रूसी सेना की बर्बरता से दहली दुनिया, आने वाला संकट और भी बड़ा है!

Update: 2022-04-04 02:27 GMT

जंग से जुड़ी दो पुरानी कहावतें हैं- 'युद्ध में गति यानी स्पीड के महत्व को वही समझ सकता है जो लंबी लड़ाई के दुष्परिणामों से परिचित हो...'

और
'अपनी आजादी के लिए लड़ रहे लोगों के इरादों से टकराना किसी भी सेना के लिए आसान नहीं होता...'
दूसरे विश्वयुद्ध में हिटलर की जर्मन सेना ने हॉलैंड पर हमला बोल दिया. हॉलैंड जैसा छोटा मुल्क कैसे जर्मनी का मुकाबला करता. ऊपर से समंदर के निचले इलाके में बसे होने के कारण बांधों और दीवारों के जरिए उसे हमेशा अपनी रक्षा करनी पड़ती है और अपनी पूरी ताकत वहीं लगानी पड़ती ये अलग समस्या थी. फौज भी बड़ी नहीं, हवाई जहाज भी नहीं, युद्ध सामग्री भी नहीं. हिटलर की सेना ये सोच कर आगे बढ़ी कि बस कुछ घंटों की बात है...कब्जा पक्का है.
हमला हुआ तो हॉलैंड के लोगों ने सोचा कि गुलाम बनने से अच्छा है लड़ते हुए मर जाना. उन्होंने एक तरकीब निकाली कि जिस गांव पर हिटलर की सेना हमला करे समंदर से सटी उस इलाके की दीवार तोड़ते जाओ. गांव तो डूबेगा ही लेकिन हिटलर की सेना भी तबाह होती जाएगी. ये तरकीब कामयाब होती गई. हिटलर की सेना को भारी नुकसान उठाना पड़ा. यहां तक कि हिटलर को भी कहना पड़ा कि जब लोग मरने-मारने का इरादा कर लें तो उनको गुलाम बनाना आसान नहीं. फिर उनकी ताकत बम, गोलों और बंदूकों से कहीं ज्यादा होती है.' आज रूस के राष्ट्रपति पुतिन की शक्तिशाली सेना के आगे डटे यूक्रेन के लोगों की हिम्मत कुछ इसी कहानी को दोहराती दिख रही है.
यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की जिस तरह से रूसी हमले के सामने डटे हुए हैं पूरी दुनिया में उनकी तारीफ हो रही है. इतना ही नहीं इससे यूक्रेनी सेना का मनोबल भी बढ़ा है और जनता में भी नया उत्साह दिख रहा है. यही कारण है कि हजारों की संख्या में आम लोग भी रूस की गुलामी से बचने के लिए वॉलंटियर बनकर युद्ध में उतर चुके हैं. नेता, सांसद, मंत्री, मेयर, सिंगर, खिलाड़ी, मॉड्लस सब युद्ध में हथियार थामकर उतरते दिख रहे हैं. यूक्रेनी लोगों के इस जज्बे को दुनिया सलाम कर रही है. दुनियाभर से डेढ लाख से अधिक वॉलंटियर भी जेलेंस्की की सेना के साथ मिलकर लड़ने यूक्रेन पहुंच गए हैं. इनमें कई देशों के पूर्व कमांडो और सैनिक शामिल हैं जो रूसी हमले को फेल करने के लिए मैदान में उतर गए हैं.
चीनी दर्शनिक सं जू की ऐतिहासिक किताब 'Art of War' में युद्ध के कला-कौशल पर काफी कुछ लिखा गया है. चीनी दार्शनिक सं जू और उनके 200 साल बाद आए भारतीय दार्शनिक चाणक्य की युद्ध कौशल और कूटनीति पर लिखी बातें 2500 साल बाद आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी तब थीं. रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर इसका महत्व और भी बढ़ जाता है. Art of War में सं जू युद्ध को लेकर लिखते हैं- 'जब लड़ाई असली हो और जीत पाने में देरी हो रही हो, तो हथियार अपनी धार खो बैठते हैं और सैनिकों का जोश ठण्डा पड़ जाता है. लम्बे चलने वाले युद्ध में राज्य के सभी संसाधन उस युद्ध का बोझ उठाने की क्षमता खो देते हैं. याद रखें जब हथियारों की धार मंद पड़ जाए, सैनिक अपना जोश खोने लगें, खजाना खाली हो जाए, ऐसे में आस-पास के राज्य आपकी अवस्था का लाभ उठाने की ताक में रहेंगे.' रूस के सामने भी अब संकट बढ़ता हुआ दिख रहा है.
