इंटरनेशनल मार्केट में कदम रखने का किया फैसला

Update: 2023-08-10 04:01 GMT

साल 2007 तक राष्ट्र के नौ शहरों तक उनकी पहुंच हो गई थी। इसके बाद उन्होंने इंटरनेशनल बाजार में कदम रखने का निर्णय किया। साल 2008 में एशिया के सबसे बड़े मॉल में उनका काउंटर खुला। इसके बाद न्यूजीलैंड में भी उन्होंने अपना काउंटर खोला।

मुश्किलों से पार पा कर अपने मुकाम को हासिल करने वाले लोग दुनिया में बहुत कम है। इन्हीं चुनिंदा लोगों में से एक है प्रेम गणपति जो मेहनत के दम पर इतना आगे निकल गए की उन्होंने गरीबी को पीछे छोड़ दिया और करोड़पति क्लब में शामिल हो गए। वो ऐसे व्यवसायी बन गए हैं जिन्होंने लगातार सालों तक मेहनत की और खास मुकाम हासिल किया है।

लहरों से डर कर नौका पार नहीं होती, प्रयास करने वालों की कभी हार नहीं होती। जीवन में आने वाली मुश्किलों का सामना करने से ही जीवन निखरता है। इन्हीं मुश्किलों को पार किया है प्रेम गणपति ने, जिन्होंने प्रसिद्ध डोसा चेन डोसा प्लाजा की आरंभ की है। किसी समय में बर्तन मांजने वाले प्रेम गणपति के डोसा चेन आज विदेशों में भी बहुत लोकप्रिय है।

बता दें कि प्रेम गणपति का जन्म तमिलनाडु के तूतीकोरिन जिले के नागलपुरम में हुआ था। उनका परिवार बहुत गरीब था। केवल 10वीं कक्षा तक पढ़ाई करने के बाद पैसों के आभाव में उनकी पढ़ाई छूट गई। परिवार भी छोटा नहीं था बल्कि माता-पिता और उनके कुल सात बच्चे थे। परिवार की खराब आर्थिक स्थिति के कारण वो काफी छोटी उम्र से ही जॉब करने लग गए थे। आलम ये था कि भिन्न भिन्न काम करने पर उन्हें महीने के 250 रुपये मिलते थे जिसे वो परिवार को ही दे देते थे।

मुंबई में मिला धोखा

उन्हें मुंबई में किसी ने 1200 रुपये प्रति महीने की जॉब दिलाने का वादा किया और यहां बुलाया। माता-पिता मुंबई नहीं भेजेंगे इसलिए वो बिना घर पर बताए ही जॉब करने के लिए मुंबई के लिए साल 1990 में महज 17 साल की उम्र में रवाना हो गए। मुंबई पहुंचने पर उनसे किसी ने 200 रुपये लूट लिए, जिसके बाद वो फंस गए। उन्होंने बिना पैसों के ही मुंबई में ही रूकने का निर्णय किया और वहां रहकर किस्मत आजमाई।

शुरुआत में धोए बर्तन

दक्षिण हिंदुस्तान से होने के कारण उन्हें किसी की भाषा समझ नहीं आई। हालांकि किसी तरह उन्हें बर्तन धोने का काम क्षेत्रीय बेकरी में मिला। यहां उन्हें हर महीने 150 रुपये तनख्वाह मिली। उन्हें बेकरी में ही सोने के लिए अनुमति भी मिल गई थी। उन्होंने अगले कुछ वर्षों कर मुंबई में कई तरह की नौकरियां की और बचत कर अपने घर भेजते हे।

इसके बाद उन्होंने दो सालों तक इधर उधर ठोकरें खाने के बाद साल 1992 में स्वयं का ही खाने का काम प्रारम्भ कर लिया। इस काम को प्रारम्भ करने से पहले उन्होंने पर्याप्त बचत की थी। उन्होंने इडली और डोसा बेचने का काम प्रारम्भ किया। अपना काम प्रारम्भ करने के लिए उन्होंने 150 रुपये में एक ठेला किराए पर लिया। इसके बाद 100 रुपये लगातर बर्तन, स्टोव और अन्य सामान खरीदा। उन्होंने वाशी स्टेशन के सामने ही अपनी दुकान प्रारम्भ की जहां वो इडली और डोसा बेचते थे। उन्होंने अपने इस काम में दो भाइयों मुरुगन और परमिशवन को भी साथ में लिया।

