अगर तुड़वा रहे हैं FD तो जानें ये जरूरी बात, नहीं तो हो सकता है नुकसान
एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट निवेश का एक पॉपुलर तरीका है
एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट निवेश का एक पॉपुलर तरीका है. एफडी की एक मेच्योरिटी अवधि होती है. निवेशक अपने अनुसार चुनाव करता है कि उसे कितने साल के लिए पैसा जमा करना है और रिटर्न लेना है. 5 साल या इससे अधिक सीमा की एफडी पर मैच्योरिटी रकम में टैक्स में छूट भी मिलती है. हालांकि आप चाहे तो इमरजेंसी में जरूरत पड़ने पर एफडी तय वक्त से पहले भी तुड़वा सकते हैं. मगर इस दौरान आपको कुछ बातों की जानकारी जरूरी है. क्योंकि जल्दबाजी में उठाए गए कदम से आपको पैसों का नुकसान हो सकात है.
मेच्योरिटी से पहले एफडी तोड़ने पर आपको ब्याज का नुकसान होता है. अलग अलग बैंकों में इसे लेकर कई तरह के नियम है. जिसके आधर पर पेनाल्टी लगाई जाती है. वक्त से पहले एफडी का पैसा निकलवाने की प्रक्रिया को प्री-मैच्योर विड्रॉल भी कहते हैं.
कितना होता है नुकसान
एफडी में प्रीमेच्योर बिद्ड्रॉल लेने पर निवेशकों को पेनल्टी के रूप में एक तय अमाउंट बैंक को देना होता है. यह अमूमन 0.5 फीसदी से 1 फीसदी की रेंज में होता है. हालांकि कुछ बैंक जीरो पेनल्टी पर भी इसकी सुविधा देते हैं. वहीं, अगर मेच्योरिटी से सिर्फ 7 दिन पहले एफडी तोड़ते हैं तो कई बैंक इस पर कोई चार्ज नहीं लिया जाता है.
कैसे होती है टैक्स की गणना
निवेशक जिस साल एफडी लेता है उस पर आयकर कानून की धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपए पर टैक्स छूट का लाभ मिलता है. ये फायदा 5 साल तक के एफडी स्कीम्स पर उपलब्ध होता है. यदि इमरजेंसी में रुपयों की जरूत पूरा करने पर इसे मैच्योर होने से पहले निकालते हैं तो जिस साल आपने ऐसा किया, उस साल वह पूरी रकम आपकी आय में जोड़ दी जाएगी, जिस पर आपने इनकम टैक्स छूट का लाभ लिया है. इसके अलावा प्राप्त ब्याज को भी आपकी आय में जोड़ दिया जाएगा. इसके बाद आप जिस इनकम टैक्स स्लैब में आएंगे उस आधार पर आपसे टैक्स वसूला जाएगा.