सौरमंडल का सबसे रहस्यमयी ग्रह, जहां होती है हीरों की बारिश
ग्रह में हीरों की बारिश
सोशल वायरल. हमारे सौर मंडल में असंख्य ग्रह हैं. लेकिन इनमें से अभी तक इंसान सिर्फ नौ ग्रहों (9 Planets) के बारे में जान पाया है. हालांकि, कुछ साल पहले इनमें से एक ग्रह को निकाल दिया गया और उसके बाद अब सौर मंडल में आठ ग्रह रह गए हैं. कुछ साल पहले वैज्ञानिकों की खोज से पता चला कि प्लूटो का आकार बहुत छोटा है. खगोलविज्ञानी मार्क ब्राउन ने साल 2005 में सौरमंडल (Solar System) में सूर्य के चक्कर लगाती कुछ क्षुद्रिकाएं या एस्ट्रॉयड की खोज की थी. इसमें से एक 2003यूबी313 जिसे बाद में जीना नाम दिया गया, जिसे प्लूटो से भी बड़ा बताया गया.
इसके अलावा एक और क्षुद्र ग्रह सीर्स भी प्लूटो से थोड़ा बड़ा बताया गया. जिसके चलते आखिर में साल 2006 में अंतरराष्ट्रीय खगोल संघ ने प्लूटो को ग्रह के दर्जे से पदावनत करते हुए उसे हमारे सौरमंडल से बाहर कर दिया और इस तरह अब सौर मंडल में सिर्फ 08 ग्रह ही माने जाते हैं. आज हम आपको सौरमंडल के एक ऐसे ग्रह के बारे में बताने जा रहे हैं जिसे सौर मंडल का सबसे खतरनाक और रहस्यमयी ग्रह माना जाता है. यही नहीं इस ग्रह पर अक्सर हीरों की बारिश होती है जो इस ग्रह को सौर मंडल के अन्य ग्रहों से अलग पहचान देता है. वैसे तो सौर मंडल के हर ग्रह की अपनी अलग पहचान है क्योंकि सभी के अलग-अलग रहस्य हैं.
सौरमंडल में चार ग्रह ऐसे हैं, जिन्हें 'गैस दानव' कहा जाता है. क्योंकि वहां मिटटी-पत्थर के बजाय गैस की मात्रा ज्यादा है. साथ ही इनका आकार बहुत ही विशाल है. इन्हीं में से है वरुण यानी नेपच्यून. बाकी तीन बृहस्पति, शनि और अरुण (युरेनस) हैं. वरुण ग्रह तो पृथ्वी से काफी दूर है. इस ग्रह पर तापमान शून्य से माइनस 200 डिग्री सेल्सियस तक रहता है. यानी इस तापमान पर इंसान ऐसा जमेगा कि फिर वो किसी पत्थर की तरह टूट सकता है.
बता दें कि वरुण हमारे सौरमंडल का पहला ऐसा ग्रह था, जिसके अस्तित्व की भविष्यवाणी उसे बिना कभी देखे ही गणित के अध्ययन से की गई थी और फिर उसे उसी आधार पर खोजा गया. बता दें कि जब अरुण की परिक्रमा में कुछ अजीब गड़बड़ी पाई गई. इसका मतलब केवल यही हो सकता था कि एक अज्ञात पड़ोसी ग्रह उसपर अपना गुरुत्वाकर्षक प्रभाव डाल रहा था.
बता दें कि सौर मंडल के सभी ग्रहों को अलग-अलग समय में खगोलशास्त्रियों ने देखा या खोज की. वरुण ग्रह को पहली बार 23 सितंबर, 1846 को दूरबीन से देखा गया था. उसके बाद इसे नाम दिया गया नेपच्यून. बता दें कि नेपच्यून प्राचीन रोमन धर्म में समुद्र के देवता हुआ करते थे. ठीक यही स्थान भारत में वरुण देवता का रहा है, इसलिए इस ग्रह को हिंदी में वरुण कहा जाता है. रोमन धर्म में नेपच्यून देवता के हाथ में त्रिशूल होता था, इसलिए वरुण का खगोलशास्त्रिय चिन्ह ♆ ही है.
बताया जाता है कि वरुण ग्रह पर जमी हुई मीथेन गैस के बादल उड़ते हैं और यहां हवाओं की रफ्तार सौरमंडल के अन्य ग्रहों की तुलना में काफी ज्यादा होती है. इस ग्रह पर मीथेन की सुपरसोनिक हवाओं को रोकने के लिए कुछ भी नहीं है, इसलिए उनकी रफ्तार 1,500 मील प्रति घंटे हो सकती है. वरुण के वायुमंडल में संघनित कार्बन होने की वजह से यहां हीरे की बारिश भी होती है. लेकिन इन हीरों को कोई इकट्ठा नहीं कर पाएग क्योंकि यहां इतनी ठंड होती है कि इंसान कुछ ही सेकंड में जम जाएगा.