मणिपुर में मैतेयी और कुकी समुदाय को लेकर पिछले दो महीनों से भी ज्यादा समय से विवाद चल रहा है। यह विवाद 3 मई को शुरू हुआ था। यह विवाद हिंसक हो गया है, इसलिए दोनों समुदायों के सौ से भी अधिक लोग मारे जा चुके हैं। सबसे दुख की बात यह है कि दोनों समुदायों के इस झगड़े में औरतों को अपमानित किया जा रहा है। इस विवाद के कारणों की अपने-अपने ढंग से मीमांसा की जा रही है। कुछ तात्कालिक कारण हैं और कुछ स्थायी कारण हैं। लेकिन इस झगड़े में मजहब कोई कारक नहीं है। परन्तु दुर्भाग्य से विदेशी मूल की ईसाई मिशनरियां इस विवाद को मजहब यानी रिलीजन से जोडक़र एक नया विवाद खड़ा करने का प्रयास कर रही हैं। हाल ही में सीरिया-मालाबार कैथोलिक चर्च की तेल्लीचेरी की आर्कडायकोजी के आर्कबिशप जोसफ पम्पलाणी ने आरोप लगाया कि इस विवाद के बहाने मणिपुर से ईसाइयों की नस्ल खत्म करने का प्रयास किया जा रहा है। केरल से एक आर्कबिशप जो काफी समय बेल्जियम में भी रहा है, का मणिपुर के इस विवाद में चाल की तरह कूद पडऩा आश्चर्यचकित करता है। वह भी उस समय जब मणिपुर के चर्च भी इस प्रकार का आरोप लगाने से संकोच कर रहे हैं। कुछ समय बाद तेल्लीच्री के इस आर्कबिशप की इस टिप्पणी का सहारा लेकर विदेशों में चर्च इस प्रकार के दोषारोपण में सक्रिय हो सकता है। वैसे कुछ सीमा तक हो ही चुका है।
क्या यह विवाद सचमुच ही ईसाई-हिन्दू विवाद है? इसके उत्तर के लिए मणिपुर के समाजशास्त्र के साथ साथ वहां के भूगोल को भी समझना होगा। मणिपुर में इम्फाल घाटी चारों ओर से पर्वतीय श्रृंखलाओं से घिरी हुई है। जाहिर है घाटी का क्षेत्रफल पर्वतीय क्षेत्र के मुकाबले बहुत ही कम है। मणिपुर के कुल क्षेत्रफल का दस प्रतिशत हिस्सा घाटी है और बाकी 90 फीसदी हिस्सा पहाड़ी है। लेकिन जहां तक आबादी का प्रश्न है, राज्य की लगभग साठ प्रतिशत आबादी इम्फाल घाटी में रहती है और शेष 40 प्रतिशत आबादी पहाड़ों में रहती है। मणिपुर में मुख्य तौर पर तीन समुदायों के लोग रहते हैं। ये समुदाय मैतेयी, कुकी और नागा के नाम से जाने जाते हैं। स्पष्ट रूप से समझना हो तो मैतेयी मोटे तौर पर इम्फाल घाटी में रहते हैं और कुकी व नागा पहाड़ में रहते हैं। मैतेयी की जनसंख्या मणिपुर की कुल जनसंख्या का लगभग साठ प्रतिशत है और शेष चालीस प्रतिशत कुकी-नागा की जनसंख्या है। लेकिन इन आंकड़ों के सहारे भी राज्य की समस्या को समझा नहीं जा सकता। इससे आगे का सवाल मणिपुर की जनसंख्या के आपसे संबंधों या उसकी भीतरी हदबन्दी का है। यह हदबन्दी किसने की और क्यों की? ऊपर से देखने पर लगता है कि मणिपुर के ये तीनों परस्पर विरोधी हैं। अभी जो चल रहा है, उसे देखकर तो कोई भी यही कहेगा कि तीनों एक-दूसरे की जान के दुश्मन हैं। फिलहाल मणिपुर में मैतेयी और कुकी में संघर्ष चल रहा है, उसमें नागा कहीं नहीं हैं। लेकिन अभी तक मोटे तौर पर यह झगड़ा कुकी और नागा के बीच में चलता था। 1993 में हुआ कुकी-नागा संघर्ष कई महीने चला था जिसमें 230 से भी ज्यादा लोग मारे गए थे। नागा-कुकी संघर्ष में मैतेयी का सीधा संबंध तो नहीं होता था, लेकिन उसका संताप मैतेयी को भी झेलना पड़ता था क्योंकि इम्फाल घाटी तक पहुंचने का रास्ता उसके पहाड़ों से होकर ही आता है। कुकी-नागा के संघर्ष में ये रास्ते अवरुद्ध हो जाते थे और इम्फाल घाटी में दैनिक जीवन की वस्तुओं का भी संकट आ जाता था। एक प्रकार से कुकी-नागा संघर्ष में इम्फाल घाटी की घेराबन्दी हो जाती थी। लेकिन इस बार भिड़न्त कुकी और मैतेयी के बीच हुई है। इसलिए यह सोचना जरूरी है कि क्या ये तीनों समुदाय सचमुच परस्पर विरोधी और एक-दूसरे की जान के दुश्मन हैं? मणिपुर के साथ ही असम वगैरह में भी बड़ी संख्या में मैतेयी रहते हैं। असम की बराक घाटी में बहुत से मैतेयी रहते हैं।
