यहां किसानों को मिलेगा सबसे पहले नैनो यूरिया, जानिए खासियत...

नैनो यूरिया की खासियत

Update: 2021-06-07 08:37 GMT

इंडियन फारमर्स फर्टिलाइजर कोऑपरेटिव लिमिटेड (इफको) ने विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर नैनो यूरिया तरल की अपनी पहली खेप किसानों के उपयोग के लिए उत्तर प्रदेश भेजी है.इफको की ओर से जारी बयान में यह जानकारी दी गई. नैनो यूरिया तरल एक नया और अनोखा उर्वरक है जिसे दुनिया में पहली बार इफको द्वारा गुजरात के कलोल के नैनो बायोटेक्नोलॉजी रिसर्च सेंटर में पेटेंटेड तकनीक से विकसित किया गया है. इफको के प्रबंध निदेशक डॉ. उदय शंकर अवस्थी ने 31 मई, 2021 को नई दिल्ली में हुई प्रतिनिधि महासभा के सदस्यों की 50वीं वार्षिक आमसभा की बैठक के दौरान इस उत्पाद को दुनिया के सामने पेश किया. इसकी पहली खेप को गुजरात के कलोल से हरी झंडी दिखाकर रवाना किया गया. इफको के उपाध्यक्ष दिलीप संघाणी ने कहा कि "इफको नैनो यूरिया 21वीं सदी का उत्पाद है. आज के समय की जरूरत है कि हम पर्यावरण, मृदा, वायु और जल को स्वच्छ और सुरक्षित रखते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करें.

नैनो यूरिया की खासियत
यूरिया की जरूरत 50 फीसदी तक कम करेगा. पर्यावरण अनुकूल उत्पाद है. मिट्टी, हवा और पानी के प्रदूषण को रोकने में सहायक है. नैनो यूरिया में नाइट्रोजन के नैनो आकार के कण होते हैं. इन कणों का औसत भौतिक आकार 20-50 नैनोमीटर की सीमा में है.
पत्तियों पर छिड़काव के बाद नैनो यूरिया के कण स्टोमेटा एवं अन्य संरचनाओं के माध्यम से आसानी से पत्तियों में प्रवेश कर कोशिकाओं द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं. ये कण बड़ी आसानी से पौधे की आवश्यकतानुसार अन्य भागों में वितरित हो जाते हैं. पौधे के उपयोग के बाद बची हुई नाइट्रोजन रिक्तिकाओं (Vacuole) में जमा हो जाती है और आवश्यकतानुसार पौधौं को उपलब्ध होती रहती है.
कहां बन रहा है नैनो यूरिया
गुजरात के कलोल एवं उत्तर प्रदेश के आंवला और फूलपुर की इफको की इकाइयों में नैनो यूरिया संयंत्रों के निर्माण की प्रक्रिया पहले ही शुरू की जा चुकी है. प्रथम चरण में 14 करोड़ बोतलों की वार्षिक उत्पादन क्षमता विकसित की जा रही है.
दूसरे चरण में वर्ष 2023 तक अतिरिक्त 18 करोड़ बोतलों का उत्पादन किया जाएगा. इस प्रकार वर्ष 2023 तक ये 32 करोड़ बोतलें संभवतः 1.37 करोड़ टन यूरिया की जगह लेंगी.
बयान में कहा गया है कि इफको नैनो यूरिया पर्यावरण की दृष्टि से अनुकूल है. लीचिंग और गैसीय उत्सर्जन के जरिये खेतों से हो रहे पोषक तत्वों के नुकसान से पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन पर असर हो रहा है. इसे नैनो यूरिया के प्रयोग से कम किया जा सकता है क्योंकि इसका कोई अवशिष्ट प्रभाव नहीं है.
भारत में खपत होने वाले कुल नाइट्रोजन उर्वरकों में से 82 प्रतिशत हिस्सा यूरिया का है और पिछले कुछ वर्षों में इसकी खपत में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई है.वर्ष 2020-21 के दौरान यूरिया की खपत 3.7 करोड़ टन तक पहुँचने का अनुमान है.
परम्परागत यूरिया का लगभग 30-50 प्रतिशत नाइट्रोजन ही पौधों के काम आता है. बाकी वाष्पीकरण और पानी व मिट्टी के बहाव व कटाव आदि के बीच रासायनिक परिवर्तनों के चलते बेकार चला जाता है.
तरल नैनो यूरिया से पोषक तत्वों का सदुपायोग बढ़ता है और यह लम्बे समय में प्रदूषण और वायुमंडल गर्म होने की समस्या को कम करने में सहायक हो सकता है.


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