क्या सूर्य की 'मौत' के बाद भी जीवित रहेगा धरती? पढ़ें पूरी खबर
हमारे सौरमंडल का अंत कैसे होगा? यह ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रश्न है जिसके बारे में
हमारे सौरमंडल (Solar System) का अंत कैसे होगा? यह ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रश्न है जिसके बारे में रिसर्चर्स ने जटिल सैद्धांतिक प्रतिरूप बनाने के लिए फिजिक्स के हमारे ज्ञान का प्रयोग कर बहुत अटकलें लगाई हैं. हम यह जानते हैं कि सूर्य अंतत: एक 'व्हाइट ड्वार्फ' में तब्दील हो जाएगा यानी एक जले हुए तारे का अवशेष जिसका मंद पड़ता प्रकाश धीरे-धीरे अंधकार में बदल जाएगा. यह परिवर्तन इतना सरल नहीं होगा बल्कि यह एक उग्र प्रक्रिया होगी जिसमें इसकी अज्ञात संख्या के ग्रह नष्ट हो जाएंगे.
तो कौन से ग्रह सूर्य की मृत्यु से बचे रहेंगे? उत्तर खोजने का एक तरीका अन्य समान ग्रहों के साथ जो हुआ उसे देखना है. हालांकि, यह मुश्किल साबित हुआ है. व्हाइट ड्वार्फ से निकलने वाली कमजोर रेडिएशन एक्सोप्लानेट (हमारे सूर्य के अलावा अन्य सितारों के आसपास के ग्रह) को खोजना मुश्किल बनाती है जो इस तारकीय परिवर्तन से बच गए हैं - वे सचमुच अंधकार में होते हैं जिन्हें देख पाना आसान नहीं होता है.
असल में, वर्तमान में जिन 4,500 से अधिक एक्सोप्लानेट की जानकारी है, उनमें से कुछ ही व्हाइट ड्वार्फ में तब्दील हुए तारों के आसपास पाए गए हैं - और इन ग्रहों के स्थान से पता चलता है कि वे तारे की मृत्यु के बाद वहां पहुंचे थे. जानकारियों का यह अभाव हमारे ग्रह की किस्मत की अधूरी तस्वीर सामने रखते हैं. खुशकिस्मती से, अब हम इन अंतरों को भर पा रहे हैं. नेचर में प्रकाशित नए शोधपत्र में, हमें पहले ज्ञात एक्सोप्लानेट की खोज की जानकारी दी है जो अपने तारे की मृत्यु के बाद भी आसपास के अन्य ग्रहों द्वारा अपनी कक्षा में बदलाव किए बिना बचे रहता है. यह सूर्य और सौर मंडल के ग्रहों के बीच की दूरी की तुलना में परिक्रमा करता है.
यह नया बाहरी ग्रह (एक्सोप्लानेट) जिसकी खोज हमने हवाई के केक ऑब्जर्वेटरी के साथ की है, यह द्रव्यमान और कक्षीय अलगाव में बृहस्पति जैसा है जो मरते हुए तारों के आसापास बचने वाले ग्रहों के बारे में महत्त्वपूर्ण संकेत देता है. एक तारे के व्हाइट ड्वार्फ में परिवर्तित होने में उग्र चरण शामिल होता है जिसमें यह एक फूला हुआ 'रेड जाइंट' बन जाता है, जिसे 'जाइंट ब्रांच' तारा के रूप में भी जाना जाता है, जो पहले से सैकड़ों गुना बड़ा होता है. हमारा मानना है कि केवल यह बाहरी ग्रह बच गया है: यदि यह शुरू में अपने मूल तारे के करीब होता, तो यह तारे के विस्तार में समा गया होता.
जब सूर्य अंततः एक 'रेड जाइंट' बन जाता है, तो इसकी त्रिज्या (रेडियस) वास्तव में पृथ्वी की वर्तमान कक्षा में बाहर की ओर पहुंच जाएगी. इसका मतलब है कि सूर्य (शायद) बुध और शुक्र, और संभवतः पृथ्वी भी इसमें समा जाएगी लेकिन हम इस बारे में पक्के तौर पर कुछ नहीं कह सकते. बृहस्पति और उसके चंद्रमाओं के जीवित बचे रहने की उम्मीद थी, हालांकि हम पहले निश्चित रूप से यह नहीं जानते थे. लेकिन इस नए एक्सोप्लेनेट की खोज के साथ, हम अब और अधिक निश्चित हो सकते हैं कि बृहस्पति वास्तव में इससे निकल जाएगा.
इसके अलावा, इस एक्सोप्लानेट की स्थिति में गलती की गुंजाइश का मतलब यह हो सकता है कि यह व्हाइट ड्वार्फ से करीब आधी दूरी पर है जितनाा बृहस्पति वर्तमान में सूर्य के करीब है. यदि ऐसा है, तो यह मानने के लिए अतिरिक्त प्रमाण है कि बृहस्पति और मंगल परिवर्तन की उग्र प्रक्रिया में अपना अस्तित्व बचा ले जा पाएंगे.
व्हाइट ड्वार्फ की परिक्रमा करने वाले ग्रहों को खोजना मुश्किल हो गया है, लेकिन इसकी सतह के करीब से टूटने वाले क्षुद्रग्रहों का पता लगाना बहुत आसान हो गया है. एक्सोएस्टरॉइड (बाहरी क्षुद्रग्रह) कको एक व्हाइट ड्वार्फ के इतने करीब पहुंचने के लिए, उन्हें जीवित एक्सोप्लानेट द्वारा पर्याप्त गति मिलने की आवश्यकता होती है. इसलिए, एक्सोएस्टरॉइड को लंबे समय से इस बात का प्रमाण माना जाता है कि एक्सोप्लानेट भी अस्तिव में हैं. हमारी खोज अंतत: इसकी पुष्टि करती है.
एक्सोएस्टरॉइड और एक्सोप्लानेट के बीच की कड़ी हमारे अपने सौर मंडल पर भी लागू होती है. क्षुद्रग्रह मुख्य बेल्ट और कुइपर बेल्ट (बाहरी सौर मंडल में एक डिस्क) में अलग-अलग वस्तुओं के सूर्य की मौत से बचने की संभावना है, लेकिन कुछ को गुरुत्वाकर्षण द्वारा व्हाइट ड्वार्फ की सतह की ओर जीवित ग्रहों में से एक द्वारा भेज दिया जाएगा.
खोज तकनीकों की विविधता संभावित भविष्य की पहचान के लिए अच्छी तरह से संकेत देती है, जो हमारे अपने ग्रह के भाग्य में और अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकती हैं. फिलहाल के लिए, हाल ही में खोजा गया बृहस्पति जैसा एक्सोप्लानेट हमारे भविष्य की सबसे स्पष्ट झलक प्रदान करता है.