आखिर क्यों नहीं मिलता है मेडिकल इंश्योरेंस में 100 फीसदी क्लेम, जानिए इसको लेकर क्या है नियम

Medical Insurance इसलिए खरीदा जाता है ताकि इमरजेंसी में उन्हें उचित मेडिकल सुविधा मिले और इसके लिए मोटा बिल भी नहीं चुकाना पड़े.

Update: 2021-09-19 02:07 GMT

फाइल फोटो 

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। Medical Insurance इसलिए खरीदा जाता है ताकि इमरजेंसी में उन्हें उचित मेडिकल सुविधा मिले और इसके लिए मोटा बिल भी नहीं चुकाना पड़े. हालांकि, जब मेडिकल इंश्योरेंस को क्लेम किया जाता है तो पॉलिसी होल्डर को बिल का 100 फीसदी क्लेम नहीं मिलता है. उसे अपने पॉकेट से भी पैसे जमा करने होते हैं. ऐसे में मन में सवाल उठता है कि इंश्योरेंस लिमिट बाकी होने के बावजूद पॉकेट से पैसे क्यों देने होते हैं?

जैसा कि हम जानते हैं अगर किसी इंडिविजुअल के पास कैशलेस हेल्थ कवर है, तो भी उसे मेडिकल बिल का कुछ हिस्सा अपने पॉकेट से जमा करना होता है. मिंट में छपी रिपोर्ट में इंश्योरेंस देखो (InsuranceDekho) के को-फाउंडर अंकित अग्रवाल ने कहा कि हेल्थ प्लान कई तरह के मेडिकल बिल को कवर करता है. हालांकि, कुछ खर्च ऐसे भी होते हैं जो पॉलिसी के अंतर्गत कवर नहीं होते हैं. कई बार ऐसा भी होता है कि मेडिकल बिल में इंश्योरेंस कंपनी को कुछ गैर-जरूरी टेस्ट दिखाई देते हैं. ऐसे टेस्ट उस बीमारी के लिए उपयुक्त नहीं लगते हैं, जिसके कारण क्लेम का लाभ नहीं मिल पाता है.
हेल्थ इंश्योरेंस, हेल्थ इंश्योरेंस क्लेम, हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी, मेडिकल इंश्योरेंस, Health Insurance, Health Insurance Claim, Health Insurance Policy, Medical Insurance,डॉक्युमेंट में कवरेज की होती है पूरी जानकारी
जब कोई इंडिविजुअल मेडिकल इंश्योरेंस खरीदता है तो पॉलिसी डॉक्युमेंट में अलग-अलग जरूरतों के लिए होने वाले खर्च की डिटेल जानकारी शेयर की जाती है. हर खर्च के लिए अलग से कैपिंग भी होती है जो उसकी मैक्सिमम लिमिट है. इसके अलावा मेडिकल बिल में अगर किसी तरह के खर्च को शामिल किया जाता है तो इंश्योरेंस कंपनियां क्लेम देने से इनकार कर देती हैं.
नॉन मेडिकल एक्सपेंस शामिल नहीं किया जाता है
मेडिकल इंश्योरेंस में नॉन मेडिकल एक्सपेंस जैसे, एडमिनिस्ट्रेटिव चार्ज, रजिस्ट्रेशन, सरचार्ज, मरीज के अलावा अटेंडेंट द्वारा खाया गया खाना, इस तरह के तमाम बिल कवर नहीं किए जाते हैं.
जिस बीमारी के लिए हैं भर्ती, उसी से संबंधित कराएं टेस्ट
अगर कोई मरीज X बीमारी के लिए अस्पताल में भर्ती होता है और इस दौरान वह किसी Y बीमारी से संबंधित जांच भी करवाता है तो इंश्योरेंस क्लेम नहीं मिलता है. ऐसे में आप जिस बीमारी का इलाज करवाने के लिए अस्पताल जाते हैं या भर्ती होते हैं, उसी का इलाज करवाएं. अगर बेवजह कोई और टेस्ट करवाएंगे तो इसके लिए अपनी जेब से पैसे देने होंगे.
हर पॉलिसी के लिए रूम रेंट रहता है फिक्स्ड
मेडिकल बिल में रूम रेंट एक बड़ा हिस्सा होता है. अलग-अलग पॉलिसी के लिए रूम रेंट फिक्स्ड रहता है. अगर कोई मरीज उससे महंगे रूम में शिफ्ट होना चाहता है तो इसके लिए उसे अपने पॉकेट से पैसे देने होंगे. यहां इस बात को समझना जरूरी है कि रूम रेंट के आधार पर ही कंसल्टेशन चार्ज, ऑपरेशन थिएटर चार्ज, रूम सर्विस चार्ज फिक्स्ड होते हैं. ऐसे में आप अगर ज्यादा महंगे रूम में शिफ्ट होते हैं तो हर चार्ज बढ़ जाता है. ऐसे में इंश्योरेंस कंपनी क्लेम को काफी कम कर सकता है.
कंज्यूमेबल्स पर नहीं मिलता क्लेम का लाभ
इसके अलावा कंज्यूमेबल्स के नाम पर भी कई तरह के खर्च होते हैं. इंश्योरेंस कंपनियां इस तरह के ज्यादातर खर्च को कवर नहीं करती हैं. यही वजह है कि मेडिकल बिल का कुछ पर्सेंट पॉलिसी होल्डर को अपने पॉकेट से जमा करना होता है. हालांकि, इससे इनकार नहीं किया जा सकता है कि मेडिकल इंश्योरेंस होने पर आप मेडिकल बिल का कुछ पर्सेंट जमा कर छुट्टी पा लेते हैं. इंश्योरेंस कंपनियां बकाया बिल का भुगतान करती हैं. इसके लिए आपको हर महीने अपनी कमाई से कुछ रुपए प्रीमियम के तौर पर इंश्योरेंस कंपनी को देने होते हैं.


Tags:    

Similar News

-->