यूक्रेन पर रूस ने जब 24 फरवरी को हमले शुरू किए थे तो शहरों पर और मिलिटरी अड्डों पर ताबड़तोड़ बमबारी हुई और रूसी सेना तेजी से यूक्रेन की सीमा में घुसती चली गई. राजधानी कीव तक बमबारी हुई और दुनिया ये मानने लगी कि बस कुछ घंटों की बात है. यूक्रेन की राजधानी कीव रूस के कब्जे में होगी. यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की के देश छोड़कर जाने की अटकलें लगने लगीं. माना जा रहा था कि जैसे पुतिन ने यूक्रेनी सेना को हथियार सरेंडर कर घर जाने का फरमान सुना दिया है वैसा ही नजारा देखने को मिलेगा. लेकिन दुनिया में हर चीज प्लान के हिसाब से नहीं चल सकती. रूसी राष्ट्रपति पुतिन के वॉर प्लान के साथ भी यूक्रेन में कुछ ऐसा ही होता दिख रहा है.
युद्ध शुरू हुए 40 दिन हो गए हैं. भले ही शहर के शहर रूसी एयरफोर्स ने बमबारी से तबाह कर दिए हों लेकिन कोई भी बड़ा शहर अबतक रूसी सेना के कब्जे में पूरी तरह नहीं आया है. न तो डोनबास के इलाके में रूसी सेना कोई बड़ा शहर कब्जाने में सफल रही है और न ही राजधानी कीव की ओर बढ़े सैन्य काफिले को कोई बड़ी सफलता हाथ लगती दिख रही है. फाइटर जेट, मिसाइलें, टैंकों के काफिले और जवानों का नुकसान तो रूस को हो ही रहा है लेकिन जैसा कि यूक्रेन ने दावा किया है कि इस युद्ध में अबतक 7 रूसी जनरलों की मौत हो चुकी है. इंटरनेशनल एजेंसीज के अनुसार अब तक इस युद्ध में रूस को 1300 से अधिक सैनिक खोने पड़े हैं. ये गहरा घाव पुतिन की सेना को लंबे समय तक याद रहेगा. रूसी सेना के मनोबल पर इसका गहरा असर हो सकता है.
Art of War में सं जू लिखते हैं- 'युद्ध करना और जीतना कोई बड़ा काम नहीं है, बड़ा काम है बिना लड़े शत्रु के सारे अवरोध समाप्त कर देना. दुश्मन का सारा इलाका बिना तोड़-फोड़ के सही सलामत अपने कब्जे में ले लेना व्यवहारिक युद्ध कला का सर्वोत्तम उदाहरण है.' लेकिन दुर्भाग्य से यूक्रेन में ऐसा देखने को नहीं मिल रहा है. पुतिन की सेना जो कि एक वर्ल्ड पावर है वह यूक्रेन में फंसी हुई दिख रही है. और अब सैन्य सफलता नहीं मिलती देख सिविलियन इलाकों पर हमले बढ़ गए हैं. रूसी सेना पर अस्पतालों, थिएटर, स्कूल, मॉल्स, रिहाइशी इमारतों पर बमबारी के आरोप लग रहे हैं और बड़ी संख्या में आम लोगों की इस जंग में अब जान जा रही है. यही कारण है कि 45 लाख के करीब लोग यूक्रेन छोड़कर पड़ोसी देशों में शरण लेने को मजबूर हुए हैं और जो लोग देश छोड़ गए नहीं है वे बमबारी और मिसाइल हमले के डर के साये में जी रहे हैं और अपना सबकुछ रूसी बमबारी में तबाह होता हुआ देख रहे हैं.
