नई दिल्ली(आईएएनएस)| चीन ने कोविड के आइसोलेशन से उबरने के बाद कूटनीतिक मोर्चे पर बिल्कुल भी समय बर्बाद नहीं किया है। बीबीसी ने बताया कि पिछले कुछ महीने में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात की है; ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा सहित कई विश्व नेताओं की मेजबानी की जो इस सप्ताह वहां पहुंचे; एक वरिष्ठ दूत को यूरोप भेजा; और यूक्रेन युद्ध के लिए 12 सूत्रीय समाधान प्रस्तुत किया।
बीबीसी के अनुसार, बीजिंग ने सऊदी अरब और ईरान के बीच शांति स्थापना में भी मध्यस्थता की जो चीन के सबसे बड़े कूटनीतिक तख्तापलटों में से एक है। यह खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने मध्य पूर्व में यह सफलता हासिल की है जहां अमेरिकी हस्तक्षेप कठिनाइयों और विफलता में फंसा दिख रहा है।
इसी दौरान, बीजिंग वैश्विक सुरक्षा और विकास के लिए विभिन्न प्रस्ताव लेकर आया है जो एक स्पष्ट संकेत है कि वह वैश्विक दक्षिण को अपने पक्ष में करने की कोशिश कर रहा है जैसा कि उसने पहले बेल्ट एंड रोड पहल में किया था जहां उसने अरबों डॉलर दूसरे देशों को दिए थे।
बीबीसी ने बताया कि इस राजनयिक भूमिका ने चीन को महत्वपूर्ण वैश्विक मध्यस्थ के रूप में स्थापित किया है। इसकी जड़ें चीनी राष्ट्र का कायाकल्प में तलाशी जा सकती हैं जो एक लंबे समय से चली आ रही राष्ट्रवादी परिकल्पना है। इसके तहत मध्य का देश वैश्विक स्तर पर केंद्रीय भूमिका पुन: हासिल करेगा। इसके पीछे एक उद्देश्य वैश्विक आर्थिक संबंधों को सुरक्षित करना भी है।
एशिया सोसाइटी पॉलिसी इंस्टीट्यूट में चीनी राजनीति के फेलो नील थॉमस ने कहा, शी जानते हैं कि आप मजबूत अर्थव्यवस्था के बिना चीनी राष्ट्र का कायाकल्प नहीं कर सकते।
अमेरिकी खुफिया विभाग की 2023 के वार्षिक थ्रेट असेसमेंट रिपोर्ट के अनुसार, चीन के पास हर क्षेत्र में और कई क्षेत्रों में नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था को सीधे बदलने का प्रयास करने की क्षमता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) चीन को पूर्वी एशिया में प्रमुख शक्ति और विश्व मंच पर एक बड़ी शक्ति बनाने के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ²ष्टिकोण को प्राप्त करने के अपने प्रयासों को जारी रखेगी।
सीसीपी ताइवान पर एकीकरण के लिए दबाव डालने, अमेरिकी प्रभाव को कम करने, अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच दरार पैदा करने और कुछ ऐसे मानदंडों को बढ़ावा देने के लिए काम करेगा जो इसकी अधिनायकवादी व्यवस्था का समर्थन करते हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन अमेरिका के साथ उसकी बढ़ती प्रतिस्पद्र्धी संबंधों को एक युगांतकारी भूराजनीतिक बदलाव के रूप में देखता है। वह अमेरिका के कूटनीतिक, आर्थिक, सैन्य और तकनीकी उपायों को चीन के उदय को रोकने और सीसीपी के शासन को कमजोर करने के व्यापक अमेरिकी प्रयास के हिस्से के रूप में देखता है।
बीजिंग तेजी से बढ़ती सैन्य शक्ति को अपने आर्थिक, तकनीकी और कूटनीतिक प्रभाव के साथ जोड़ रहा है ताकि सीसीपी के शासन को मजबूत किया जा सके, उन सभी हिस्सों पर कब्जा किया जा सके जिसे वह अपने संप्रभु क्षेत्र और क्षेत्रीय श्रेष्ठता के रूप में देखता है, और वैश्विक प्रभाव को आगे बढ़ा सके। चीनी सरकार अपने लक्ष्यों को पूरा करने के प्रयास में प्रमुख वैश्विक आपूर्ति श्रंखलाओं में अपने प्रभाव का लाभ उठाने में सक्षम है, हालांकि संभवत: उसे इसकी कीमत भी चुकानी पड़े।
