एक दिन काम निपटाने में निकल गया. दूसरा दिन परिवार के साथ निकल गया. इतवार की शाम होते-होते दफ्तर के काम और ईमेल वगैरह फिर तारी हो जाते हैं. अपने लिए समय ही नहीं बचता. तो अब तीन दिन छुट्टी चाहिए. ऐसे में अब प्लान यह है कि दिन में काम के घंटे होंगे 12 और हफ्ते में छुट्टियां होंगी तीन. 'फोर डे वीक' लागू करना किसके हाथ में है? जापान से समझते हैं. जापान में जब सरकार ने देखा कि लोगों की निजी और कामकाजी जिंदगी में तालमेल का भयानक संकट है, तो जून 2020 में उसने कंपनियों से कहा कि 'फोर डे वीक' भी एक विकल्प है. अपना सिस्टम देखिए, अपने कर्मचारियों से बात करिए और हो सके, तो लागू कीजिए. कुछ कंपनियों ने लागू किया. कइयों ने नहीं किया. इससे एक बात तो तय है कि फैसला लेना कंपनियों के ही हाथ में है. क्योंकि जिसकी कंपनी, उसके नियम. अब कोई कर्मचारी कंपनी से गुहार लगाना चाहे, तो लगा ले. उसकी बात मान ही ली जाएगी, इसकी कोई गारंटी नहीं है. अमेरिका, न्यूजीलैंड, जर्मनी, आयरलैंड और ब्रिटेन जैसे तमाम देश हैं, जहां कुछ-कुछ कंपनियों में ऐसी व्यवस्था चल रही है. पर सभी में नहीं. तो यह सिस्टम कहां-कहां चल रहा है? बहुत सारे देशों की बहुत सारी कंपनियों में. यूरोप, अफ्रीका, पश्चिमी एशिया और लैटिन अमेरिका के 45 देशों के 300 शहरों में कारोबार करने वाली एक कंपनी है- बोल्ट. यह यूनिकॉर्न कंपनी किराए पर गाड़ी देने, माइक्रो-मोबिलिटी, कार शेयरिंग और खाना डिलीवर करने जैसे कई काम करती है. सितंबर 2021 में इसने अपने 280 कर्मचारियों से कहा कि अब शुक्रवार को भी छुट्टी लेना शुरू कर दीजिए. कुछ दिनों तक कंपनी ने जांचा-परखा कि कैसा रिजल्ट मिल रहा है. फिर जनवरी 2022 से पूरी कंपनी में यही सिस्टम लागू कर दिया. हां, कर्मचारियों के काम के घंटे भी बढ़ गए.
बोल्ट के सीईओ कायन बर्सले ने बताया कि अभी तक बहुत अच्छे नतीजे मिले हैं. लोग एकदम तरोताजा दफ्तर पहुंचते हैं, मन लगाकर काम करते हैं और प्रोडक्टिविटी खूब बढ़ गई है. अमेरिका में एलिफैंट वेंचर्स नाम की सॉफ्टवेयर और डाटा कंपनी ने अगस्त 2020 में यह प्रयोग शुरू किया. कंपनी को इसके नतीजे इतने भाए कि वह इसी सिस्टम पर शिफ्ट हो गई. अब इसके कर्मचारी 10 घंटे काम करते हैं, फिर तीन दिन छुट्टी. यूनिलीवर ने दिसंबर 2020 में न्यूजीलैंड में यही तरीका अपनाया. आयरलैंड में तो सरकार ने बाकायदा 'फोर डे वीक' नाम का एक प्रोग्राम शुरू किया है. इसमें कुछ कंपनियां फरवरी से 6 महीने के लिए यही व्यवस्था लागू करके देखेंगी कि कैसा असर पड़ रहा है. अगर फायदा हुआ, तो शायद इसे देशभर में लागू कर दिया जाए. अब तक 20 कंपनियां इसके लिए राजी हो चुकी हैं. अमेरिका और कनाडा में भी अप्रैल 2022 से कुछ कंपनियां ऐसे प्रोग्राम शुरू कर रही हैं. बेल्जियम में इस महीने नेताओं ने 'फोर डे वीक' शुरू करने के संकेत दिए हैं. स्पेन और स्कॉटलैंड की सरकारें भी ऐसे ट्रायल का मन बना रही हैं. दक्षिण कोरिया में मार्च में चुनाव होने हैं और वहां सत्ताधारी पार्टी के राष्ट्रपति उम्मीदवार ली जे म्यूंग ने सत्ता में आने पर काम के घंटे घटाने का वादा किया है. आइसलैंड में कुछ सर्वे हुए, जहां पता चला कि काम के कुछ घंटे घटाने पर लोगों की जिंदगी में सुधार आया है. और हां, ऐसा नहीं है कि इन कंपनियों को अपना कामकाज तीन दिन बंद रखने को कहा जा रहा है. कंपनियां पांच या हो सकता है छह दिन भी खुली रहें. बस काम का बंटवारा इस तरह कर दिया जाएगा कि हर कारिंदे को तीन दिन छुट्टी मिल जाए. जाहिर सी बात है कि यह कंपनी और कर्मचारियों के तालमेल से ही मुमकिन है. क्या भारत में यह व्यवस्था आ पाएगी? यह जानने के लिए हमने भारत में आर्थिक मामलों पर निगाह रखने वाले पत्रकार शिशिर सिन्हा से बात की. उन्होंने बताया कि भारत में नए लेबर कोड पर अब भी मंथन जारी है. वैसे तो इसे 1 अप्रैल 2021 से लागू होना था, लेकिन कोरोना महामारी, कुछ राज्यों की पर्याप्त तैयारी न होने और पर्याप्त सहयोग न होने की वजह से ऐसा मुमकिन नहीं हो पाया. अब कोशिश हो रही है कि पिछले साल न सही, 2022 में ही 1 अप्रैल से यह लागू हो जाए. तो जिस नए लेबर कानून की तैयारी चल रही है, उसमें चार दिन कामकाज का भी प्रावधान रखा गया है.
