सौरमंडल के इस बाह्यग्रह की है शनि के छल्लों से भी बड़ी डिस्क, बन रहे हैं उपग्रह
हमारे सौरमंडल के बाहर ब्रह्माण्ड अनोखे पिंडों से भरा पड़ा है
हमारे सौरमंडल के बाहर ब्रह्माण्ड अनोखे पिंडों से भरा पड़ा है. कई बार ग्रह अजीब होते हैं तो कई बार उनके तारे. लेकिन यूरोपीय साउदर्न ऑबजर्वेटरी के सहयोगी आटाकामा मिलीमीटर/सब मिलीमीटर ऐरे (ALMA) के जरिए खगोलविदों ने हमारे सौरमंडल के बाहर एक ऐसे ग्रह के को खोजा है जिसकी डिस्क में उपग्रहों का निर्माण हो रहा है. यह पहली बार है जब सौरमडंल के बाहर इस तरह की कोई डिस्क खोजी गई है. अभी तक हमारे सौरमंडल के शनि ग्रह में ही डिस्क पाई गई है जिसे शनि के छल्ले (Saturn Rings) कहते हैं.
इस अवलोकन से वैज्ञानिको को उम्मीद है कि युवा तारों के तंत्र में ग्रहों और उनके उपग्रहों का कैसे निर्माण होता है इस बारे में गहरी जानकारी मिल सकती है. फ्रांस की यूनिवर्सिटी ऑफ ग्रेनोबल और यूनिवर्सिटी ऑफ चिली के शोधकर्ता और इस अध्ययन की अगुआई करने वाली मेरियाम बेनस्टी का यह शोध द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लैटर्स में प्रकाशित हुआ है.
डिस्क में बन रहे उपग्रह
बेनेस्टी का कहना है कि उनकी काम दर्शाता है कि स्पष्ट पर ऐसी डिस्क दिखाई दी है जिसमें सैटेलाइट बन रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनके आल्मा अवलोकन इतने स्पष्ट विभेदन वाले थे कि यह डिस्क एक ग्रह से संबंधित थी और उनकी टीम पहली बार उसका आकार भी पता लगा सकी. इस तरह की डिस्क को सर्कम प्लैनेटिरी डिस्क कहा जाता है जो बाह्यग्रह PDC 70c के आसपास है.
डिस्क में मिले थे संकेत
हमारी पृथ्वी से 400 प्रकाशवर्ष दूर स्थित तारे के इस सिस्टम मके दो विशाल गुरु ग्रह के जैसे बाह्यग्रह हैं जिसमें से एक PDS 70c है. खगोलविदों को ऐसे संकेत मिले थे जिनसे पता चला था कि ग्रह के आसपास बनी इस डिस्क में उपग्रहों का निर्माण हो रहा है. लेकिन वे अब तक इस डिस्क और उसके आसपास के वातावरण में अंतर नहीं कर पा रहे थे.
कितनी बड़ी है डिस्क
आल्मा की मददसे बेनेस्टी और उनकी टीम ने पाया कि इस डिस्क का वही व्यास है जितना हमारी पृथ्वी और हमारे सूर्य के बीच की दूरी है. इसके साथ इसका भारत इतना है कि इसमें तीन चंद्रमा जैसे तीन उपग्रह बन सकते हैं. लेकिन इस अध्ययन के नतीजे केवल इस बारे में ही जानकारी नहीं देते हैं कि इनमें चंद्रमा बनते कैसे हैं. ये अब दिए गए ग्रह निर्माण सिद्धांतों का भी परीक्षण कर सकते हैं.
डिस्क और फिर उसमें उपग्रह का बनना
ग्रहों का निर्माण युवा तारों के आसपास मौजूद धूल की डिस्क में होता है जब इस सर्कमस्टैलर डिस्क में पादर्थ जमा होना शुरू होता है इस प्रक्रिया में बनने वाला ग्रह खुद अपनी एक डिस्क बना सकता है. जो उस ग्रह के बनने में पदार्थ के गिरने को नियंत्रित भी कर सकती है. उसी समय डिस्क की गैस और धूल एक साथ आकर टकराते हुए उपग्रहों का भी निर्माण कर सकती है.
इन बाह्यग्रहों (Exoplanet) के अलावा सभी बाह्यग्रह परिपक्व हैं और उनके निर्माण की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है.
अब भी बन रहा है यह ग्रह
खगोलविद अभी इस प्रक्रिया को गहराई से नहीं समझ सके हैं. यानि अभी यह स्पष्ट नहीं हैं कि ये ग्रह और चंद्रमा कब कैसे और कहां बनाते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि अभी तक 400 बाह्यग्रह खोजे जा चुके हैं लेकिन उन सभी में परिपक्व सिस्टम पाए गए हैं. PDS 70b और PDS 70c, जो एक गुरू-शनि के जैसा जोड़ा बनाते हैं, ही ऐसे ग्रह हैं जो अब भी अपनी निर्माण प्रक्रिया से गुजर रहे हैं.
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इस लिहाज से यह सिस्टम बहुत ही काम का साबित हो सकता है क्योंकि यह ग्रह और उपग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया के अध्ययन और अवलकोन का मौका देता है. दोनों बाह्यग्रह अलग अलग समय में अलग टेलीस्कोप द्वारा खोजे गए थे. अब शोधकर्ताओं के निर्माणाधीन उन्नत टेलीस्कोप से ही उम्मीदें हैं जिससे इस सिस्टम का और नजदीकी अध्ययन हो पाएगा.लेकिन शोधकर्ताओं ने इतना तो पता लगा ही लिया है कि यह डिस्क शनि के छ्ल्लों से भी बड़ी है.