तुर्की ने एस-400 मिसाइल सिस्‍टम को लेकर अमेरिका पर दोहरी नीति का आरोप लगाया, जानें क्‍या है इसका भारत से लिंक

बाइडन प्रशासन अमेरिका पर सैन्‍य या आर्थिक प्रतिबंध लगाए।

Update: 2022-04-26 11:09 GMT

रूसी मिसाइल सिस्‍टम एस-400 एक बार फ‍िर सुर्खियों में है। इस बार तुर्की ने एस-400 मिसाइल सिस्‍टम को लेकर अमेरिका पर दोहरी नीति का आरोप लगाया है। तुर्की के इस आरोप में प्रत्‍यक्ष या अप्रत्‍यक्ष भारत का नाम भी सामने आया है। आखिर क्‍या है पूरा मामला। आखिर तुर्की और अमेरिका में चल रहे टेंशन में भारत का नाम क्‍यों आया सामने। भारत के लिए क्‍यों जरूरी है एस-400 मिसाइल सिस्‍टम। भारतीय कूटनीति ने रूस और अमेरिका को कैसे किया संतुलित। भारत की सफल कूटनीति से अमेरिकी प्रतिबंधों की बात रही बेअसर।

1- दरअसल, तुर्की ने आरोप लगाया है कि रूसी एस-400 की खरीद को लेकर अमेरिका की अलग-अलग नीतियां है। तुर्की के रक्षा मंत्री हुलुसी अकार ने कहा कि रूस से मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर अमेरिका की नीतियां एक समान नहीं हैं। दरअसल, उनका इशारा भारत की तरफ था। खास बात यह है कि तुर्की का यह बयान ऐसे समय आया है जब भारत को रूसी एस-400 मिसाइल सिस्‍टम की दो रेजीमेंड मिल चुकी है। रूस ने इसके स्‍पेयर पार्ट्स की आपूर्ति शुरू कर दी है।
2- भारत के पहले तुर्की ने वर्ष 2019 में रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद की थी। रूस और तुर्की के बीच इस रक्षा सौदे से अमेरिका बेहद खफा था। इसके बाद अमेरिकी प्रशासन ने तुर्की पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए थे। हालांकि, तुर्की को इस तरह के प्रतिबंधों की उम्‍मीद नहीं थी। इसकी बड़ी वजह यह है कि तुर्की नाटो का सदस्‍य देश है। तुर्की को उम्‍मीद थी कि नाटो का सदस्‍य देश होने के नाते अमेरिका उस पर प्रतिबंध नहीं लगाएगा, लेकिन अमेरिका के सख्‍त रुख ने उसे विचलित कर दिया। अमेरिकी प्रशासन ने तुर्की के प्रेसीडेंसी ऑफ डिफेंस इंडस्ट्री के अध्यक्ष इस्माइल, दिमीर, उपाध्यक्ष फारूक यिगित समेत कई अधिकारियों पर वीजा प्रतिबंध समेत कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे। इतना ही नहीं, तुर्की के रक्षा उद्योग और कई बड़े हथियारों के पुर्जों की खरीद पर पाबंदी लगा दी थी। इस कारण तुर्की के रक्षा उद्योग को भारी नुकसान भी पहुंचा था। अब तुर्की को इस बात की जलन हो रही है कि अमेरिका ने भारत के खिलाफ प्रतिबंध क्यों नहीं लगाए हैं।
सफल रही भारत की कूटनीति
1- प्रो. हर्ष वी पंत ने कहा कि रूसी मिसाइल सिस्‍टम के सौदे को लेकर भारत की कूटनीति सफल और प्रभावशाली रही है। अमेरिकी प्रशासन के समक्ष भारत यह बताने में सफल रहा कि रूसी रक्षा सौदा भारत के लिए सामरिक रूप से अनुकूल है। रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम की खरीद को लेकर भारत और तुर्की की परिस्थिति समान नहीं है। तुर्की रूस के कट्टर दुश्मन सैन्य संगठन नाटो का प्रमुख सदस्य है। तुर्की की वायु सेना में अमेरिकी एफ-16 लड़ाकू विमान सहित कई हथियार शामिल हैं। तुर्की को भारत की तरह अपने पड़ोसी देशों के हमले का खतरा नहीं है। तुर्की के पड़ोसी देशों के पास इतना खतरनाक मिसाइल डिफेंस सिस्टम भी नहीं है। दूसरा, तुर्की ने रूसी एस-400 के रडार से अमेरिकी एफ-16 को ट्रैक किया था। इस बात को लेकर अमेरिका काफी नाराज हुआ था।
2- उन्‍होंने कहा कि भारत और रूस के संबंध कई दशकों पुराने हैं। रक्षा उपकरणों को लेकर भी भारत पूरी तरह से रूस पर निर्भर रहा है। इस समय भारत दो फ्रंट पर दुश्मन देशों की आक्रामकता का सामना कर रहा है। इसमें से चीन काफी ज्यादा शक्तिशाली है, जिसके पास पहले से ही रूस का एस-400 मिसाइल सिस्टम है। दूसरा, चीन ने इसी तरह का घरेलू सिस्टम एचक्यू-9 भी विकसित किया है, जिसे पाकिस्तान को भी दिया गया है। ऐसे में भारत को इसकी काट खोजने और अपनी सीमाओं की सुरक्षा के लिए दुनिया का सबसे अडवांस डिफेंस सिस्टम एस-400 लेना जरूरी था।
3- प्रो. पंत का कहना है कि मौजूदा हालात में भारत-अमेरिकी संबंधों को देखते हुए अमेरिकी प्रतिबंधों की बात थोड़ी कठिन लगती है। उन्‍होंने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध अब एक नए युग में प्रवेश कर चुके हैं। इसलिए भारत पर प्रतिबंधों की बात अब उतनी आसान नहीं है। उन्‍होंने कहा कि अमेरिकी सीनेट में भारत का पक्ष लेने वाला खेमा काफी मजबूत है। सीनेट में बड़ी संख्‍या में भारतीय समर्थक मौजूद हैं। भारत के खिलाफ कोई कदम उठाने से पहले बाइडन प्रशासन पर इस लाबी का दबाव रहेगा। इसके अलावा बाइडन प्रशासन और मोदी सरकार के साथ बेहतर संबंध है। ऐसे में यह उम्‍मीद कम है कि बाइडन प्रशासन अमेरिका पर सैन्‍य या आर्थिक प्रतिबंध लगाए।

साभार: जागरण न्यूज़

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