रिकॉर्ड पैदावार के बाद भी सरसों की भारी किल्लत
सरसों की पैदावार 2020-21 में 104.3 लाख टन होने की उम्मीद है
पिछले कुछ महीनों में खाद्य तेल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि दर्ज हुई है. अभी भी दाम कम नहीं हो रहे हैं. देश में इस बार सरसों का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ है. बावजूद इसके तेल की कीमतों पर कोई असर नहीं पड़ रहा है. अभी आम जनता तेल के बढ़े हुए रेट्स से तो परेशान है ही, लेकिन आगे चल कर और भी समस्या पैदा हो सकती है. विशेषज्ञों का कहना है कि आने वाले कुछ महीनों में देश में सरसों की भारी किल्लत होने की उम्मीद है. ऐसे में एक बार और कीमतों में तेजी देखने को मिले तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए.
कृषि मंत्रालय के उपज अनुमान के आंकड़ों के मुताबिक, सरसों की पैदावार 2020-21 में 104.3 लाख टन होने की उम्मीद है. पिछले साल यह 91.2 टन था. देश में कभी भी इतनी सरसों की पैदावार नहीं हुई है. बावजूद इसके सरसों एमएसपी से अधिक मूल्य पर बिक रही है. सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4650 रुपए है. लेकिन देश के ज्यादातर मंडियों में किसानों को ज्यादा कीमत मिल रही है.
एमएसपी से 3000 हजार रुपए अधिक कीमत पर बिक रही सरसों
ताजा आंकड़ों की बात करें तो बुधवार को आगरा की सलोनी मंडी में 7600 रुपए प्रति क्विंटल के भाव से सरसों की खरीद हुई है. जयपुर मंडी में 7350 रुपए क्विंटल के भाव से खरीदा जा रहा है. राजस्थान के कोटा में कच्ची घानी तेल का भाव 15 हजार 500 रुपए क्विंटल (जीएसटी अलग से) था. 104 टन से अधिक पैदावार के बाद भी दाम में कमी नहीं हो रही है और तेजी बरकरार है.
आयातित तेल से सस्ता होने का कारण बढ़ी है मांग
तेल कारोबार से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि आयातित तेल के मुकाबले सरसों काफी सस्ता है. इसके अलावा यह मिलावट मुक्त होता है. इस कारण मंडियों में इसकी भारी मांग है. हाल के दिनों में सरसों की खपत काफी तेजी से बढ़ी है क्योंकि कुछ कंपनियां तेल की मांग को पूरा करने के लिए सरसों से ही रिफाइंड तेल बना रही हैं. अगर यहीं स्थिति आगे भी रहती है तो देश में आने वाले महीनों में सरसों की भारी किल्लत हो सकती है.
रिफाइंड बनाने वाली मीलें भी खरीद रही हैं सरसों
विशेषज्ञ बताते हैं कि तिलहन के मामले में भारत अभी दूसरे देशों पर निर्भर है. इसलिए सरसों की अच्छी पैदावार के बावजूद किसानों को इसका अच्छा दाम मिल रहा है. खाद्य तेलों के इंपोर्ट पर सालाना 70,000 करोड़ रुपए से अधिक का खर्च हो रहा है. एक कारण सोयाबीन का महंगा होना भी है. रिफाइंड बनाने वाली मिलें भी रिफाइंड के लिए सरसों खरीद रही हैं. मंडियों में सोयाबीन की आवक काफी कम है और व्यापारियों के पास स्टॉक खत्म होने की कगार पर है. यहीं वजह है कि सभी मीलें स्टॉक के लिए भी सरसों की तरफ ही देख रही हैं.
सरसों में अन्य खाद्य तेल मिलाने पर है रोक
अपने देश में सरसों की खेती मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में की जाती है. लेकिन खाद्य तेल के रूप में देशभर में इसका उपयोग किया जाता है. सरसों के तेल में पाए जाने वाले औषधीय गुण के कारण इसकी मांग बाजार में हमेशा बनी रहती है. औषधीय गुण के कारण ही सरकार ने सरसों के तेल में अन्य खाद्य तेल मिलाने पर रोक लगा दी है. इसका सीधा फायदा किसानों को होता है.