न्यूक्लियर वेपन पर पुतिन के फैसले से नाराज हैं उनके अपने, तख्तापलट की आशंका से नहीं किया जा सकता इनकार
मिशुस्तीन देश के विभिन्न समूहों को संतुष्ट करने की पावर रखते हैं.
यूक्रेन पर आक्रमण (Ukraine Invasion by Russia) और फिर पश्चिमी देशों को धमकी देते हुए अपने न्यूक्लियर वेपन अलर्ट करने के व्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) के फैसले से पूरी दुनिया सकते में है. रूसी राष्ट्रपति के इस कदम से जितना अमेरिका जैसे दूसरे देश हैरान हैं, उतना ही उनके अपने लोग भी. उन्हें भी समझ नहीं आ रहा है कि आखिर पुतिन को हो क्या गया है. पुतिन के इस निर्णय की कीमत रूस को चुकानी पड़ रही है. इस पर प्रतिबंधों की बौछार हो गई है. ऐसे में ये आशंका भी जताई जा रही है कि रूस में तख्तापलट हो सकता है.
प्रतिबंधों के चलते बदलाव संभव?
'डेली मेल' की रिपोर्ट के अनुसार, दुनियाभर में रूस की आलोचना हो रही है. उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लग रहे हैं, जिसका सीधा असर उसकी अर्थव्यवस्था पर होगा. ऐसे में संभव है कि रूस में पुतिन के खिलाफ अभियान शुरू हो जाए और उन्हें सत्ता से बेदखल कर दिया जाए. खबर है कि रूसी सेना भी परमाणु हथियारों को लेकर अपने राष्ट्रपति की फैसले से हैरान है. यदि रूस में वास्तव में तख्तापलट होता है, तो कौन पुतिन की गद्दी संभालेगा, ये सबसे बड़ा सवाल है.
रूसी रक्षा मंत्री जनरल सर्गेई शोइगु
सर्गेई शोइगु (Sergei Shoigu) व्लादिमीर पुतिन के बाद रूस के दूसरे सबसे लोकप्रिय राजनेता हैं. उन्होंने यूक्रेन पर हमले के रूसी अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. शोइगु को डिफेंस का कोई अनुभव नहीं था, इसके बावजूद उन्हें 2012 में रक्षा मंत्रालय की कमान सौंपी गई. कुछ रिपोर्ट्स में कहा गया है कि द्वितीय विश्व युद्ध में नाजी जर्मनी को हराने वाले जनरल जॉर्ज ज़ुकोव के बाद से शोइगु को रूस का सबसे बड़ा सैन्य नेता माना जाता है. उन्हें पुतिन की तुलना में अधिक व्यावहारिक कहा जाता है और ये भी समझा जाता है कि वो पश्चिमी देशों को ज्यादा अच्छी तरह से डील कर सकते हैं.
निकोलाई पात्रुशेव (सुरक्षा परिषद के सचिव)
पात्रुशेव (Nikolai Patrushev) एफएसबी यानी फेडरल सिक्योरिटी सर्विस ऑफ रशिया के पूर्व प्रमुख हैं. सुरक्षा परिषद के सचिव पात्रुशेव के बारे में कहा जाता है कि उनका दृष्टिकोण व्लादिमीर पुतिन की तरह ही है. जब वह एफएसबी के प्रमुख थे, तब यूके ने एक जांच में पाया था कि पात्रुशेव ने ही रूस के प्रति नाराजगी दर्शाने वाले पूर्व एजेंट Alexander Litvinenko को 2006 में ब्रिटेन की धरती पर मौत के घाट उतरवा दिया था. Litvinenko को जहर दिया गया था. मैनचेस्टर विश्वविद्यालय में रशियन स्टडीज की प्रोफेसर Tolz-Zilitinkevic का कहना है कि निकोलाई पात्रुशेव जैसे व्यक्ति का राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठना सही नहीं है, लेकिन इसकी संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता.
वालेरी गेरासिमोव (सेना प्रमुख)
वालेरी गेरासिमोव (Valery Gerasimov) 2012 से रूसी सेना के प्रमुख हैं. वह एक रणनीतिकार हैं, जिन्होंने 'गेरासिमोव सिद्धांत' बनाया जो रूस के लिए रणनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए आर्थिक, सांस्कृतिक, सूचनात्मक और सैन्य रणनीति को जोड़ता है. इसमें पिछले दो दशकों में रूस द्वारा उठाए गए विवादित कदम शामिल हैं. जैसे 2016 में अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में हस्तक्षेप और 2014 शीतकालीन ओलंपिक और 2018 फीफा विश्व कप की मेजबानी के लिए रूस का सफल दांव. प्रोफेसर Tolz-Zilitinkevic का कहना है कि यदि सेना तख्तापलट करती है, तो वालेरी गेरासिमोव एक बड़ी भूमिका में नजर आ सकते हैं. हालांकि, मौजूदा वक्त में सेना पॉलिटिकल लीडरशिप के ज्यादा नियंत्रण में रहती है, इसलिए जब तक उस स्तर पर कोशिश नहीं होगी, सेना का अकेले आगे बढ़ना मुश्किल है.
दिमित्री मेदवेदेव (सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति)
व्लादिमीर पुतिन का दूसरा कार्यकाल समाप्त होने के बाद 2008 और 2012 के बीच दिमित्री मेदवेदेव (Dmitry Medvedev) रूस के राष्ट्रपति थे और अब सुरक्षा परिषद के उपाध्यक्ष का पद संभाल रहे हैं. सेंट पीटर्सबर्ग में जन्मे इस वकील को पुतिन को अपना प्रधानमंत्री बनाने के वादे पर चुना गया था, जो उन्होंने तुरंत पूरा किया. 2012 में जब पुतिन ने फिर से सत्ता संभाली, तो उन्होंने मेदवेदेव को प्रधानमंत्री नियुक्त किया था. लिहाजा, मेदवेदेव को पुतिन के विकल्प के रूप में देखा जा सकता है. लेकिन Tolz-Zilitinkevic को लगता है कि ये एक कमजोर विकल्प होगा.
मिखाइल मिशुस्तीन (प्रधानमंत्री)
रूस के वर्तमान प्रधानमंत्री मिखाइल मिशुस्तीन (Mikhail Mishustin) ने कोरोना महामारी शुरू होने से पहले पदभार ग्रहण किया था. उन्हें मेदवेदेव के इस्तीफे के बाद ये जिम्मेदारी सौंपी गई थी. पूर्व टैक्स पुलिस अधिकारी को पुतिन के विकल्प के रूप में देखा जा सकता है. प्रोफेसर Tolz-Zilitinkevic का कहना है कि मिशुस्तीन देश के विभिन्न समूहों को संतुष्ट करने की पावर रखते हैं.