रूस-यूक्रेन युद्ध में अब तक क्या-क्या हुआ? जानें यहां

Update: 2022-06-24 02:27 GMT

न्यूज़ क्रेडिट: आजतक

नई दिल्ली: 'युद्ध में जीत का मूलमंत्र है रफ्तार... शत्रु युद्ध के लिए तैयार न हो तो इस अवस्था का लाभ उठाएं. उस रास्ते से आगे बढ़ें दुश्मन को जिसकी भनक तक न हो. उन स्थानों पर सबसे पहले धावा बोलें जहां दुश्मन सुरक्षा की दृष्टि से सबसे कमजोर हो...'

युद्ध पर ढाई हजार साल पहले लिखी गई ऐतिहासिक किताब Art of War में चीनी दार्शनिक सं जू उन उपायों का जिक्र करते हैं जो विजेता सेनापति अपनाते हैं. आज भी दुनिया एक जंग बल्कि कहें तो एक महाजंग की गवाह बनी हुई है. रूस और यूक्रेन का युद्ध शुरू हुए आज चार महीने पूरे हो गए. न जंग थम रही है न तबाही का आलम.
24 फरवरी 2022 को सुबह-सुबह जब रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने यूक्रेन पर हमले का औपचारिक ऐलान किया था तब तक रूसी वायुसेना यूक्रेन के सौ से अधिक मिलिटरी अड्डों पर कुछ ही मिनट पहले बमबारी कर चुकी थी, सीमा के प्रहरियों और बाड़बंदी की ताकत को मसल रूसी सेना की टुकड़ियां यूक्रेन के शहरों में घुस चुकी थीं, राजधानी कीव पर बमवर्षक विमान बमबारी शुरू कर चुके थे. पुतिन ने जंग का ऐलान किया और कहा कि यूक्रेन की सेना हथियार डाले और घर जाए तभी बच पाएंगे सैनिक.
जंग के इस ऐलान के बाद एक पल को दुनिया को लगा कि युद्ध बस कुछ घंटों की बात है और यूक्रेन सरेंडर करने ही जा रहा है. वर्ल्ड पावर रूस के खिलाफ आखिर कितनी देर टिक पाएगा यूक्रेन? अमेरिकी खुफिया एजेंसी तक का अनुमान था कि जेलेंस्की की सेना कुछ दिनों में सरेंडर कर देगी और राजधानी कीव बस कुछ दिन के अंदर रूसी सेना के कब्जे में होगा. लेकिन ऐसा हुआ नहीं. दुनिया को चौंकाते हुए यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने मैदान नहीं छोड़ा, बल्कि जनता को साथ लेकर सैनिकों के साथ युद्ध के मोर्चे पर डट गए. तब का दिन है और आज चार महीने बाद का यूक्रेन. शहर के शहर तबाह हो गए, 80 लाख लोग देश छोड़कर भाग गए, लेकिन यूक्रेन ने सरेंडर नहीं किया और आज 100 से अधिक मोर्चों पर यूक्रेन की सेना और हथियार उठाए आम लोग और दुनिया भर से आए वॉलंटियर लड़ाके रूसी सेना का मुकाबला जमकर कर रहे हैं.
किसी दार्शनिक ने ठीक ही कहा है कि युद्ध तड़प, दर्द और तबाही के सिवा कुछ भी नहीं. अपनी किताब Art of War में सं जू लिखते हैं- 'यदि आप दुश्मन के बारे में सही जानकारी के अभाव में उचित समय पर हमला नहीं कर पाते हैं तो वह युद्ध वर्षों तक खिंच सकता है. युद्ध जितना लंबा खिंचता है आर्थिक और सैन्य क्षति उतनी ज्यादा बढ़ती जाती है.' रूसी सेना ने शुरुआती दिनों में यूक्रेन में यही गलती की. कई शहरों पर और कई तरफ से सैनिक आगे बढ़े लेकिन जवाबी कार्रवाई में यूक्रेन की सेना ने रूसी सैन्य काफिलों, फाइटर जेट्स और यहां तक कि ब्लैक सी में तैनात युद्धपोत को भी नुकसान पहुंचाया.
