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आपने अबतक कई तरीके की फलों और सब्जियों से बनी चटनियां खाई होंगी लेकिन
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। आपने अबतक कई तरीके की फलों और सब्जियों से बनी चटनियां खाई होंगी लेकिन, अगर हम आपको बताएं कि भारत में एक जगह ऐसी भी हैं जहां लोग लाल चींटियों को पीस कर उनकी चटनी बनाते हैं और इसे मजे से खाते भी हैं, आईए जानते हैं कैसे बनाई जाती हैं ये चटनी और आदिवासी लोगों के अनुसार क्या हैं इसके पायदे.
कहां बनती है ये चटनी?
यह चटनी झारखंड के जमशेदपुर के पास चाकुलिया प्रखंड के मटकुरवा गांव में बनाई जाती है. इस चटनी को वहां की लोकल भाषा में लोग कुरकु कहते हैं. लेकिन खास बात ये है कि ये चटनी सिर्फ सर्दियों के दिनों में ही बनायी जाती है.
कैसे बनती है यह चटनी?
ठंड के महिनों में ये चींटिया साल और करंज के पेड़ों पर चिपकी पायी जाती है. उस वक्त जंगल में रह रहे आदिवासी पेड़ों की टहनियों को काट कर एक साथ इन्हें एक मिट्टी के बर्तन में इकट्ठा करते हैं और फिर महिलाएं चींटियों को एक साथ सिल-बट्टे पर करीब 30 मिनट तक पीसती हैं. इस चटनी को बनाने के लिए वह इसमें नमक, मिर्च, लहसुन, अदरक मिलाती है और इस चटनी को साल के पत्ते पर रखकर ही खाया जाता है.
क्या है मान्यता?
यहां रह रहे आदिवासियों का कहना है कि ये चींटियां साल में एक ही बार इस पेड़ पर चिपकती हैं और इनका सेवन करने से शरीर को ताकत मिलती है, इतना ही नहीं उनके पूर्वज भी इस चींटी चटनी का सेवन करते आ रहे हैं. वे कहते हैं कि 1 साल के बच्चे से लेकर 50 साल तक के लोग इस चटनी का सेवन कर सकते हैं.
Gulabi
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