महंगाई की फिर मार: 11 साल में सबसे महंगे हुए खाद्य तेलों के दाम

कोरोना के चलते बंदी की वजह से कई लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है।

Update: 2021-05-26 16:39 GMT

कोरोना के चलते बंदी की वजह से कई लोगों को रोजगार से हाथ धोना पड़ा है। काम बंद होने से वह अपने गांव की ओर लौट गए। वहीं लॉकडान के बीच बढ़ती महंगाई लोगों की कमर तोड़ रही है। दैनिक क्रिया में प्रयोग किए जाने से लेकर खाद्य तेल तक काफी महंगे हो गए हैं। तेल की बढ़ी कीमत ने भोजन का जायका बिगाड़ दिया है। इससे गृहणियां परेशान है। लोगों को घर का खर्च भी चलाना मुश्किल हो रहा है। महंगाई के इस दौरान में बस किसी तरह से लोग जीवन-यापन करने में जुटे हुए हैं।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस महीने खाद्य तेलों के दाम पिछले एक दशक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं। स्टेट सिविल सप्लाईज डिपार्टमेंट के आंकड़ों के मुताबिक, देश में खाद्य तेल के मासिक औसत दाम जनवरी 2010 से अब तक के अपने सबसे ऊंचे स्तर पर पहुंच गए हैं।
इतनी हुई खाद्य तेलों की कीमत
डाटा के अनुसार, मई में सरसों के तेल का औसत दाम 164.44 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया। पिछले साल मई से यह 39 फीसदी अधिक है। तब सरसों का तेल 118.25 रुपये प्रति किलोग्राम था। वहीं मई 2010 में यह 63.05 रुपये प्रति किलोग्राम था।
पाम ऑयल की बात करें, तो यह भी भारत के कई घरों में इस्तेमाल किया जाता है। मई में इसका औसत दाम 131.69 रुपये प्रति किलोग्राम रहा। यह पिछले साल के मुकाबले 49 फीसदी अधिक है। मई 2020 में पाम ऑयल की औसत कीमत 88.27 रुपये प्रति किलोग्राम थी। अप्रैल 2010 में यह 49.13 रुपये प्रति किलोग्राम था।
इस महीने मूंगफली के तेल का औसत दाम 175.55 रुपये रहा।
वनस्पति की कीमत 128.7 रुपये रही।
सोयाबीन तेल 148.27 रुपये का हो गया।
सनफ्लावर तेल 169.54 रुपये प्रति किलोग्राम तक पहुंच गया है। पिछले साल की तुलना में इन तेलों के औसत दाम में 19 से 52 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
मालूम हो कि सोमवार को खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग ने खाद्य तेलों की बढ़ती कीमत को लेकर इसमें शामिल सभी पक्षों के साथ बैठक की थी। इस दौरान विभाग ने राज्यों और व्यापारों से खाद्य तेलों के दाम में कमी लाने के लिए कदम उठाने को कहा। भारत में खाद्य तेल का 60 फीसदी से अधिक का आयात विदेशों से होता है इसलिए अंतरराष्ट्रीय कीमतों के साथ इसको जोड़कर देखा जाता है।


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