कृषि वैज्ञानिकों ने जारी की गेहूं की बुवाई को लेकर सलाह

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की बुवाई के लिए किसानों को कुछ सलाह दी है

Update: 2021-11-28 05:42 GMT

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने गेहूं की बुवाई (Wheat Sowing) के लिए किसानों को कुछ सलाह दी है, ताकि फसल अच्छी हो. किसानों को यह सलाह है कि वे मौसम को ध्यान में रखते हुए गेंहू की बुवाई के लिए तैयार खेतों में पलेवा तथा उन्नत बीज व खाद की व्यवस्था करें. पलेवे के बाद यदि खेत में ओट आ गई हो तो उसमें गेहूं की बुवाई कर सकते हैं. जिन खेतों में दीमक का प्रकोप हो उनमें क्लोरोपाइरीफॉस (20 ईसी) को 5 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से पलेवा के साथ दें. नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा पोटाश उर्वरकों की मात्रा 120, 50 व 40 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर होनी चाहिए.

वैज्ञानिकों ने कहा है कि जिन वैज्ञानिकों ने अगेती सरसों (Mustard) की बुवाई की है वो समय फसल में विरलीकरण तथा खरपतवार नियंत्रण का कार्य करें. ताकि पौधों को बढ़ने में मदद मिले. तापमान को ध्यान में रखते हुए मटर की बुवाई करें. इसी तरह आलू के पौधों की ऊंचाई यदि 15 से 22 सेंटीमीटर हो जाए तब उनमें मिट्टी चढ़ाने का कार्य जरूरी है. अन्यथा बुवाई के 30-35 दिन बाद मिट्टी चढ़ाई का काम पूरा करें.
इस समय कर सकते हैं प्याज की बुवाई
किसान गाजर की यूरोपियन किस्मों जैसे नेंटीस, पूसा यमदागिनी, मूली की यूरोपियन किस्मों जैसे हिल क्वीन, जापानी व्हाईट, पूसा हिमानी, चुंकदर की किस्म क्रिमसन ग्लोब तथा शलगम की पीटीडब्लूजी आदि की बुवाई इस समय कर सकते हैं. किसान इस समय पत्तेदार सब्जियों में सरसों साग की बुवाई कर सकते हैं.
वर्तमान मौसम प्याज की बुवाई (Onion sowing) के लिए अनुकूल है. इसके लिए प्रति हैक्टेयर 10 किलोग्राम बीज लगेगा. बुवाई से पहले बीजों को केप्टान 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें. इस सप्ताह किसान सब्जियों की निराई-गुड़ाई करके खरपतवारों को निकाले. 15 से 25 दिन की सब्जियों में नाइट्रोजन की बची हुई मात्रा का छिड़काव करें.
धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर
कृषि भौतिकी संभाग के कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों को सलाह (farmers advisory) दी है कि वे धान के अवशेषों को सड़ाने के लिए पूसा डीकंपोजर कैप्सूल का उपयोग करें. प्रति हैक्टेयर 4 कैप्सूल की जरूरत होगी. किसानों को सलाह है कि खरीफ फसलों के बचे हुए अवशेषों को न जलाएं, क्योंकि इससे फसलों की उत्पादकता व गुणवत्ता प्रभावित होती है. इसे जलाने की बजाय जमीन में मिला दें. इससे मिट्टी की उर्वकता बढ़ती है.
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