्मों को जून-जुलाई से लेकर अक्टूबर-नवंबर या फरवरी-मार्च तक बोया जा सकता है. पपीते की फसल पानी को लेकर बहुत संवेदनशील होती है. बुवाई से लेकर फल आने तक भी इसे उचित मात्रा में पानी चाहिए. पानी की कमी से पौधों और फलों की बढ़त पर असर पड़ता है, जबकि जल की अधिकता होने से पौधा नष्ट हो जाता है. यही कारण है कि इसकी खेती उन्हीं खेतों में की जानी चाहिए जहां पानी एकत्र न होता हो. गर्मी में हर हफ्ते तो ठंड में दो हफ्ते के बीच इनकी (irrigation) की व्यवस्था होनी चाहिए. पपीते की खेती में उन्नत किस्म (improved variety) की बीजों को अधिकृत जगहों से ही लेना चाहिए. बीजों को अच्छे जुताई किए हुए खेतों में एक सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए. बीजों को नुकसान से बचाने के लिए कीटनाशक-फफूंदनाशक (insecticide-fungicide) दवाइयों का प्रयोग करना चाहिए. पपीते का पौधा लगाने के लिए 60X60X60 सेंटीमीटर का गड्ढा बनाया जाना चाहिए.
सलाह से ही उर्वरक का इस्तेमाल करें
इसमें उचित मात्रा में नाइट्रोजन, फोस्फोरस और पोटाश ( Nitrogen, Phosphorus and Potash) और देशी खादों को डालकर 20 सेंटीमीटर की ऊंचाई का तैयार पौधा इनमें रोपना चाहिए. पपीते के बेहतर उत्पादन के लिए 20 डिग्री सेंटीग्रेड से लेकर 30 डिग्री सेंटीग्रेड का तापमान सबसे उपयुक्त होता है. इसके लिए सामान्य पीएच मान वाली बलुई दोमट मिट्टी बेहतर मानी जाती है. पपीते के पौधे में एफीड एवं सफेद मक्खी(aphid and whitefly) से फैलने वाला वायरस के द्वारा होने वाला पर्ण संकुचन रोग (foliar contracture disease)और रिंग स्पॉट रोग (ring spot disease)लगता है. इससे बचाव के लिए डाइमथोएट (dimethoate)(2 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में) के घोल का छिड़काव करना चाहिए. उचित सलाह के लिए हमेशा कृषि वैज्ञानिकों या कृषि सलाहकार केंद्रो (Agriculture Advisory Centers) के संपर्क में रहना चाहिए.
एक साथ कई और फसलें भी लगाएं
पपीते के दो पौधों के बीच पर्याप्त जगह होती है. इसलिए इनके बीच छोटे आकर के पौधे वाली सब्जियां किसान को अतिरिक्त आय देती हैं. इनके पेड़ों के बीच प्याज, पालक, मेथी, मटर या बीन की खेती की जा सकती है. केवल इन फसलों के माध्यम से भी किसान को अच्छा लाभ हो जाता है. इसे पपीते की खेती के साथ बोनस के रूप में देखा जा सकता है. पपीते की फसल के सावधानी यह रखनी चाहिए कि एक बार फसल लेने के बाद उसी खेत में तीन साल तक पपीते की खेती करने से बचना चाहिए क्योंकि एक ही जगह पर लगातार खेती करने से फलों का आकार छोटा होने लगता है.