खेत में पकाई जा रही सियासत की फसल, पढ़ें हरियाणा राजनीति की रोचक खबर...
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे होने के बावजूद हरियाणा की राजनीति का मिजाज बाकी प्रदेशों से पूरी तरह अलग है
ढाई करोड़ की आबादी वाले इस प्रदेश में करीब 25 लाख किसान खेती करते हैं। उनकी आय का दूसरा कोई जरिया नहीं है। इसलिए यहां राजनीतिक दलों की निगाह में हमेशा किसान भगवान की भूमिका में रहे हैं। यह अलग बात है कि जब यह राजनीतिक दल सत्ता में होते हैं तो उनकी निगाह बदल जाती है और जब विपक्ष में होते हैं तो किसान को सिर आंखों पर बैठाते देर नहीं करते। अब इस बार भी कुछ ऐसा ही हो रहा है। केंद्र सरकार के तीन कृषि विधेयकों ने पूरे प्रदेश की राजनीति को चरम पर पहुंचा दिया है।
देश में हरियाणा और पंजाब तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश का कुछ इलाका ही ऐसा है, जहां इन कृषि विधेयकों का विरोध हो रहा है, क्योंकि इन राज्यों के राजनीतिक दल जानते हैं कि यदि वे किसान-किसान नहीं करेंगे तो उनकी राजनीति को धक्का पहुंचने की आशंका बलवती होती रहेगी। जबकि असलियत यह है कि इन आंदोलनों में किसान कम और किसान के नाम पर राजनीति करने वाले दलों के कार्यकर्ता अधिक सक्रिय रहे। यह समय धान की फसल कटने तथा मंडियों में आने का समय है। वास्तविक किसान तो अपने खेतों में रहकर फसल काट रहा है और मंडियों में उसे लाने की कवायद में जुटा है। ऐसे में प्रदेश में जितने भी आंदोलन हुए, उनमें कहीं न कहीं राजनीतिक दलों ने अपने खुद के एजेंडे सेट करते हुए किसानों के नाम पर राजनीति की है।
राहुल गांधी पंजाब में तीन दिन रहे, क्योंकि वहां कांग्रेस की सरकार है और उसके मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह का राहुल गांधी की इस ट्रैक्टर यात्र को पूरा समर्थन रहा है। हरियाणा में भी वह पहले तीन दिन और फिर दो दिन ट्रैक्टर यात्र निकालना चाहते थे, लेकिन गृह मंत्री अनिल विज ने जिस दिलेरी के साथ ट्रैक्टर यात्र का विरोध करते हुए कांग्रेसियों को चेतावनी दी कि उन्हें हरियाणा की शांति भंग करने की इजाजत नहीं दी जा सकती, राहुल गांधी का दौरा एक दिन तक सिमट गया। भाजपा के पास खुश होने के लिए हालांकि यह तथ्य काफी है कि उसने अपने दबाव में राहुल गांधी की प्रस्तावित तीन दिन की यात्र को एक दिन में समेटकर रख दिया, लेकिन इसके पीछे की कहानी कांग्रेस दिग्गजों के आपसी मनमुटाव से जुड़ी हुई बताई जा रही है। हरियाणा में कांग्रेस का मतलब पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा है। प्रदेश अध्यक्ष कुमारी सैलजा की सोनिया गांधी और राहुल गांधी के दरबार में अच्छी पकड़ है। रणदीप सिंह सुरजेवाला गांधी परिवार के काफी नजदीक हैं। किरण चौधरी, कुलदीप बिश्नोई और कैप्टन अजय यादव का भी अपना-अपना रुतबा है। बताते हैं कि कांग्रेस दिग्गजों की आपसी खींचतान के चलते राहुल गांधी ने खुद ही इस यात्र को एक दिन में समेटने में भलाई समझी।
बहरहाल पंजाब और कांग्रेस में राहुल गांधी ने इस ट्रैक्टर यात्र के जरिये किसानों की सहानुभूति हासिल करने तथा कृषि विधेयकों के विरोध में जो माहौल तैयार किया, भाजपा ने उसे साफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। मुख्यमंत्री मनोहर लाल और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ओमप्रकाश धनखड़ ने जिस तरह से पूरे प्रदेश में राहुल गांधी की ट्रैक्टर यात्र के समानांतर कृषि विधेयकों के समर्थन में ट्रैक्टर यात्रएं निकालीं और किसानों को न तो एमएसपी और न ही मंडियां खत्म होने का भरोसा दिलाया, उससे भाजपा को जबरदस्त ऑक्सीजन मिली है।
इसके बावजूद भाजपा अपनी चुनाव समिति की बैठक में यह चर्चा कर चुकी है कि कृषि विधेयकों पर हमें दुश्मन यानी कांग्रेस को कम कर आंकने की जरूरत नहीं है और किसानों के बीच जाकर हमें उन्हें इन विधेयकों की बारीकियां समझाने के लिए जबरदस्त तरीके से काम करने की जरूरत है। अब भाजपा को अपने इस कार्य में सहयोगी पार्टी जननायक जनता पार्टी के सहयोग की दरकार है। इधर दुष्यंत चौटाला की टीम ने जिस तरह से बरोदा उपचुनाव को लेकर सरकार का साथ देने तथा तीनों कृषि विधेयकों के समर्थन में माहौल बनाने के लिए अपनी टीम को मैदान में उतार दिया है, उससे अब लग रहा कि भाजपा किसानों के ऊपर हो रही सियासत पर पार पाने में कामयाब हो सकती है।