इस जंग में अब तक के चार महीनों को अगर देखा जाए तो यूक्रेन के दावे के अनुसार, रूस के 34 हजार सैनिकों की जान जा चुकी है. जबकि 1500 रूसी टैंक, 756 आर्टिलरी सिस्टम, 99 एंटी एयरक्राफ्ट डिफेंस सिस्टम, 216 फाइटर जेट और 183 हेलिकॉप्टर गिराने का यूक्रेनी सेना ने दावा किया है. वहीं, रूसी दावा भी उससे कई गुना ज्यादा यूक्रेन के नुकसान का है. यूक्रेन से 80 लाख लोग देश छोड़कर भाग चुके हैं. रोज यूक्रेन के 200 सैनिकों की मौत हो रही है औसतन. अब तक के युद्ध में हर महीने 6000 यूक्रेनी सैनिक यानी 24 हजार से अधिक यूक्रेनी सैनिकों की जान जा चुकी है. यूक्रेन के लगभग सभी बड़े शहर रूसी बमबारी की तबाही झेल रहे हैं.
आर्थिक मोर्चे पर देखें तो यूक्रेन को 600 बिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा है. देश का पूरा सिस्टम ठप है. यूक्रेन जंग में जुटा है तो उसके सहयोग के लिए उतरे यूरोप के देशों और अमेरिका तक को भी भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है. रूसी गैस की सप्लाई बंद होने से यूरोप में ईंधन का संकट है, भारत समेत दुनिया के तमाम देशों में तेल के साथ-साथ और भी जरूरी सामानों की सप्लाई बाधित हुई है और खर्च काफी बढ़ गया है. दुनिया भर में कई कंपनियां इस युद्ध के कारण संकट में आ गई हैं और लोगों को रोजगार के संकट से जूझना पड़ रहा है. उधर तमाम बड़ी कंपनियां रूस छोड़कर जा चुकी हैं. अमेरिका और यूरोप ने रूस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिए हैं. आम रूसी लोगों के आर्थिक हालात संकट वाले हैं.
UNEP के अनुसार रूस यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया पर हो रहा है. खासकर खाद्यान, ऊर्जा और वित्तीय मामलों पर. एक अनुमान के मुताबिक इस युद्ध के कारण दुनिया के एक अरब 60 करोड़ लोग इन तीन में से किसी न किसी एक मोर्चे पर संकट में आ गए हैं. इनमें से एक अरब 20 करोड़ लोग युद्ध के संकट से सीधे तौर पर जुड़े देशों में रहते हैं. दुनिया के 107 देशों पर इस युद्ध का किसी न किसी रूप में असर हुआ है. क्योंकि गैस, ऊर्जा, तेल, उर्वरक, अनाज, उपकरण, खेती के यंत्र और हथियार और मशीनरी समेत कई चीजें दुनिया के देशों को रूस और यूक्रेन से जाते थे या प्रतिबंधों के कारण इनकी सप्लाई बाधित हुई है.
रूस-यूक्रेन की जंग अब दोधारी तलवार पर चलने वाली स्थिति में आ चुकी है. मारियूपोल जैसे शहर को कब्जे में लेने के बाद रूस ने यूक्रेन में अपनी रणनीति बदल ली है. राजधानी कीव को छोड़कर पूर्वी यूक्रेन पर अपना कब्जा पुख्ता करने में रूस जुट गया है. सेवेरोदोनेस्क व लिसिचंस्क जैसे शहरों को रूसी सैनिक घेरे हुए हैं. खारकीव पर पकड़ मजबूत कर रूस डोनबास के इलाके में घेरा मजबूत करने में जुटा है ताकि जरूरत पड़ने पर यूक्रेन के एक हिस्से को काटकर अलग देश घोषित कर सके. खेरसान और मेलिटोपोल जैसे शहरों में नागरिकों को रूसी पासपोर्ट तक जारी करने का दावा स्थानीय प्रशासन की ओर से किया जा रहा है. एक्सपर्ट इसे इस बात का संकेत बता रहे हैं कि रूस जल्दी इस इलाके को खाली करने के मूड में नहीं दिख रहा.
