भारत में होंगे घातक परिणाम
1- पर्यावरणविद विजय बधेल का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के हिसाब से भारत बेहद संवेदनशील मुल्क है। वर्ष 2017 में हुए एक अध्ययन में भारत जलवायु परिवर्तन के हिसाब से दुनिया का छठा सबसे अधिक संकटग्रस्त देश था। उन्होंने कहा कि वर्ष 2018 में एचएसबीसी ने दुनिया की 67 अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन के खतरे का आंकलन किया गया, जिसमें कहा गया कि क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत को सबसे अधिक खतरा है। विश्व बैंक भी कह चुका है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण भारत को कई लाख करोड़ डालर की क्षति हो सकती है।
2- उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन का भारत पर व्यापक असर होगा। इसका सबसे ज्यादा प्रभाव कृषि क्षेत्र पर पड़ेगा। दरअसल, हमारे देश की कृषि वर्षा पर आधारित है। यानी भारतीय कृषि पूरी तरह से मानसून पर निर्भर है। जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून में अनिश्चितता उत्पन्न होगी। यानी मानसून कभी तय समय से पहले आएगा तो कभी बाद में। जलावायु परिवर्तन के कारण वर्षा के असामान्य वितरण की समस्या उत्पन्न होगी। इससे भारत में कहीं बाढ़ तो कहीं सूखा जैसी स्थितियों का सामना करना होगा। इसके अलावा पूर्वोत्तर भारत में बाढ़, पूर्वी तटीय क्षेत्रों में चक्रवात की स्थिति उत्पन्न होगी। उत्तर और पश्चिम भारत तें सूखे की भयावह स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
3- खाद्य एवं कृषि संगठन के अनुसार भारत को वर्ष 2015 तक लगभग 125 मिलियन टन खाद्यान्न उत्पादन का नुकसान हुआ है। एक अनुमान के अनुसार, वर्ष 2100 तक भारतीय ग्रीष्म मानसून की तीव्रता में 10 फीसद तक ही वृद्धि को सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के अनुसार प्रति एक सेंटीग्रेट तापमान बढ़ने पर गेहूं के उत्पादन में 4-5 मिलियन टन की कमी होती है। अत्यधिक गर्मी के कारण सिंधु-गंगा के मैदानी क्षेत्रों में होने वाली गेहूं की उपज में 51 फीसद तक की कमी आ सकती है। जलवायु परिवर्तन के कारण परागणकारी कीटों जैसे तितलियों, मधुमक्खियों की संख्या में कमी से कृषि उत्पादन नकारात्मक रूप से प्रभावित हो रही है।
4- विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन 15 वर्षों में 45 मिलियन भारतीयों को अत्यधिक निर्धन बना सकता है जिससे आर्थिक प्रगति बाधित हो सकती है। समुद्र का बढ़ता तापमान कोरल रीफ के लिए खतरा उत्पन्न कर सकता है। गौरतलब है कि कोरल रीफ वस्तु एवं सेवाओं के रूप में अनुमानतः लगभग 375 बिलियन डालर प्रतिवर्ष उत्पादन करता है। जलवायु परिवर्तन आय असमानता में वृद्धि करेगा, साथ ही इससे राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रवासन में वृद्धि होगी।
5- उन्होंने कहा कि भारत पहले से ही सूखे, बाढ़ और चक्रवाती तूफानों की मार झेल रहा है। इस सदी के अंत तक जलवायु परिवर्तन एक बड़ा संकट खड़ा कर सकती है। जलवायु परिवर्तन पर भारत सरकार की अब तक की पहली रिपोर्ट कहती है कि सदी के अंत तक (2100 तक) भारत के औसत तापमान में 4.4 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाएगी। इसका सीधा असर लू के थपेड़ों (हीट वेव्स) और चक्रवाती तूफानों की संख्या बढ़ने के साथ समुद्र के जल स्तर के उफान के रूप में दिखाई देगा।