Art of War में सं जू लिखते हैं- 'काफी लंबे समय तक सेना का भरण पोषण करने से राज्य की अर्थव्यवस्था गड़बड़ा जाती है तथा इसकी वसूली जनता से करने पर लोगों में तंगहाली आ जाती है. दूसरे शब्दों में सेना का खर्च राज्य में महंगाई बढ़ने का कारण बनता है, तथा बढ़ी हुई कीमतों के चलते लोगों की जमा-पूंजी तो बरबाद होती ही है साथ ही उन्हें भारी भरकम टैक्स भी चुकाना पड़ता है.' जो रूसी जवान यूक्रेन के मोर्चे पर लड़ रहे हैं उन्हें तो जान का नुकसान झेलना ही पड़ रहा है साथ ही रूस में आम लोगों पर भी अब जंग की मार पड़ने लगी है.
ऐसा नहीं है कि रूस के जो लोग जंग लड़ने यूक्रेन गए हैं असर सिर्फ उन्हीं पर हो रहा है. रूस का हर आदमी आज इस जंग की कीमत चुका रहा है. रूसी करेंसी रूबल का हाल बुरा है. विदेशी कंपनियां अपना कारोबार बंद कर रही हैं साथ ही तमाम सामानों की सप्लाई भी बंद होती जा रही है. पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों और रूसी पलटवार में आम जनता पीसने लगी है. विदेशी कंपनियों के काम समेटने से आम लोगों की नौकरियां तो जा ही रही हैं, करेंसी डाउन होने से उनकी पूंजी की कीमत भी खत्म हो गई है. साथ ही विदेशों में उनके लिए अवसर भी खत्म से हो गए हैं.
सेंटर फॉर इकोनॉमिक रिकवरी की नई स्टडी के मुताबिक इस जंग की कीमत रूस को और रूसी लोगों को लंबे समय तक भुगतना होगा. युद्ध के पहले पांच दिनों में ही रूस को 7 बिलियन डॉलर की मार पड़ी. इस युद्ध के लिए जिस तरह जानमाल का नुकसान हो रहा है केवल उसी से आने वाले समय में रूसी जीडीपी पर 2.7 बिलियन डॉलर का बोझ बढ़ेगा. लड़ने वाले लोगों के अलावा रूस को सैन्य साजोसामान, खाद्यान्न, मिसाइलें, गोला-बारूद, ईंधन, रॉकेट लॉन्चर आदि सब कुछ मुहैया कराना होगा. शोधकर्ताओं के मुताबिक रूस को इस युद्ध में हर दिन की कीमत 20 बिलियन डॉलर से अधिक की चुकानी होगी. आप अंदाजा लगा सकते हैं कि अब ये युद्ध 40 दिन खींच चुका है तो रूस को कितने का नुकसान हो चुका होगा.
ये तो केवल जंग में आने वाला खर्च है. इसके अलावा रूस में शेयर बाजार कई दिन बंद रखना पड़ा. रूसी करेंसी रूबल ऐतिहासिक गिरावट का सामना कर रही है. प्रतिबंधों के कारण गैस-तेल से लेकर कई चीजें न तो कोई देश रूस से ले पा रहा है और न ही दे पा रहा है. ये सब स्थितियां रूसी मार्केट को महंगाई, मंदी की ओर ले जा रही है. आम लोगों की खरीद क्षमता बुरी तरह प्रभावित हुई है तो स्थानीय कंपनियों के लिए भी काम करना आसान नहीं होगा. लाखों लोगों के सामने गरीबी रेखा के नीचे पहुंच जाने का खतरा उत्पन्न हो गया है.
यूरोप जो कि रूसी गैस का बड़ा कस्टमर था वो सप्लाई कट कर रहा है जिससे रूस की आय कम होगी. इतना ही नहीं पेमेंट सिस्टम स्विफ्ट से रूस को हटाने के कदम से वित्तीय लेन-देन की दिक्कत का सामना करना पड़ा है. दुनिया की तमाम बड़ी कंपनियां रूस से अपना कारोबार समेट रही हैं. जिससे रूस में जहां सामान की सप्लाई बाधित हो गई है, वहीं जरूरी सामानों की किल्लत का सामना भी करना पड़ सकता है. पश्चिमी देशों से टेक्नोलॉजी और इससे जुड़े उत्पादों की सप्लाई रोकने से लंबे समय तक विकास पर इसका असर देखने को मिल सकता है. रूस के मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र, निवेश और बड़े प्रोजेक्ट्स पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है. रूस आने वाले वक्त में यूक्रेन से जंग जीत भी जाए तो उसके लिए आर्थिक क्षेत्र में हो रहे इन नुकसानों का सामना करना आसान नहीं होगा क्योंकि इससे हर रूसी नागरिक की जिंदगी प्रभावित होगी और जनता जहां तंगहाल होगी वहां सरकार के लिए मुश्किलें भी बढ़ती जाएंगी.
