ब्रिटेन सरकार ने कोविड-19 शुरू होने के दौरान लॉकडाउन में की देरी, हजारो लोगो की गई जाने

ब्रिटेन की बोरिस जॉनसन सरकार ने कोविड-19 शुरू होने के दौरान लॉकडाउन में देरी कर दी थी. इसकी वजह से ही संक्रमण को फैलने से रोकने में सफलता देर से मिली और इसका नतीजा था कि करीब हजारों लोगों की मौत हो गई.

Update: 2021-10-12 16:40 GMT

जनता से रिश्ता वेबडेस्क ;-  ब्रिटेन (Britain) की बोरिस जॉनसन (Boris Johnson) सरकार ने कोविड-19 (Covid-19 pandemic) शुरू होने के दौरान लॉकडाउन में देरी कर दी थी. इसकी वजह से ही संक्रमण को फैलने से रोकने में सफलता देर से मिली और इसका नतीजा था कि करीब हजारों लोगों की मौत हो गई.

मंगलवार को संसदीय रिपोर्ट में प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन और उनकी सरकार के लापरवाही से भरे रवैये को सामने लाया गया है. रिपोर्ट में कहा गया है कि जॉनसन के मंत्री वैज्ञानिक सलाहकारों के प्रस्‍तावों को लागू करने में देरी करते गए. इसका नतीजा यह हुआ कि महामारी फैलती ही गई. जो रणनीतियां पूर्वी और उत्‍तर-पूर्वी एशिया में अपनाई गई थीं, उन्‍हें मानने से भी साफ इनकार कर दिया गया था.
देरी से फैसले का स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं पर असर
यह रिपोर्ट ब्रिटेन की संसद के हाउस ऑफ कॉमन्स की विज्ञान और स्वास्थ्य की समितियों द्वारा संयुक्त रूप से की गई जांच का नतीजा है. इसमें स्पष्ट रूप से कहा गया है कि शुरू में ही तालाबंदी ना लगाने से महामारी को रोकने का एक अवसर हाथ से निकल गया. रिपोर्ट के मुताबिक खतरनाक देरी की वजह से वैज्ञानिक सलाहकारों के सुझावों पर मंत्रियों का सवाल ना उठाना.
इस वजह से एक खतरनाक स्तर की 'सामूहिक सोच' विकसित हो गई. प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन की कंजर्वेटिव सरकार ने तब जा कर तालाबंदी का आदेश दिया जब देश की राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा पर तेजी से बढ़ते हुए संक्रमण के मामलों की वजह से अत्यधिक दबाव पड़ गया.
लॉकडाउन था बेहद जरूरी
रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकार तालाबंदी से बचना चाह रही थी क्योंकि उसकी वजह से अर्थव्यवस्था, सामान्य स्वास्थ्य सेवाओं और समाज को बहुत नुकसान होता. कड़ाई से आइसोलेशन, एक सार्थक जांच और ट्रेस अभियान और सीमाओं पर सशक्त प्रतिबंध जैसे उपायों के अभाव में एक पूर्ण तालाबंदी अनिवार्य थी और उसे और जल्दी लागू किया जाना चाहिए था.
यह रिपोर्ट ऐसे समय पर आई है जब महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों को लेकर एक औपचारिक जांच में हो रही देरी को लेकर निराशा का माहौल है. प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा है कि जांच अगले साल शुरू होगी.
सांसदों का कहना है कि जांच की प्रक्रिया को कुछ इस तरह से बनाया गया है जिससे यह सामने लाया जा सके कि महामारी के शुरुआती दिनों में ब्रिटेन का प्रदर्शन दूसरे देशों के मुकाबले 'काफी खराब' क्यों रहा. इससे देश को कोविड-19 के मौजूदा और भविष्य के खतरों से निपटने में मदद मिलेगी.
संसदीय समिति की रिपोर्ट 150 पन्नों की है और 50 गवाहों के बयानात पर आधारित है. इनमें पूर्व स्वास्थ्य मंत्री मैट हैनकॉक और प्रधानमंत्री के पूर्व सलाहकार डोमिनिक कमिंग्स भी शामिल हैं. इसे संसद की तीन सबसे बड़ी पार्टियों के 22 सांसदों ने सर्वसम्मति से स्वीकृति दी थी.
वैक्‍सीनेशन को लेकर सरकार की तारीफ
इन पार्टियों में सत्तारूढ़ कंजर्वेटिव पार्टी, विपक्षी लेबर पार्टी और स्कॉटलैंड की स्कॉटिश नेशनल पार्टी शामिल थीं. संसदीय समितियों ने टीकों पर सरकार के शुरुआती ध्यान और टीकों के विकास में निवेश करने के फैसले की सराहना भी की.
इन फैसलों से ब्रिटेन का टीकाकरण कार्यक्रम काफी सफल हुआ और आज 12 साल से ऊपर की उम्र के लगभग 80 प्रतिशत लोगों को टीका लग चुका है. समितियों ने कहा है कि यूके ने वैश्विक टीकाकरण अभियान में अग्रणी भूमिका निभाई है जिसकी वजह से अंत में लाखों जानें बच पाएंगी.
रिपोर्ट में कहा गया है कि महामारी के पहले तीन महीनों में सरकार की रणनीति औपचारिक वैज्ञानिक सलाह का नतीजा थी, जिसमें कहा गया था कि चूंकि जांच करने की क्षमता सीमित है इसलिए संक्रमण व्यापक रूप से फैलेगा ही.
इसके अलावा रिपोर्ट की मानें तो कहा गया था कि टीके की तुरंत कोई संभावना नहीं है. यह भी माना गया था कि जनता एक लंबी तालाबंदी को स्वीकार नहीं करेगी. इसका नतीजा यह हुआ कि सरकार वायरस के प्रसार को पूरी तरह से रोकने की जगह सिर्फ उसके प्रबंधन का इंतजाम कर पाई.



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