दुनिया ने तेल के रिसाव का देखा था घातक अंदाज, इस उदाहरण से जानें
लेकिन नौसेना, वायुसेना सहित दूसरी सभी सर्विसेज भी हर समय तैयार रहती हैं.
समुद्र में तेल का रिसाव कितना घातक हो सकता है इसका सबसे सटीक अंदाजा दुनिया ने 1991 में खाड़ी युद्ध के दौरान देखा था. कथित तौर पर सद्दाम हुसैन (Saddam Hussein) की फौजों ने कुवैत से वापस लौटते समय वहां के तेल के कुओं से तेल को समुद्र में बहा दिया. इसका असर विनाशकारी था, कच्चे तेल की मोटी परत 160 किलोमीटर लंबे और 68 किमी चौड़े इलाके में फैल गई. इस परत की मोटाई 13 सेंटीमीटर तक थी.
रिसाव के असर को कम करने में लगे कई महीने
इस विनाशकारी रिसाव का असर कम करने में कई महीने लगे, तब तक हजारों समुद्री पक्षी, कोर रीफ, नमक के मैदान तबाह हो गए. तेल तटों तक पहुंचा, सऊदी अरब के सामने पीने के पानी का संकट खड़ा हो गया, तटीय इलाकों में पेड़-पौधे नष्ट हो गए, मछुआरों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया. तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश (George W. Bush) ने इसे पागलपन का काम कहा था. लेकिन इस भयंकर हथियार का इस्तेमाल किए जाने की आशंका भारत के सामने हमेशा बनी हुई है. भारतीय समुद्रों से होकर दुनिया का 90 प्रतिशत कच्चा तेल निकलता है और इस समय पागलपन से भरी ऐसी कार्रवाई का खतरा कभी भी सामने आ सकता है.
तेल के रिसाव से निपटने की तैयारी ही एकमात्र बचाव
तेल की सप्लाई लेकर दिन-रात चलने वाले टैंकरों को रोका नहीं जा सकता है. यानी इकलौता बचाव तेल के रिसाव से निपटने की तैयारी करना है. इस काम के लिए भारतीय तटरक्षक बल हर समय तैयार रहता है. तेल रिसाव के हादसों में कोस्ट गार्ड मुख्यरूप से जिम्मेदार हैं, लेकिन नौसेना, वायुसेना सहित दूसरी सभी सर्विसेज भी हर समय तैयार रहती हैं.