यूक्रेन और पूर्वी यूरोप के इलाकों में पश्चिमी देशों और नाटो की घेराबंदी के बावजूद पुतिन ने यूक्रेन पर सीधे हमले की रणनीति अपनाई. लेकिन शायद यहां यूक्रेन की ताकत को समझने में रूस से भूल हो गई. रूसी ऑपरेशन कभी डोनबास इलाके में तेज हो जाता है तो कभी कीव की ओर काफिले बढ़ने लगते हैं. फिर विरोधी सेना के पलटवार के बाद कभी काफिलों का आगे बढ़ना बंद हो जाता है तो कभी किसी शहर में फाइटर जेट बम बरसाने लगते हैं या मिसाइलें गिरने लगती हैं. दरअसल रूस यूक्रेन में कई फ्रंट एक साथ खोल चुका है. डोनबास से लेकर कीव, लीव, मारियूपोल, खारकीव समेत एक दर्जन से ज्यादा शहरों में रूसी सेना जंग में उलझी हुई है जिसका सामना यूक्रेन की सेना हर जगह स्थानीय प्रशासन और लोगों की वॉलंटियर सेना के साथ मिलकर अलग-अलग कर रही है. यही कारण है कि यूक्रेनी सेना कीव के पास स्थित इरपिन जैसे शहर फिर से रूसी सेना के कब्जे से छीनने में सफल रही.
रूसी सैनिकों और टैंकों का काफिला जैसे जैसे यूक्रेनी शहरों की ओर बढ़ीं, पलटवार का शिकार भी खूब हुई हैं. कई काफिले यूक्रेनी सेना ने पूरा का पूरा तबाह कर दिया. पश्चिमी देशों से यूक्रेन को हथियारों की लगातार सप्लाई हो रही है. रूसी काफिलों को तबाह करने के लिए यूक्रेनी सेना ड्रोन से लेकर जैवलीन एंटी टैंक मिसाइलें तक खूब इस्तेमाल कर रही हैं. इतना ही नहीं रूसी फाइटर जेट भी बड़ी संख्या में यूक्रेनी सेना ने मार गिराने में सफलता पाई है इस कारण यूक्रेन के कई शहरों पर तो मिसाइलों से ही हमला करने का रूस के पास विकल्प है.
रूसी काफिलों की धीमी गति का एक कारण और भी है. काफिले में आ रहीं गाड़ियों और टैंकों के लिए ईंधन की सप्लाई इतनी दूर आसान नहीं है. इसके अलावा सैनिकों के लिए ठंड के मौसम में जरूरी सामान और खाना-पीना, गोला-बारूद पहुंचाना भी मुश्किल साबित हो रहा है. दूसरे विश्वयुद्ध में रूस पर चढ़ आई हिटलर की सेना की पराजय का कारण यही चुनौतियां बन गई थीं. जब ईंधन की कमी से टैंक खड़े हो गए, जंग लड़ रहे सैनिक कड़ाके की सर्दी और बर्फ में खाने और गर्म कपड़ों तथा गोला-बारूद की कमी से जूझने लगे और तब अपने इलाके में जंग लड़ रहे रूस की सेना ने उन्हें जमकर नुकसान पहुंचाया.
तब से अब तक जंग के तरीके और हथियार भले ही बदल गए हों लेकिन जंग के हालात वैसे ही हैं. जंग में उतरने वाली ताकतों को The Art of War में लिखी सं जू की ये बात याद रखनी चाहिए कि- 'जीतेगा वह जो जानता है कि कब युद्ध करना है और कब नहीं. जीतेगा वह जो जानता है कि अपनी शक्ति का उपयोग कहां करना है और कहां नहीं. एक सही सैन्य रणनीतिकार वही होता है जो अपने सैनिकों को कम से कम नुकसान में दुश्मन को घुटने टेकने को मजबूर कर दे.'
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