इस बारे में श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव अपूर्व चंद्रा ने मीडिया से बातचीत में कहा भी था कि सरकार इस पर विचार कर रही है और यह कंपनी और कर्मचारियों की आपसी सहमति से लागू हो सकता है. पर इसमें दो पेच हैं. 1 अप्रैल 2022 को नया लेबर कोड लागू होने का यह मतलब नहीं है कि फोर डे वीक' भी लागू हो जाएगा. दूसरा, फोर डे वीक' लागू होने के बाद भी इसे अपनाने का फैसला तो कंपनी के पास ही रहेगा. पत्रकार शिशिर सिन्हा बताते हैं, "असल दिक्कत यह है कि ज्यादातर राज्यों और कंपनियों के पास अभी कोई ऐसा ढांचा नहीं है, जिसके आधार पर वे हफ्ते में चार दिन काम की व्यवस्था लागू कर सकें. यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे देशों की व्यवस्था भारत में एक झटके में तो लागू नहीं की जा सकती. हमारे सामने मारुति का उदाहरण है, जिसने जापानी तौर-तरीके अपनाए. लेकिन, ऐसा सीमित जगह और सीमित लोगों के साथ किया गया. देश में नई व्यवस्था लागू करना अलग बात है. अच्छी बात यह है कि इस मुद्दे पर बात शुरू हो गई है, तो धीरे-धीरे बदलाव भी दिखाई देंगे" इसके फायदे-नुकसान क्या हैं? मान लीजिए आपकी कंपनी आपसे पूछती है कि आप हफ्ते में चार दिन 12-12 घंटे काम करना चाहेंगे या पांच दिन नौ-नौ घंटे या छह दिन आठ-आठ घंटे. तो किस व्यवस्था में आपको ज्यादा फायदा हो रहा है, यह तो आप ही तय करेंगे. 'फोर डे वीक' की वकालत करने वालों का मानना है कि अगर आपके पास तीन खाली दिन होंगे, तो आप बढ़िया से आराम कर सकेंगे, परिवार को समय दे सकेंगे और पर्सनल ग्रोथ पर काम कर सकेंगे. कंपनियों के फायदे को लेकर शिशिर बताते हैं कि जब लोगों को कम दिन ऑफिस बुलाया जाएगा और अलग-अलग शिफ्ट में बुलाया जाएगा, तो इससे ज्यादा लोगों को रोजगार देने में मदद मिल सकती है. कंपनी के संसाधन बच सकते हैं और उनकी प्रोडक्टिविटी बेहतर हो सकती है. सरकार के स्तर पर ये फायदे हैं कि कार्बन उत्सर्जन कम होगा, प्रोडक्टिविटी बढ़ेगी और नागरिकों की सेहत बेहतर होगी. यातायात कम होगा, तो पर्यावरण सुधरेगा. ब्रिटेन के हेनली बिजनेस स्कूल की स्टडी में शामिल 63 फीसदी कंपनियों ने माना कि चार दिन काम कराने से उन्हें अच्छे कर्मचारियों को आकर्षित करने और उन्हें रोके रखने में मदद मिली. 78 प्रतिशत कर्मचारी भी इस व्यवस्था से ज्यादा खुश थे और उनका तनाव कम पाया गया. इस सिस्टम के कुछ नुकसान भी गिनाए जाते हैं. एलिफैंट वेंचर्स के सीईओ आर्ट शेक्टमैन कहते हैं कि एक बार ये व्यवस्था लागू होने के बाद कोई और व्यवस्था लागू करना बहुत मुश्किल होता है. कुछ कंपनियों में यह भी पाया गया कि शुरुआत में तो प्रोडक्टिविटी पर कोई असर नहीं पड़ा, लेकिन बाद में ऐसा नहीं रह गया. पर इस बहस से एक बात तो तय है. बीते दो साल में कोविड महामारी की वजह से वर्क फ्रॉम होम और काम के दिनों में हुई तब्दीलियों से दुनिया भर में नौकरी के नए मॉडलों के बारे में सोचने की राह खुल गई है..