अमेरिकी विशेषज्ञ ने बताया कैसे जेम्स वेब टेलीस्कोप बचा सकता है पृथ्वी
जेम्स वेब टेलीस्कोप बचा सकता है पृथ्वी
जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप (James Webb Space Telescope) अपने निर्धारित स्थान की ओर जा रहा है और इस महीने के अंत तक वहां स्थापित हो जाएगा. यह अब तक कि सबसे जटिल और महंगी अंतरिक्ष वेधशाला बनने जा रहा है. इससे सुदूर अंतरिक्ष से लेकर हमारे सौरमंडल तक के बारे में ऐसी जानकारियां मिल सकेंगी जो अब तक हमें कभी नहीं मिल सकती थीं. इसके उपयोग से जुड़ने जा रहे एक अमेरिकी विशेषज्ञ ने बताया है कि इसके अवलोकन से शुक्र ग्रह (Venus) के विज्ञान का भी अध्ययन किया जाएगा जो हमारी पृथ्वी (Earth) को जलवायु परिवर्तन को बचाने में मददगार साबित होगा.
इस तकनीक से शुक्र का भी होगा अध्ययन
यह विशेष टेलीस्कोप नासा और उसके अन्य सहयोगी स्पेस एजेंसी का अभि
यान है. इसके उपयोग के लिए चुनी गई नासा की टीम की अगुआई रिवरसाइड की कैलीफोर्निया यूनिवर्सिटी के खगोलभौतिकविद स्टीफन केन करेंगे. केन छह साल बाद प्रक्षेपित होने वाले नासा के शुक्र अभियान से भी जुड़ेंगे. केन ने बताया कि वेब तकनीक का उपोयग शुक्र ग्रह के अध्ययन में कैसे काम आएगा और उससे पृथ्वी को कैसे फायदा होगा.
हबल और जेम्स वेब
वेब टेलीस्कोप की हमेशा ही हबल स्पेस टेलीस्कोप से तुलना होती है. जहां हबल का आईना 8 फुट का है, वहीं वेब का आईना 21 फुट का है. हबल पृथ्वी का चक्कर लगाता है जिससे उसे नियंत्रित करना आसान हो जाता है. लेकिन इससे एक परेशानी यह भी होती है पृथ्वी के बीच में आने से कई अवलोकन नहीं हो पाते हैं. लेकिन वेब की स्थिति में पृथ्वी कभी रोड़ा नहीं बनेगी.
पृथ्वी सूर्य की कोई बाधा नहीं
जेम्स वेब लैगरेंज प्वाइंट पर स्थित होगा जहां सूर्य और पृथ्वी का गुरुत्वाकर्षण एक दूसरे को खारिज कर देता है इसलिए वह अपने स्थिर कक्षा में होगा. यह पृथ्वी से लाखों मील दूर सूर्य का चक्कर लगाएगा और पृथ्वी के साथ सूर्य की रोशनी भी बाधा नहीं बन सकेगी क्योंकि यह हमेशा सूर्य से आने वाली किरणों की विपरीत दिशा से आने वाले संकेतों का अवलोकन करेगा.
शुक्र की स्थिति
आज शुक्र ग्रह ग्रीन हाउस गैसों की वजह से बहुत ही ज्यादा गर्म है जिससे उससे नर्क कहा जाता है. सतह का तापमान 400 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा है. यहां कोई पानी नहीं है और यह ग्रह सल्फ्यूरिक अम्ल के बादलों पर तैर रहा है. कोशिश यह जानने की है कि शुक्र ऐसा कैसे बना और ऐसी स्थिति क्या कहीं और भी है या हो सकती है.
दूसरे सवाल का जवाब
केन और उनकी टीम दूसरे सवाल का जबाव वेब टेलीस्कोप से जानने का प्रयास करेंगे. वे यह जानने का प्रयास करेंगे कि क्या कोई बाह्यग्रह भी शुक्र के जैसा है. वेब की मदद से दूसरे बाह्यग्रहों के वायुमंडल का अध्ययन किया जा सकेगा. कोशिश यह होगी कि क्या ये ग्रह पृथ्वी की तरह ज्यादा हैं या फिर शुक्र की तरह ज्यादा हैं.
बाह्यग्रहों के वायुमंडलों का अध्ययन
वेब खासतौर पर ऐसे बाह्यग्रहों में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीन हाउस गैसों अध्ययन करेगा. जो अभी तक इससे पहले नहीं हो पाता था. अब उनके वायुमंडल के अध्ययन से पता चलेगा कि क्या शुक्र का जो अंजाम हुआ है वह आम बात है या नहीं. शुक्र पर जो भी हुआ है वह प्राकृतिक कारणों से हुआ. वहीं शुक्र को पृथ्वी का भविष्य माना जाता है. ग्रीन हाउस गैसें लंबे समय में किस तरह का प्रभाव दिखाती हैं इससे हमें अपना भविष्य बचा सकते हैं.
पृथ्वी पर जलवायु परिवर्तन एक बड़ी समस्या है और तापमान बढ़ता जा रहा है. भविष्य में इसके प्रभावों के अनुमानों को लेकर बहुत विविधता है. इसकी एक वजह से ग्रहों की प्रक्रियाओं को लेकर हमारी सीमित जानकारी भी है. अभी तक हमारे आंकलन पृथ्वी के ही उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर हैं. ऐसे में शुक्र जैसे ग्रहों के आंकड़े हमारी बहुत मदद कर सकते हैं.