नई दिल्ली: इजरायल के सुप्रीम कोर्ट का एक हालिया फैसला विवादों में बना हुआ है. इजरायल के सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि अगर कोई देश से वफादारी नहीं निभाता है तो उसकी नागरिकता छीन ली जाएगी. नागरिकता छीने जाने का आधार राष्ट्र के खिलाफ आतंकवाद, जासूसी या राजद्रोह को बताया गया है.
इजरायल, फिलिस्तीन मामलों पर नजर रखने वाले विश्लेषक और संगठनों ने इस फैसले की कड़ी आलोचना की है. विश्लेषकों का कहना है कि इस फैसले के जरिए फिलीस्तीनियों को और आसानी से निशाना बनाया जाएगा.
इजरायल से जुड़े मामलों की विश्लेषक मैराव जोन्सजैन ने ट्वीट कर कहा कि यह एक और हथकंडा है, जिसके जरिए इजरायल, फिलिस्तीनियों की बेदखली की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रहा है. इस फैसले की इजरायली मीडिया में बहुत ज्यादा चर्चा नहीं की गई.
मीडिया संगठन मिडिल ईस्ट आई ने अपनी एक रिपोर्ट के हवाले से कहा, इस फैसले के महत्व को बढ़ा चढ़ाकर पेश नहीं किया जा सकता. इसके प्रभाव गंभीर हैं और निकट भविष्य में देखने को मिलेंगे.
लाना टाटोर नाम की सोशल मीडिया यूजर ने ट्वीट कर कहा, फिलिस्तीनियों की नागरिकता रद्द करने वाला इजरायल के सुप्रीम कोर्ट का फैसला चौंकाने वाला नहीं है. मैंने कुछ दिन पहले ही कहा था कि इजरायल की नागरिकता उपनिवेशवाद के वर्चस्व से निकली थी.
बेंजामिन यंग नाम के यूजर ने ट्वीट कर कहा कि अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी को राष्ट्रविहीन (स्टेटलेस) करना अपराध है.
अधिकार समूहों का कहना है कि यह कानून खतरनाक और अवैध है. इजरायल के लीगल सेंटर फॉर अरब माइनोरिटी राइट्स संगठन का कहना है कि इस कानून का इस्तमाल इजरायल के फिलिस्तीनी नागरिकों को निशाना बनाने के लिए किया जाएगा, जिनकी देश में आबादी लगभग 20 फीसदी है.
अरब अधिकार समूहों एसोसिएशन फॉर सिविल राइट्स इन इजरायल (एसीआरआई) और अदलाह ने संयुक्त बयान जारी कर इस कानून को भेदभावकारी बताते हुए कहा है कि इसका इस्तेमाल इजरायल के फिलिस्तीनी नागरिकों के खिलाफ किया जाएगा.
अधिकार समूह अदालाह और एसीआरआई ने संयुक्त बयान जारी कर अदालत के इस फैसले को बहुत खतरनाक बताते हुए कहा कि यह 2008 के विवादित कानून की संवैधानिकता का बरकरार रखता है. समूहों ने कहा कि अदालत के फैसले से इस अवैध कानून का इस्तेमाल जारी रहेगा.
हालांकि, फिलिस्तीन विरोधी कुछ समूह अदालत के इस फैसले का समर्थन भी कर रहे हैं.
शुरात हादिन संगठन ने अदालत के इस फैसले का स्वागत किया है. संगठन ने अपने ट्विटर पेज से ट्वीट कर कहा कि इजरायली सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि इजरायल आतंकियों की नागरिकता रद्द कर सकता है, फिर भले ही उनके पास कोई अन्य नागरिकता ना हो. हम अदालतों में काफी लंबे समय से आतंकियों से लड़ रहे हैं. हम इस महत्वपूर्ण फैसले की सराहना करते हैं.
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले में इजरायल के 2008 के विवादित नागरिकता कानून का हवाला दिया गया, जिसके तहत स्टेट अथॉरिटी, देश के प्रति वफादार ना रहने वालों की नागरिकता रद्द कर सकती है.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इजरायल के दो फिलिस्तीनी नागरिकों के मामले में आया है, जिन्हें 2012 और 2015 में आतंकी हमलों का दोषी ठहराया गया था. इन दोनों को अलग-अलग सजा सुनाई गई थी लेकिन सरकार ने 2008 के कानून का हवाला देकर इनकी नागरिकता रद्द करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी.
अदालत ने कहा कि हालांकि, इन मामलों में कागजी कार्रवाई गलत तरीके से की गई लेकिन 2008 का यह कानून वैध है, फिर बेशक इससे इन दोनों की नागरिकता छीन ली जाए.
हालांकि, ऐसे भी आरोप लग रहे हैं कि इस कानून और सुप्रीम कोर्ट के इस हालिया फैसले में गैर यहूदियों (फिलिस्तीनियों) को निशाना बनाया गया है. अधिकार समूहों का कहना है कि यह नीति सिर्फ गैर यहूदियों पर लागू होगी.
हालांकि, कई देशों में ऐसे कानून हैं, जिनमें राष्ट्र के खिलाफ किसी तरह के षडयंत्र का दोषी पाए जाने पर नागरिकता छीनने का प्रावधान है लेकिन बीते दो दशकों से नागरिकता छीना जाना एक ट्रेंड बन गया गया है.
वहीं, अंतरराष्ट्रीय कानून के तहत किसी भी सरकार को अपने नागरिकों की नागरिकता रद्द करने की मंजूरी नहीं है.
इजरायल के 2008 के विवादित नागरिकता कानून में कहा गया है कि राष्ट्र के खिलाफ विश्वासघात का दोषी पाए जाने पर नागरिकता रद्द की जा सकती है.