चीन ताकत का प्रदर्शन करने और पड़ोसियों को जबरन उसकी प्राथमिकताओंको स्वीकार कराने के लिए समन्वित, संपूर्ण-सरकारी उपकरणों का उपयोग करता है। इसमें भूमि, समुद्र और हवाई क्षेत्र पर दावे और ताइवान पर संप्रभुता की उसकी मान्यता भी शामिल हैं।
दक्षिण चीन सागर में प्रतिद्वंद्वी दावेदारों को डराने और यह संकेत देने के लिए कि वहां विवादित इलाकों पर उसका नियंत्रण है चीन वहां वायु, नौसेना, तट रक्षक और मिलिशिया बलों की संख्या बढ़ाना जारी रखेगा। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसी तरह, चीन पूर्वी चीन सागर में विवादित क्षेत्रों को लेकर जापान पर दबाव बना रहा है।
द न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय नेता बीजिंग की ओर रुख कर रहे हैं, अपनी रणनीति का झुकाव चीन की तरफ कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे अमेरिका दो महाशक्तियों के बीच बढ़ती कटुता में उसका पक्ष लेने के लिए दबाव बढ़ा रहा है।
राजनीतिक गतिविधियों में अचानक तेजी ऐसे समय में देखी जा रही है जब रूस के साथ असीमित साझेदारी की घोषणा की है। इसके साथ ही वह यूक्रेन युद्ध में मध्यस्थता करने का अजीबो-गरीब प्रयास भी कर रहा है। रूस के साथ चीन की बढ़ती निकटता ने यूरोप को मुश्किल स्थिति में डाल दिया है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की खबर के अनुसार, चीन यूरोप को अमेरिका से अलग करने के अलावा और कुछ नहीं चाहेगा। वह यह बताने के लिए उत्सुक है कि एक बेहतर शुरुआत न केवल व्यापार के लिए अच्छा होगा, बल्कि रणनीतिक स्वायत्तता की यूरोप की खोज को भी लाभ पहुंचाएगा - यहां तक कि यूरोप से भी स्वतंत्रता।
द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने कहा कि यूरोप को जागीर नहीं बनना चाहिए और ताइवान को लेकर अमेरिका और चीन के बीच किसी भी तरह के संघर्ष में शामिल होने से बचना चाहिए।
फ्रांसीसी राष्ट्रपति ने चीन की तीन दिवसीय राजकीय यात्रा के बाद अपने विमान में एक साक्षात्कार में यह टिप्पणी की। चीन में शी जिनपिंग ने उनका रेड कार्पेट बिछाकर स्वागत किया - इस तरह के तमाशे से चीन पर नजर रखने वाले कुछ यूरोपीय देश चिंतित हैं।
द गार्जियन के अनुसार, रिसर्च फर्म यूरेशिया ग्रुप में यूरोप के प्रमुख मुज्तबा रहमान ने कहा कि मैक्रों की नवीनतम टिप्पणियां गलत समय में आई हैं। जब ताइवान को घेरकर चीन सैन्य अभ्यास करता है और चीन की राजकीय यात्रा के ठीक बाद इस तरह की टिप्पणी करना गलत था। इसे बीजिंग का संतुष्टीकरण और चीनी आक्रमकता को सहमति प्रदान करना माना जाएगा।
सीआईए के निदेशक विलियम बर्न्स ने कहा कि यूक्रेन पर आक्रमण के बाद पश्चिम से अलगाव गहराने के कारण रूस के चीन का आर्थिक उपनिवेश बनने का जोखिम है।
बर्न्स ने ह्यूस्टन में राइस यूनिवर्सिटी में एक कार्यक्रम में कहा, रूस चीन पर अधिक से अधिक निर्भर होता जा रहा है और कुछ मामलों में, उसके धीरे-धीरे चीन का आर्थिक उपनिवेश बनने का खतरा भी है। जो ऊर्जा संसाधनों और कच्चे माल के निर्यात के लिए उस पर निर्भर होगा।
--आईएएनएस