क्या इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस पुतिन को युद्ध से रोक पाएगा

Update: 2022-02-27 13:55 GMT

रूस यूक्रेन युद्ध लगातार चौथे दिन भी जारी है। रूसी सेना अब यूक्रेन के दूसरे सबसे बड़े शहर खारकीव में भी घुस चुकी है। राजधानी कीव में रूसी सेना और यूक्रेनी सेना के बीच पिछले दो दिनों से जबरदस्त लड़ाई हो रही है। नाटो और पश्चिमी देशों के हथियार देने के ऐलान के बाद यूक्रेन नए जोश के साथ रूस से जंग लड़ रहा है। इस बीच यूक्रेन ने अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय में रूस के खिलाफ अपील की है। यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोडिमिर जेलेंस्की ने ट्वीट कर कहा कि रूस को यूक्रेन पर आक्रमण करने के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। उन्होंने रूस पर नरसंहार करने का आरोप भी लगाया है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय रूस पर इतना दबाव बना सकती है कि राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन युद्ध रोककर संघर्षविराम घोषित कर दें। जानिए कितना ताकतवर है अंतरराष्ट्रीय न्यायालय और इसके अधिकार क्षेत्र में क्या-क्या है.

क्या है अंतरराष्ट्रीय न्यायालय : अंतरराष्ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का एक महत्वपूर्ण न्यायिक शाखा है। इसकी स्थापना 1945 में नीदरलैंड की राजधानी द हेग में की गई थी। इस न्यायालय ने 1946 से काम करना भी शुरू कर दिया था। हर तीन साल में इसके अध्यक्ष का चुनाव किया जाता है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की वेबसाइट के अनुसार, इसका काम अंतरराष्ट्रीय कानूनी विवादों का निपटारा करना और संयुक्त राष्ट्र के अंगों और विशेष एजेंसियों को कानूनी राय देना है। इसके कर्तव्यों में अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से विवादों पर निर्णय सुनाना और संयुक्त राष्ट्र की इकाइयों को मांगने पर राय देना है।


एक देश के दो जज नहीं हो सकते हैं नियुक्त : अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में कुल 15 न्यायधीश होते हैं। इनका चुनाव संयुक्त राष्ट्र महासभा और सुरक्षा परिषद के जरिए होता है। इन जजों का कार्यकाल 9 साल का होता है। अगर कोई जज अपने कार्यकाल के बीच में ही इस्तीफा दे देता है तो, बाकी बचे कार्यकाल के लिए दूसरे जज का चुनाव किया जाता है। इनकी नियुक्ति को लेकर भी काफी सख्त प्रावधान हैं, जैसे एक ही देश के दो जज अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नियुक्त नहीं हो सकते हैं। इसके अलावा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पांच स्थायी सदस्य देशों के जज हमेशा ही अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में नियुक्त होते हैं। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की आधिकारिक भाषा अंग्रेजी और फ्रेंच है। इसी भाषा में यह कोर्ट सुनवाई करता है और फैसले सुनाता है।

क्या अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला मानने के लिए बाध्य हैं देश?: पहले भी कई बार अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के अधिकार क्षेत्र को लेकर सवाल उठ चुके हैं। विशेषज्ञों की राय है कि कोई भी देश अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला मानने के लिए बाध्य नहीं है। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय अपना फैसला मनवाने के लिए सबसे पहले संबंधित देशों को सुझाव देता है। जिसके बाद वह संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास जाता है, जिससे संबंधित देश पर दबाव बनाया जा सके। लेकिन, पहले भी देखा गया है कि कई देश अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला मानने से इनकार कर चुके हैं। इसमें सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य चीन तो कुख्यात है। चीन ने दक्षिण चीन सागर पर उसके अधिकार को लेकर दिए गए अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के फैसले को मानने से साफ इनकार कर दिया था। वीटो पावर वाले देश को अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला मनवाने में सुरक्षा परिषद की ताकत भी काम नहीं आती है।

क्या पुतिन मानेंगे अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला? : वर्तमान हालात को देखते हुए यह बिलकुल भी नहीं लगता है कि व्लादिमीर पुतिन अंतरराष्ट्रीय न्यायालय का फैसला मानेंगे। वो हमले के पहले ही दिन यूक्रेन को कड़ा सबक सिखाने की धमकी दे चुके हैं। इतना ही नहीं, अमेरिका और बाकी पश्चिमी देशों ने पहले ही रूस पर इतना प्रतिबंध लगा दिया है कि पुतिन के पास इस फैसले को न मानने के सिवा कोई चारा नहीं बचा है। एक बात यह भी है कि रूस के पास भी यूएनएससी का वीटो पावर है। ऐसे में दुनिया का यह सबसे शक्तिशाली संगठन भी रूस पर कोई दबाव नहीं बना सकता है। जिसके बाद माना जा रहा है कि यूक्रेन के इस दांव से रूस की थोड़ी बहुत निंदा के अलावा कुछ खास असर होने वाला नहीं है।

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