अब तक का सबसे छोटा है ये मिनी सुपरमासिव ब्लैक होल, जानिए इसके बारे में
ब्लैकहोल ब्रह्माण्ड के ऐसे पिंड हैं जो अपने आप में तो रहस्यमयी हैं
ब्लैकहोल (Black Hole) ब्रह्माण्ड के ऐसे पिंड हैं जो अपने आप में तो रहस्यमयी हैं ही, अपने साथ ब्रह्माण्ड के कई और रहस्यों को भी समेटे हुए हैं. इसलिए इनका अध्ययन हमेशा ही कौतूहल भरा होता है. खगोलविद भी इनके बारे में नई जानकारी जुटाने में लगे रहते हैं. वे कुछ उत्सर्जन नहीं कर पाते हैं इसलिए उनके बारे में उनसे कुछ पता नहीं चल पाता है. लेकिन जो हम उनके बारे में थोड़ा बहुत जान सके हैं वह भी कम रोचक नहीं है. नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने एक बौनी गैलेक्सी (Dwarf Galaxy) में सुपरमासिव ब्लैक होल (Supermassive Black Hole) की उपस्थिति का पता लगाया है. बताया जा रहा है कि यह कई नए खुलासे कर सकता है.
एक बड़ी उलझन
ब्लैकहोल कई आकार के होते हैं जिनमें सुपरमासिव ब्लैक होल सबसे ज्यादा रहस्यमयी होते है. इनका भार हमारे सूर्य के भार का करोड़ों अरबों गुना ज्यादा होता है. अभी तक ब्लैक होल के निर्माण के बारे में यही जानकारी है कि वे तारों के मरने के बाद बनते हैं, ऐसे में सुपरमासिव ब्लैक होल जैसे विशालकाय ब्लैक होल कैसे बनते हैं यह एक बड़ी गुत्थी है. इस नई खोज से ऐसे सवालों के जवाब मिलने में मदद मिल सकती है.
कहां है ये ब्लैक होल
यह छोटी बौनी गैलेक्सी पृथ्वी से 11 करोड़ प्रकाशवर्ष दूर स्थित है. इसी गैलेक्सी में खगोलविदों ने अब तक का देखा गया सबसे छोटा सुपरमासिव ब्लैक होल देखा है. Mrk 462 गैलेक्सी के बीच में मौजूद है जिसका भार सूर्य के भार का दो लाख गुना ज्यादा है. इस अध्ययन के नतीजे अमेरिकन एस्ट्रोनॉमिकल सोसाइटी की 239 वीं वर्चअल मीटिंग में प्रस्तुत किए गए.
अब तक का सबसे छोटा SMBH
तार्टमाउथ कॉलेज के खोगलविद जैक पार्कर का कहना है कि Mrk 462 में जो ब्लैकहोल पाया गया है वह अब तक का सबसे छोटा सुपरमसिव ब्लैक होल है. इस तरह के ब्लैक होल बहुत ही कम मिलते हैं. इस खोज से पता चलता है कि सुपरमासिव ब्लैक होल, या उनमें से कुछ तारों की भार के आकार से बनना शुरू होते हैं जिनका भार सौर भार से 100 गुना से कम होता है.
लेकिन ब्रह्माण्ड की शुरुआत से पहले कैसे
इस तरह के ब्लैक होल पहले से ही बड़े नहीं बनते हैं. लेकिन इस तारों के भार वाले मॉडल की समस्या यह है कि इससे यही पता चलता है कि बहुत सारे सुपरमासिव ब्लैक होल ब्रह्माण्ड की शुरुआत में बने थे. लेकिन एक तारों के आकार के बीज से ये अतिविशालकाय बन गए यह समझ में नहीं आ पाया है.
एक दूसरी व्याख्या का मतलब
इनके निर्माण की एक व्याख्या यह भी है कि ब्रह्माण्ड की शुरुआत में बहुत विशाल घने गैस और धूल के बादल एक साथ संकुचित होकर एक विशाल ब्लैक होल बने होंगे जो सूर्य से हजारों, लाखों गुना बड़े होंगे जिससे सुपरमासिव ब्लैक होल के विकसित होने की शुरुआत हुई होगी. लेकिन यह प्रक्रिया बहुत ही कम संभावित है. इसका मतलब यही हुआ कि हम तारकीय बीज वाले मॉडल की तुलना में कुछ कम बौनी गैलेक्सी वाले सुपरमासिव ब्लैक होल देख सकते हैं.
कैसे खोजा गया इसे
लेकिन एक बात है , इन बौनी गैलेक्सी के बीच में ब्लैक होल को देख पाना बहुत ही मुश्किल काम है. खगोलविद केंद्र में ब्लैक होल का चक्कर लगा रहे तारों की कक्षा का उपयोग कर ब्लैक होल की जानाकारी निकला सकते हैं. लेकिन यह गैलेक्सी बहुत ही छोटी और धुंधली होती है. शोधकर्ताओं ने चंद्रा एक्स रे वेधशाला का उपयोग कर 9 बौनी गैलेकसी का अध्ययन कर पता लगाने का प्रयास किया कि क्या उनमें कोई सक्रिय ब्लैक होल है उन्होंने पाया है कि Mrk 462 का ब्लैक होल ऐसा ही है.
वैज्ञानकों ने पहली बार देखा सूर्य से 10 गुना ज्यादा बड़े तारे का विस्फोट
इस एक्स रे अध्ययन से पता चला कि ब्लैक के ऊपर घने धूल के बादल हैं. इससे तारकीय बीज के मॉडल के बल मिलता दिख रहा है. शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तरह की और भी बौनी गैलेक्सी हो सकती हैं जिनके इस तरह के ब्लैक हो सकते हैं. शोधकर्ताओं का कहना है कि एक उदाहरण से से मजबूत निषकर्ष नहीं निकाले जा सकते हैं