सम्पादकीय

चीन से चिंतित अमेरिका

Gulabi Jagat
23 Sep 2022 5:20 AM GMT
चीन से चिंतित अमेरिका
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अमेरिका ने चीन को दुनिया में अपने वर्चस्व के लिए खतरा समझ लिया
By NI Editorial
अमेरिका ने चीन को दुनिया में अपने वर्चस्व के लिए खतरा समझ लिया है। नतीजा है कि अब अपनी तरक्की और विकास को भी वह चीन की प्रतिद्वंद्विता के आईने में ही देखने लगा है।
ये बात बेहिचक कही जा सकती है कि अब लगभग रोजमर्रा के स्तर पर चीन की चिंता में अमेरिका की काफी ऊर्जा खर्च होती है। अमेरिका ने चीन को दुनिया में अपने वर्चस्व के लिए खतरा समझ लिया है। नतीजा है कि अब अपनी तरक्की और विकास को भी वह चीन की प्रतिद्वंद्विता के आईने में ही देखने लगा है। इसकी ताजा मिसाल एक रिपोर्ट है। इसमे चेतावनी दी गई है कि अमेरिका ने अगर रणनीतिक क्षेत्रों में अपनी बढ़त बनाए रखने के उपायों में ताकत नहीं झोंकी, तो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में वह चीन से पिछड़ जाएगा। इस मामले में अध्ययन के लिए अमेरिकी कांग्रेस ने नेशनल सिक्युरिटी कमीशन ऑन आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एनएससीएआई) का गठन किया था। आयोग ने अपनी रिपोर्ट को- मिड डिकेड चैलेंजेज टू नेशनल कॉम्पीटीटिवनेस- के नाम से जारी किया है। इसमें उन खतरों का जिक्र है, जो आधुनिक तकनीक में चीन के आगे निकल जाने से अमेरिका के लिए पैदा होंगे। कहा गया है कि उस अवस्था में चीन का विश्व अर्थव्यवस्था पर दबदबा बना जाएगा। वह अगली पीढ़ियों की टेक्नोलॉजी को विकसित कर खरबों डॉलर कमाने में सक्षम हो जाएगा।
उस हाल में चीन अपनी सफलता के आधार पर अपनी 'तानाशाही व्यवस्था' के बेहतर होने का दावा करेगा। साथ ही निगरानी तकनीक को वह दुनिया भर में फैलाएगा, जिससे व्यक्ति स्वतंत्रता के लिए खतरे पैदा होंगे। तो यह सिफारिश की गई है कि अमेरिका को अपने सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के लिए एक मास्टर प्लान तैयार करना चाहिए। उसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का इस्तेमाल अपने विकास को स्वरूप देने में करना चाहिए। उसे अपने सहयोगी देशों के साथ मिल कर तकनीक का वैकल्पिक मॉडल दुनिया के सामने रखना चाहिए, जिससे यह संदेश जाए कि बिना तानाशाही व्यवस्था को अपनाए भी देश सफल और समृद्ध हो सकते हैँ। जाहिर है, ये निष्कर्ष एक तरह से जो बाइडेन प्रशासन की सोच का दोहराव हैं। बाइडेन प्रशासन मौजूदा दुनिया को लोकतंत्र बनाम तानाशाही के टकराव के रूप में पेश करती रही है। लेकिन मुद्दा है कि लोकतंत्र को बेहतर दिखाने की उसकी कोशिशें अब तक नाकाफी रही हैं। जाहिर है, ऐसे मामलों में ठोस उपलब्धियां दुनिया को नजर आती हैं। शोर मचाना पर्याप्त नहीं होता।
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