इसी प्रकार कुकी असम के अतिरिक्त मिजोरम में बड़ी संख्या में रहते हैं। लेकिन असम में अंग्रेजों के आने से पूर्व इन समुदायों में आपस में कोई झगड़ा नहीं था। मणिपुर में प्रचलित एक कथा के अनुसार मैतेयी, कुकी और नागा तीनों आपस में भाई हैं। दरअसल अंग्रेजों के आने से पूर्व कुकी और नागा नाम भी प्रचलित नहीं थे। मणिपुर में मैतेयी के अतिरिक्त तांखुल, कबुई, माओ, मरींग, पुरम, मराम, चीरू मथोन, अंगामी समुदाय के लोग रहते हैं। अंग्रेजों ने अपने उपनिवेशवादी हितों के लिए इन सभी समुदायों को नया नाम नागा का दिया। इसी प्रकार मणिपुर के दक्षिणी पहाड़ी क्षेत्र में थादौ, पाइते, हमार, बाइफै, गाइते, सिमते, चोथे, रालते इत्यादि पहाड़ी समुदायों के लोग रहते हैं। इन सभी के लिए अंग्रेजों ने कुकी शब्द का प्रयोग करना शुरू किया। 1857 की आजादी की पहली लड़ाई में मणिपुर के मगांग, लुवांग, खुमान, अंगोम, मोयरंग, चेंगली, खा नगांबा मैतेयी समुदायों ने महत्वपूर्ण हिस्सा लिया और कई काला पानी यानी अंडेमान निकोबार में जलावतन भी हुए। इसी प्रकार कालान्तर में कुकी के नाम से जाने वाले समुदायों का बीसवीं सदी के शुरू में अंग्रेजों से लम्बा युद्ध हुआ। इसके परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने नई प्रकार की फौज मणिपुर में उतारी। यह फौज ईसाई मिशनरियों की थी और दूसरी फौज नृविज्ञानियों यानि एंथ्रापोलोजिस्टों की थी। मिशनरियों ने इन समुदायों को मतान्तरित करना शुरू किया। नृविज्ञानियों ने कुछ समुदायों को एक साथ रख कर उनको कुकी की नई पहचान दी। इसी प्रकार शेष बचे समुदायों को एकत्रित कर नागा कहना लिखना शुरू किया। इस प्रकार सात समुदायों के लोग मैतेयी कहे जाने लगे। शेष 31 समुदायों के लोग दो हिस्सों में विभक्त होकर कुकी और नागा कहलाने लगे। लेकिन अभी भी इन तीनों समुदायों का मौखिक इतिहास इन्हें आपस में जोड़ता था। उस मौखिक इतिहास को ब्रिटिश इतिहासकारों और नृविज्ञानियों ने मिथक कह कर ख़ारिज करना शुरू कर दिया। ये सभी समुदाय अन्य लोगों की तरह प्रकृति के अनेक रूपों की पूजा उपासना करते थे। जैसे जल, अग्नि, वायु, आकाश और पृथ्वी के विविध रूपों की। आत्मा के अस्तित्व को लेकर इन समुदायों में अनेक अवधारणाएं थीं। लेकिन इनके लिए यूरोपीय भाषाओं में प्रचलित एनीमिस्ट शब्द का प्रयोग करना शुरू किया। मैतेयी समुदाय में तो ग्राम देवता की अवधारणा प्रचलित थी। किसी भी शुभ अवसर पर ग्राम देवता का आह्वान किया जाता था।
उधर यूरोपीय मिशनरी मणिपुर के इन समुदायों को मतान्तरित करने में लगे थे, इधर उनके ही नृविज्ञानी मैतेयी, कुकी और नागा की अलग पहचान ही स्थापित नहीं कर रहे थे, बल्कि उनको एक दूसरे के विरोध में भी स्थापित कर रहे थे। जल्दी ही इसके परिणाम भी आने शुरू हो गए। मैतेयी तो इतनी ज्यादा संख्या में ईसाई नहीं बने (आज उनकी संख्या दो-तीन लाख के बीच है), लेकिन कुकी और नागा तो लगभग शत प्रतिशत ही ईसाई हो गए। अंग्रेजों के चले जाने के बाद सभी रियासतों पर देश का संविधान लागू हो गया। संविधान में कुछ समुदायों को ट्राइब का नाम देकर उन्हें अलग से अनुसूचित किया गया। बोलचाल की भाषा में इन समुदायों को एसटी कहा जाने लगा। मणिपुर में कुकी समूह के समुदायों और नागा समूह के समुदायों को एसटी की सूची में रखा गया। लेकिन मैतेयी को इस सूची से बाहर रखा गया। अंग्रेजों की चाल से इतना जरूर हुआ कि मैतेयी, कुकी और नागा समूहों के भीतरी संबंध दरकने लगे और वे एक-दूसरे से अनजान ही नहीं विरोधी होने लगे। यही कारण है कि आज जब मैतेयी और कुकी का विवाद शुरू हुआ तो ईसाई मैतेयी ने कुकी ईसाई के चर्च जला दिए और कुकी ईसाई ने मैतेयी ईसाई के चर्च जला दिए। केरल का चर्च इस विवाद को हिन्दू-ईसाई विवाद कह कर दुनिया भर में अपना वही पुराना खेल पुन: चालू कर रहा है ताकि कहा जा सके कि मोदी सरकार अल्पसंख्यक मजहब वालों पर अत्याचार कर रही है।
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कुलदीप चंद अग्निहोत्री
वरिष्ठ स्तंभकार
By: divyahimachal