मेटा और व्हाट्सएप ने भारत को गले लगाया

Update: 2023-07-27 10:55 GMT

भारत का डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचा (डीपीआई) एक अद्भूत मॉडल है. यह जनहित पर केंद्रित है. व्यापक आधार पर प्रौद्योगिकी आधारित यह मॉडल अन्य राष्ट्रों के लिए बहुत बढ़िया है, जिसका इस्तेमाल कर वे अपने नागरिकों को डिजिटल रूप से सशक्त बना सकते हैं. मेटा के अंतरराष्ट्रीय मामलों के अध्यक्ष निक क्लेग ने बुधवार को कहा, जब डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे के निर्माण की बात आती है तो हिंदुस्तान में यह जिस स्तर पर हुआ है और सार्वजनिक भलाई के जिस दर्शन पर आधारित है, वह अपने आप में अनूठा है. इसमें सबसे जरूरी पहलू इसकी व्यापक स्तर पर आरंभ है.

उन्होंने कहा, भले ही यह गवर्नमेंट के जरिये संचालित नहीं है, लेकिन इसमें सुनिश्चित किया गया है कि यह एक मुक्त और हर स्थान काम करने वाली प्रबंध हो. मेरे लिए बड़ी बात यह है कि इसमें राज्य के लाभ से अधिक नागरिक भलाई को तवज्जो दी गई है.

डिजिटल बदलाव…भारत की कहानी’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में क्लेग ने बोला कि मेटा और वॉट्सएप ने स्वास्थ्य (कोविड टीकाकरण प्रमाणपत्र डाउनलोड के दौरान) और भुगतान सहित हिंदुस्तान की डिजिटल सार्वजनिक पहल को आत्मसात किया. उसे आगे बढ़ाने में सहायता की. मेटा जैसी प्राइवेट सेक्टर की अन्य बड़ी कंपनियां भी हिंदुस्तान के डिजिटल परिवर्तन की कहानी से जुड़ने और उसे आगे बढ़ाने की इच्छुक हैं. क्लेग ने कहा, हम इस समय ओएनडीसी के साथ काम कर रहे हैं ताकि देखा जा सके कि हम और क्या कर सकते हैं. यह सुनिश्चित करने की दिशा में भी काम कर रहे हैं कि कार्ड से भुगतान और मर्चेंट भुगतान की सुविधा हो.

नागरिकों को मिलना चाहिए प्रौद्योगिकी का लाभ: कांत

कार्यक्रम में हिंदुस्तान के जी-20 शेरपा अमिताभ कांत ने कहा, प्रौद्योगिकी समाज के लिए लंबी छलांग लगाने को हकीकत बनाने में मददगार है क्योंकि यह खुला साधन है. यह बड़ी प्रौद्योगिकी कंपनियों के लिए जरूरी है कि वे इसी प्रकार की प्रबंध अपनाएं. उन्होंने कहा, आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) उभरते बाजारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण और कई चुनौतियों के निवारण में जरूरी परिवर्तन ला सकती है. इसलिए, प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ने देना चाहिए और उसका फायदा नागरिकों को मिलना चाहिए.

इसलिए नवप्रवर्तन में पिछड़ा यूरोप

कांत ने कहा, नवाचार में नियामक बहुत पीछे रहते हैं. इसलिए, एआई को बहुत अधिक नियमन के दायरे में लाने की प्रयास न हो. यूरोप यही कर रहा है. उसने एआई अधिनियम बनाया है. कायदे-काननू पर अत्यधिक बल से ही यूरोप नवप्रवर्तन में अमेरिका से पिछड़ गया है. एआई का प्रतिकूल असर हो सकता है. ऐसे में कायदे-कानून के बजाय हमें उपयोगकर्ता मामलों को साफ रूप से परिभाषित करने की आवश्यकता है

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