यूरोप की गैस सप्लाई काटकर रूस ने यूक्रेन की मदद कर रहे देशों पर भी दबाव बढ़ा दिया है. दूसरी ओर फिनलैंड और स्वीडन को नाटो में शामिल होने की कोशिशों को लेकर रूस ने चेताया है जबकि सहयोगी देश बेलारूस से सटे लिथुआनिया पर कभी भी रूसी हमले का अंदेशा जताया जा रहा है. लिथुआनिया बचाव के लिए जंग की तैयारियों में जुट गया है. यूक्रेन को हथियार सप्लाई कर रहे नाटो मेंबर देश लिथुआनिया के पास सिर्फ 16 हजार की सेना है और अगर रूस हमला करता है तो उसके लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है. अमेरिका ने लिथुआनिया पर हमले के अंदेशों के बीच रूस को चेताते हुए कहा है कि लिथुआनिया पर हमले को नाटो पर हमला माना जाएगा और नाटो देश उसका कड़ा जवाब देंगे.
ऐसे में धीरे-धीरे ये युद्ध यूक्रेन से निकलकर कई देशों की ओर फैलता हुआ दिख रहा है. क्योंकि लिथुआनिया पार करते ही पोलैंड की सीमा शुरू हो जाती है. जिसकी जमीन का इस्तेमाल कर अमेरिका और यूरोप के देश यूक्रेन को हथियार और बाकी मदद पहुंचा रहे हैं. लिथुआनिया के रूसी कब्जे में जाते ही पोलैंड पर हमले का खतरा बढ़ जाएगा. उधर यूरोपीय संघ के सदस्य देशों की बैठक में यूक्रेन को सदस्यता के लिए ग्रीन सिग्नल मिलने की उम्मीद बढ़ गई है और ऐसा होते ही रूस फिर यूरोपीय संघ के खिलाफ कोई भी कदम उठा सकता है. ऐसे में हालात ये बन रहे हैं कि लिथुआनिया, स्वीडन, फिनलैंड या किसी और यूक्रेन समर्थक देश पर अगर रूस कोई एक्शन लेता है तो फिर नाटो देश इस लड़ाई में कूद सकते हैं और तीसरे विश्व युद्ध के हालात या परमाणु हमले के हालात बन सकते हैं.
ये लड़ाई जितनी लंबी खिंचेगी बढ़ती ईंधन कीमतें तमाम देशों को परेशान करेंगी, मल्टीनेशनल कंपनियों का काम ठप होने से रोजगार का संकट पैदा होगा, खाद्यान्न समेत तमाम सामानों की सप्लाई बाधित होगी, महंगाई बढ़ेगी और मंदी के हालात पैदा होंगे. ऐसे स्थिति में दुनिया के तमाम देशों पर रूस के खिलाफ सख्त कदम उठाने का दबाव जनता के अंदर से बढ़ेगा और हालात बिगड़ते चले जाएंगे. दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान भी ऐसा ही कुछ हुआ था जब जर्मन तानाशाह हिटलर की सेना लगातार पड़ोसी इलाकों पर कब्जे कर रही थी और शुरू के कुछ महीनों बल्कि एक-दो साल तक दुनिया के देश युद्ध को टालने के लिए शांत बने रहे लेकिन फिर सबको युद्ध में कूदना पड़ा और जंग 6 साल तक खिंच गई. उसके बाद कितनी तबाही हुई पूरी दुनिया ने देखा. रूस-यूक्रेन युद्ध उस गंभीर हद तक न चला जाए इसलिए इसे थामने के लिए यूएन जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं को जल्दी आगे आना होगा और शांति की राह तलाशनी होगी.

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