जब इंसान नहीं, प्रदूषण भी नहीं तो 17 साल से क्यों बदल रही है वरुण ग्रह की जलवायु?

Update: 2022-04-14 09:00 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। धरती पर पिछले दो दशकों से भयानक स्तर का जलवायु परिवर्तन (Climate Change) हो रहा है. जिसका जिम्मेदार इंसान है. अपने सौर मंडल का एक ग्रह है नेपच्यून (Neptune) यानी वरुण ग्रह, यहां पर पिछले 17 सालों से बहुत तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है, लेकिन इंसान जिम्मेदार नहीं है. सिंपल सी बात है क्योंकि इंसान वहां रहता नहीं. फिर प्रदूषण भी नहीं होता. उद्योग भी नहीं है. गाड़ियां भी नहीं चलतीं. तो नेपच्यून पर जलवायु परिवर्तन और तापमान बढ़ने की घटना कैसे हो रही है.

वैज्ञानिक हैरान और परेशान हैं कि आखिरकार नेपच्यून पर ऐसा क्या हो रहा है, जिससे इतना जलवायु परिवर्तन हो रहा है. फिलहाल उनके पास इस चीज को लेकर किसी तरह का जवाब नहीं है, लेकिन कुछ अनुमान लगाए गए हैं. The Planetary Science Journal में प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक नेपच्यून का वैश्विक तापमान यानी पूरे ग्रह का तापमान साल 2003 से 2018 के बीच 8 डिग्री सेल्सियस गिरा है.
नेपच्यून का दक्षिणी गोलार्ध धीरे-धीरे गर्मियों के मौसम की तरफ बढ़ रहा है, जो करीब 40 साल तक ऐसे ही रहेगा. लेकिन हैरानी की बात ये है कि साल 2020 में नेपच्यून के दक्षिणी ध्रुव का तापमान अचानक साल 2018 के तापमान से माइनस 11 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो गया. वैज्ञानिक इसी बात से हैरान हैं कि दो साल के अंदर इतना ज्यादा तापमान कैसे बढ़ गया, जबकि ये काम अगले 40 सालों में होने की उम्मीद थी.
यूनिवर्सिटी ऑफ लीसिस्टर में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्च एसोसिएट डॉ. माइकल रोमन ने कहा कि नेपच्यून के दक्षिणी गोलार्ध का तापमान इतनी तेजी से बढ़ना अप्रत्याशित घटना थी. हमें इसकी जरा सी भी उम्मीद नहीं थी. हमें ये पता है कि नेपच्यून का दक्षिणी गोलार्ध इस समय गर्मियों के मौसम के शुरुआती दौर में है. हमें धीरे-धीरे इसके तापमान के बढ़ने की उम्मीद है, न कि कम होने की.
नेपच्यून का औसत तापमान माइनस 220 डिग्री सेल्सियस रहता है. थोड़ी बहुत तो गर्मी रहती भी है, तो वह ग्रह के कोर में है. नेपच्यून सूरज से प्राप्त होने वाली रोशनी का सिर्फ 2.61 गुना रेडिएट करता है. इसलिए वह आमतौर पर सर्दियों में ही रहता है. डॉ. माइकल रोमन कहते हैं कि नेपच्यून में हो रहे मौसमी बदलाव की स्टडी करने से हमें वहां के वायुमंडल के बारे में पता चला रहा है.
वैज्ञानिकों को पता है कि नेपच्यून पर गर्म पोलर वॉरटेक्स (Warm Polar Vortex) होता है. जो इस ग्रह के बाकी हिस्सों की तुलना में ज्यादा तापमान की वजह से होता है. लेकिन इतनी जल्दी-जल्दी हो रहे मौसमी बदलाव की वजह क्या है, ये पता नहीं चल पा रहा है. वैज्ञानिकों को जो वजहें लगती हैं, वो हैं- ग्रह का रासायनिक मिश्रण, नेपच्यून का स्ट्रैटोस्फेयर, सौर गतिविधियां या फिर मौसम का पैटर्न.
इस स्टडी के सह-लेखक और कालटेक जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी के साइंटिस्ट ग्लेन ऑर्टन ने कहा कि साइंटिस्ट्स को नेपच्यून के विचित्र तूफानों के बारे में काफी साल बाद पता चला. हमारा डेटा यह बताता है कि हम नेपच्यून के सिर्फ आधे हिस्से के मौसम को देख पा रहे हैं. वह भी इतनी तेजी से बदल रहा है कि जिसके बारे में किसी को अंदाजा नहीं था.
इंसानों ने 1989 से पहले नेपच्यून ग्रह को नहीं देखा था. इसके बाद वहां पर नासा ने वॉयेजर-2 (Voyager 2) सैटेलाइट भेजा. सैलेटाइट और चिली के वेरी लार्ज टेलिस्कोप से ली गई तस्वीरों के माध्यम से ग्रह की जानकारी मिलती है. इसके अलावा नासा का स्पिट्जर स्पेसक्राफ्ट भी तस्वीरें भेजता रहता है.
इस तरह की स्टडी करने के लिए ताकतवर इंफ्रारेड टेलिस्कोप की मदद ली जाती है. खैर जितने भी स्पेसक्राफ्ट और टेलिस्कोप का नाम बताया गया है, वो सभी ताकतवर इंफ्रारेड टेलिस्कोप फैसिलिटी से लैस हैं. ये इस तरह के शानदार तस्वीरें लेकर यह बता देते हैं कि नेपच्यून का मौसम कैसा है.


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