भारत समेत दुनियाभर में महंगा हो रहा कॉपर, इतनी तेजी से बढ़ रहे दाम
वैश्विक स्तर पर कमोडिटी मार्केट में रिकॉर्ड तेजी देखने को मिल रही है
वैश्विक स्तर पर कमोडिटी मार्केट में रिकॉर्ड तेजी देखने को मिल रही है. स्टील, एलुमिनियम के अलावा कॉपर भी रिकॉर्ड स्तर पर कारोबार कर रहा है. गुरुवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में कॉपर का भाव रिकॉर्ड 10,000 डॉलर प्रति टन के पार जा चुका है. शंघाई कॉपर की कीमत भी बीते 10 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच चुकी है. सप्लाई को लेकर चिंता और कमजोर डॉलर के बीच लंदन में भी कॉपर का वायदा भाव बीते एक दशक के रिकॉर्ड उच्चतम स्तर पर है.
कमोडिटी मार्केट से जुड़े जानकार और एजेंसियों का कहना है कि आने वाले समय में कॉपर के भाव में तेजी देखने को मिलेगी. कॉपर में इस रिकॉर्ड तेजी के कई कारण है. मसलन दुनियाभर में आर्थिक रिकवरी देखने को मिल रही है, चीन में औद्योगिक कॉपर की खपत बढ़ी है और वैश्विक कॉपर का करीब एक चौथाई उत्पादन करने वाला चिली इसकी माइनिंग पर 75 फीसदी तक टैक्स लगाने का ऐलान कर चुका है. इसके अलावा भी इलेक्ट्रिक वाहनों के बढ़ते चलन की वजह से कॉपर की मांग बढ़ रही है.
अगर भारतीय बाजार की बात करें तो पिछले सप्ताह ही कॉपर का भाव अब तक के उच्च्तम स्तर पर था. गुरुवार को कॉपर का वायदा भाव 0.53 फीसदी की बढ़त के साथ 765.10 रुपये प्रति किलोग्राम पर था. मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (MCX) पर मई डिलीवरी वाले कॉपर का वायदा भाव 4 रुपये यानी 0.53 फीसदी चढ़ा. भारत में भी कॉपर की मांग में इजाफा हुआ है.
कॉपर के भाव में क्यों आ रही इतनी तेजी?
1. डिमांड ज्यादा और सप्लाई कम: कुछ समय पहले चिली के पोर्ट वर्कर्स और माइनिंग एसोसिएशन ने सरकार द्वारा एक बिल का विरोध किया था. दरअसल, चिली सरकार एक नया बिल लेकर आई थी, जिसके तहत वर्कर्स को तीसरी बार अपने पेंशन फंड्स से समय से पहले विड्रॉल को ब्लॉक करने की बात कही गई थी.
कुल वैश्विक कॉपर उत्पादन का करीब एक चौथाई हिस्सा चिली से ही आता है. एसोसिएशन और वर्कर्स के विरोध के बाद कॉपर सप्लाई में कमी आई और कीमतों में इजाफा देखने को मिला.
इसके अलावा भी दक्षिणी अमेरिका में कोविड-19 की वजह से लोहा अयस्क और कॉपर जैसे कई प्रमुख कमोडिटी के निर्यात पर असर डाला है. अमेरिका में भी जो बाइडन के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्लान में कच्चे माल के तौर पर भी कॉपर की अहमियत देखी जा रही है.
हालांकि, सप्लाई की बात करें तो पेरू में मार्च महीने के दौरान कॉपर आउटपुट करीब 19 फीसदी तक चढ़ा है. वैश्विक स्तर पर इससे कुछ हद तक राहत देखने को मिली है.
2. कम इन्वेन्टरी: लंदन मेटल एक्सचेंज पर रजिस्टर्ड कॉपर इन्वेन्टरीज में भारी गिरावट देखने को मिली है. एनलिस्ट्स का अनुमान है कि इसमें आगे भी गिरावट का दौर देखने को मिला है. 26 अप्रैल 2021 तक लंदन मेटल एक्सचेंज पर कॉपर इन्वेन्टरी करीब 1,55,100 टन ही था. पिछले महीने दूसरे पखवाड़े में यह 10 फीसदी तक कम हुआ है.
3. मांग बढ़ी: चीन में इस साल कंस्ट्रक्शन गतिविधियां बढ़ी हैं. इसके बाद चीन में कॉपर की मांग में भी इजाफा हुआ है. बता दें कि दुनियाभर में कॉपर की कुल खपत का आधा हिस्सा चीन का ही है. एनलिस्ट्स का कहना है कि चीन में सबसे ज्यादा कॉपर की खपत होती है और अब यहां बड़े पैमाने पर कंस्ट्रक्शन की वजह से मांग बढ़ी है. यह भी एक कारण है कि कॉपर के भाव में तेजी देखने को मिल रही है.
अमेरिका में आर्थिक विकास में अब तेजी की उम्मीद की जा रही है. वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं पर भी इसका असर पड़ेगा. कोविड-19 संकट के दौर में दुनियाभर के देशों ने प्रोत्साहन पैकेज का ऐलान किया है. दूसरी ओर कोरोना वैक्सीन को लेकर भी अच्छी खबरें ही आ रही हैं. कॉपर के भाव पर इन दोनों फैक्टर्स का असर पड़ा है.
4. ग्रीन इन्फ्रास्ट्रक्चर: कॉर्बन फुटप्रिंट कम करने और क्लीन एनर्जी के इस्तेमाल को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में अब इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ रही है. इलेक्ट्रिक वाहनों में इंटर्नल कंम्बशन इंजन की तुलना में दोगुना कॉपर का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में इलेक्ट्रिक वाहनों की मांग बढ़ने के साथ ही कॉपर की भी मांग बढ़ेगी.
क्या है एजेंसियों का अनुमान?
गोल्डमैन सैक्स ने अपनी एक हालिया रिपोर्ट में अनुमान में कहा है कि 2025 तक कॉपर का भाव 15,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच सकता है. 'Copper is the new Oil' शीर्षक के इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों का मानना है कि 2030 तक सालाना कॉपर की मांग मौजूदा स्तर से 900 फीसदी बढ़कर 87 लाख टन तक पहुंच जाएगी.
ट्रेडिंग हाउस ट्रैफिगुरा ग्रुप और बैंक ऑफ अमेरिका का भी मानना है कि कॉपर की कीमतों में तेजी आई है. बैंक ऑफ अमेरिका का कहना है कि आने वाले महीनों में कॉपर का भाव 13,000 डॉलर प्रति टन तक पहुंच सकता है.