जनता से रिश्ता वेबडेस्क। राष्ट्रपति चुनाव नतीजों के अनुमोदन के वक़्त अमेरिकी संसद की जांच जिस तरह ट्रंप समर्थकों की अराजकता का शिकार हो गई, उससे अमेरिका की सारे विश्व में फजीहत तो हुई ही, उसका यह दावा भी कमजोर हुआ कि वह सबसे मजबूत लोकतंत्र है। अमेरिकी संसद के बाहर और अंदर जो अकल्पनीय हिंसा पैदा हो गई और जिसमें एक सुरक्षा कर्मी समेत पांच लोग मारे गए और कई जख्मी हुए, जिसके लिए राष्ट्रपति ट्रंप ही जिम्मेदार हैं, क्योंकि यह मानने के अच्छी- भली वजह हैं कि उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव नतीजे स्वीकार न करने और उसका विरोध करने के लिए बढ़ावा दिया। उनके इसी रवैये की वजह से फेसबुक, ट्विटर आदि ने उनके खातों पर अस्थायी रोक लगी जा चुकी है। उनका आचरण किस तरह राष्ट्रपति की गरिमा के प्रतिकूल था, यह उनके सहयोगियों के त्यागपत्र देने और कई रिपब्लिकन नेताओं की ओर से उनकी खुली निंदा की जा रही है, करने से स्पष्ट हो जाता है। हालांकि गत वर्ष नवंबर में चुनाव रिजल्ट आने के उपरांत से ही ट्रंप चुनाव प्रक्रिया में धांधली का इलज़ाम लगाकर नतीजों को अस्वीकार कर रहे थे, लेकिन इसकी लिए उम्मीद किसी को नहीं थी कि वह सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण में इस तरह बाधा खड़ी करेंगे और उपराष्ट्रपति पर दबाव बनाने के साथ अपने समर्थकों को इतने खुले तरीके से बढ़ावा देने वाले है।
अमेरिकी संसद में हिंसा के बाद ट्रंप लांछित और अवांछित राष्ट्रपति के रूप में जाने जाएंगे: जंहा इस बात का पता चला है कि अमेरिकी संसद में हिंसा के उपरांत ट्रंप भले ही शांतिपूर्ण तरीके से सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार हो गए हों, लेकिन उनकी जैसी आलोचना की गई, उसकी मिसाल मिलना बहुत ही कठिन है। अपनी इस निंदा के लिए वही जिम्मेदार हैं। यह साफ है कि ट्रंप हाल के इतिहास के सबसे लांछित और साथ ही अवांछित राष्ट्रपति के रूप में जाने जा रहे है। वह राष्ट्रपति बनने के पहले ही विवादों से घिर गए थे। जंहा इस बात का पता चला है कि वह अपनी अप्रत्याशित जीत के उपरांत अपने रवैये में सुधार करेंगे और राष्ट्रपति की गरिमा के अनुरूप आचरण करेंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा करने से मना किया।
राष्ट्रपति के रूप में ट्रंप की प्रतिष्ठा ही नहीं गिरी, बल्कि अमेरिका की छवि पर पड़ा बुरा असर: मिली जानकारी के अनुसार वह अपने पूरे कार्यकाल में एक के उपरांत एक विवादित निर्णय कर रहे है। उनके तमाम निणर्य लिए जा रहे है, जिनसे राष्ट्रपति के रूप में उनकी प्रतिष्ठा तो गिरी ही, वैश्विक स्तर पर अमेरिका की छवि पर भी विपरीत असर पड़ा। उन्होंने पेरिस जलवायु संधि को ठुकराने के साथ ही यह कहना भी शुरू कर दिया कि ग्लोबल वार्मिंग जैसी कोई परेशानी ही नहीं। सच की अनदेखी करने का उनका यह रवैया कोविड-19 के संक्रमण के वक़्त भी दिखा। प्रारंभ में उन्होंने कोविड जनित कोविड-19 को कोई गंभीर बीमारी मानने से ही मना कर दिया। जिसके चलते अमेरिका को कहीं अधिक नुकसान उठाना पड़ा। ट्रंप ने कई अंतरराष्ट्रीय समझौतों से किनारा करने के साथ ही, संयुक्त राष्ट्र की महत्वपूर्ण संस्थाओं, जैसे यूनेस्को और विश्व स्वास्थ्य संगठन से भी अमेरिका को बाहर निकालने का काम किया। इससे ये संस्थाएं कमजोर तो हुई हीं, उन पर उस चीन का दबदबा बढ़ा, जिससे वह मुकाबला करने का दम भरते थे। आज स्थिति यह है कि तानाशाह चीन अमेरिका पर कटाक्ष करने में लगा हुआ है।