उनके इस छोटे से स्टॉल की विशेषता थी कि वो साफ सुथरा रहता था। साफ-सफाई होने के कारण लोग उनके स्टॉल पर आना पसंद करते थे। लोगों को उनके डोसे का स्वाद भी पसंद आने लगा क्योंकि वो बिलकुल ऑथेंटिक टेस्ट ही लोगों को सर्व कर रहे थे। उनका ये कारोबार जल्द ही फलने फूलने लगा। वो हर महीने 20 हजार रुपया का फायदा कमाने लगे जिसके बाद उन्होंने वाशी में एक दुकान किराए पर ली, जहां कच्चा सामान और मसाला तैयार किया जाता था।

पांच वर्ष बाद खोला पहला रेस्टोरेंट

लगातार कई सालों की मेहनत के बाद उन्होंने 1997 में 50,000 रुपये जमा किए और पहला रेस्टोरेंट खोला जिसका नाम प्रेम सागर डोसा प्लाजा रखा। इस स्थान का किराया पांच हजार रुपये था। इस रेस्टोरेंट को चलाने के लिए उन्होंने दो लोगों को काम पर रखा। रेस्टोरेंट में अधिकांश कॉलेज जाने वाले लोग आते थे। इसी बीच उन्होंने अपनी वेबसाइट भी बनाई और डोसा को ऑथेंटिक टेस्ट के साथ फ्यूजन के तौर पर भी पेश किया। उन्होंने अपने डोसा मेन्यू में कई अन्य रेसेपी शामिल की, जिससे उनका मेन्यू 10-15 डोसा तक हो गया। उनका कारोबार इतना फैला की वो हर महीने 10 लाख तक कमाने लगे।

फ्यूजन डोसा की शुरुआत

वर्ष 1999 में प्रेम गणपति ने फ्यूजन डोसा की आरंभ की और डोसा के साथ चाइनीज का फ्यूजन किया। ये फ्यूजन उनके ग्राहकों को काफी पसंद आया। उनका चाइनीज स्टाइल डोसा लोगों को बहुत पसंद आया। उन्होंने डोसा में अमेरिकन चॉप्सी, शेजवान डोसा, पनीर चिली डोसा, स्प्रिंग रोज डोसा जैसी यूनिक वैरायटी पेश की। साल 2002 तक उन्होंने डोसा प्लाजा में 104 वैरायटी पेश की और ये लोगों में बहुत लोकप्रिय था।

मॉल में खोला काउंटर

इसी बीच मुंबई में पहला मॉल बन रहा था। तभी उन्होंने मुंबई के पहले मॉल में डोसा प्लाजा का काउंटर खोला। यहां उन्हें तीन लाख का निवेश करना पड़ा था, जिसके लिए उन्होंने उधार भी लिया। इस काउंटर की आरंभ होने पर पहले ही महीने छह लाख की कमाई हुई थी। इसके बाद उन्होंने डोसा प्लाजा की फ्रेंचाइजी देना प्रारम्भ किया। यहां भी उन्हें फायदा हुआ।

वर्ष 2005 में रखा इंटरनेशनल बाजार में कदम

इसके बाद उन्होंने मुंबई से बाहर निकलकर हिंदुस्तान के कई राज्यों में अपनी फ्रेंचाइजी और आउटलेट खोले। साल 2007 तक राष्ट्र के नौ शहरों तक उनकी पहुंच हो गई थी। इसके बाद उन्होंने इंटरनेशनल बाजार में कदम रखने का निर्णय किया। साल 2008 में एशिया के सबसे बड़े मॉल में उनका काउंटर खुला। इसके बाद न्यूजीलैंड में भी उन्होंने अपना काउंटर खोला। साल 2011 में दुबई में उनके डोसा प्लाजा का काउंटर खुला।

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