फिल्म इंडस्ट्री में ऐक्ट्रेसेस के साथ होता है भेदभाव: रिचा चड्ढा

There is discrimination against actresses in the film industry: Richa Chadha

Update: 2021-09-13 03:29 GMT

ऐक्ट्रेस रिचा चड्ढा जितनी निडर कलाकार हैं, उतनी ही निडर इंसान भी। वे पर्दे पर जितने दमदार किरदार निभाती हैं, असल जिंदगी में उतनी ही दमखम से सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय रखती हैं। इन दिनों अपनी वेब सीरीज 'कैंडी' के लिए चर्चा बटोर रही रिचा के मुताबिक, सच बोलने से कभी डरना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे दूसरों को प्रेरणा मिलती है। पेश ये खास बातचीत:

'सेक्शन 375' में वकील, 'मैडम चीफ मिनिस्टर' में मुख्यमंत्री, 'लाहौर कॉन्फिडेंशियल' में रॉ एजेंट और अब 'कैंडी' में डीएसपी, आप पर्दे पर लगातार पावरफुल महिलाओं के किरदार निभा रही हैं। क्या आपको लगता है कि असलियत में भी अगर ऐसे मजबूत ओहदों पर महिलाएं हों, तो समाज के लिए बेहतर होगा?
100 पर्सेंट। आदमियों ने पावरफुल पोजीशन में रहकर क्या किया है? औरतें लीडरशिप रोल में रहेंगी, तो समाज के लिए निश्चित तौर पर अच्छा होगा, क्योंकि आदमी तो इतने साल रह चुके हैं न, क्या कर दिया उन्होंने! खाली प्रदूषण बढ़ा है, डिफेंस पर खर्च बढ़ा है, स्वास्थ्य और शिक्षा पर कम खर्च हो रहा है। देखिए, एक प्रगतिशील समाज वो होता है, जहां प्रेस को आजादी हो। औरतों को आजादी हो कि वे कितने भी बजे, कुछ भी पहनकर काम पर जा सकें, ऐसा तो है नहीं हमारे देश में, तो हमें मजबूत ओहदों पर औरतों की जरूरत है। इस कोविड महामारी ने भी हमें यही दिखाया है कि न्यूजीलैंड की पीएम जेसिंडा आर्डर्न हों या जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल, इन लोगों ने इस महामारी से अपने अपने देश को बहुत अच्छी तरह से बचाया है, तो बिलकुल वक्त आ चुका है कि औरतें ऐसे ओहदे पर रहें।
वैसे, औरतों का मजबूत ओहदे पर होना हमारे पुरुष सत्तात्मक समाज को कम ही बर्दाश्त होता है। फिल्म इंडस्ट्री में भी ये भेदभाव दिखता है, चाहे पेमेंट में अंतर हो या फीमेल सेंट्रिक फिल्मों से बड़े ऐक्टर्स की दूरी। आपका क्या मानना है इस पर?
बिलकुल सही बात है, लेकिन जिस दिन मर्दों को ये याद आ जाएगा कि उन्हें जन्म किसने दिया है, उनको बर्दाश्त होने लगेगा। आपने सही कहा, हमारी इंडस्ट्री में ये भेदभाव तो है। जैसे 'मैडम चीफ मिनिस्टर' मैंने बहुत ही कम, महज सम्मान राशि पर की थी, क्योंकि मुझे लगा कि ये फिल्म करनी चाहिए। मुझे ये भी पता था कि बहुत सारी बड़ी-बड़ी ऐक्ट्रेसेज उस रोल पर नजर टिकाए बैठी थीं। वो तो फिल्ममेकर सुभाष कपूर मुझ पर अड़ गए, तो मैंने नाम की फीस ली है उस फिल्म के लिए। फिर, नेपोटिजम भी रहता है कि बहुत सारे फिल्म इंडस्ट्री के बच्चे हैं, जिन्हें ऐक्टिंग आए या न आए, उन्हें दमदार रोल वाले प्रॉजेक्ट शुरू में ही मिल जाते हैं कि देखो ये कितने बढ़िया हैं, पूरी फिल्म अपने कंधे पर लेकर चल सकते हैं। जबकि, हम जैसे लोगों को ऐसी फिल्में पाने में आठ साल लग जाते हैं। रही बात बड़े ऐक्टर्स के फीमेल सेंट्रिक फिल्मों से दूर रहने की, तो जो इनसिक्योर ऐक्टर हैं, वे ऐसा सोचते हैं। कुछ सिक्योर ऐक्टर्स भी हैं, जिन्हें फर्क नहीं पड़ता। उनमें अली (बॉयफ्रेंड अली फजल) भी हैं, जिन्होंने 'बॉबी जासूस' की थी।


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